शर्म करो इंसानों... तेंदुआ जंगल छोड़ इंसानी कचरे में ढूंढ़ रहा जिंदगी, माउंट आबू का वीडियो चीर देगा दिल
नेचर के सबसे शक्तिशाली और सधे हुए शिकारी तेंदुए को जब कूड़े के ढेर में खाने की तलाश करते देखा गया, तो पूरा सोशल मीडिया हैरान रह गया. यह सिर्फ एक जानवर की भूख की कहानी नहीं, बल्कि इंसानी लापरवाही और पर्यावरण के प्रति हमारी बेरुखी की दुखद तस्वीर है.

सोचिए, नेचर के सबसे घातक और फुर्तीले शिकारी, तेंदुए को अगर खाने की तलाश में कचरे के ढेर में भटकते हुए देखा जाए, तो कैसा लगेगा? यह नजारा कल्पना नहीं, बल्कि कड़वी सच्चाई है, जो आज हमारी आंखों के सामने है. राजस्थान के माउंट आबू का एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है, जिसने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया.
वीडियो को भारतीय वन सेवा के अधिकारी परवीन कासवान ने शेयर किया और देखते ही देखते इसने यह सवाल हमारे सामने ला खड़ा किया, क्या हमारा विकास जंगली जीवन की कीमत पर हो रहा है?
कचरे के ढेर में खाना ढूंढता तेंदुआ
यह वीडियो राजस्थान के खूबसूरत हिल स्टेशन, माउंट आबू के पास रिकॉर्ड किया गया. वीडियो में जो दिखता है, वह वाकई दिल तोड़ देने वाला है. जंगलीपन और गरिमा का प्रतीक तेंदुआ धीरे-धीरे कूड़े के ढेर की ओर झुकता है, जहां प्लास्टिक, गंदगी और इंसानों द्वारा छोड़ा गया कचरा फैला हुआ है. तेंदुए की तेज नज़र यहां किसी शिकार की खोज में नहीं, बल्कि खाने के टुकड़ों की तलाश में भटकती हुई दिखाई देती है. इस वीडियो को भारतीय वन सेवा अधिकारी परवीन कासवान ने शेयर किया. उन्होंने इस क्लिप के साथ गहरी चिंता जताते हुए लिखा 'कितना दुखद दृश्य है! देखिए कैसे हमारा कचरा जंगल तक पहुंच रहा है. आइए बेहतर बनें, जंगलों की रक्षा करें, कचरे का प्रबंधन करें और जंगल को उसका घर वापस दें.'
मानव अतिक्रमण की चुभती हकीकत
तेंदुआ जंगलों का राजा नहीं तो किसी से कम भी नहीं. तेज, चतुर, ताकतवर और बेहद समझदार, यही है उसकी पहचान. पर वीडियो में वह तेंदुआ अपनी असल पहचान खोता दिखता है. सवाल यह नहीं है कि वह वहां क्यों आया, बल्कि यह है कि उसे वहां होना ही क्यों पड़ा? क्योंकि इंसानों की बढ़ती बस्तियां अब जंगलों को खा रही हैं. हाईवे, होटल, रिसॉर्ट और खेती के नाम पर पहाड़ों को काट दिया गया. नतीजा? जानवरों का प्राकृतिक आवास बिखर गया और वे गांवों व शहरों की तरफ धकेल दिए गए.
सोशल मीडिया पर गुस्सा
वीडियो वायरल होने के बाद सोशल मीडिया पर लोगों की भावनाएं फूट पड़ीं. किसी ने दुख जताया, किसी ने शर्मिंदगी तो किसी ने गुस्सा. लोगों ने कूड़ा फैलाने वालों और पर्यावरण की अनदेखी करने वालों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की मांग की. जहां एक यूजर ने लिखा 'बहुत दुखद. हम स्वेच्छा से जिम्मेदार नहीं बनेंगे. सख्त जुर्माना ही हमें सुधार सकता है.' दूसरे कमेंट में कहा 'विकास की आड़ में जंगलों को नष्ट किया जा रहा है. सरकार को पर्यावरण की कोई चिंता ही नहीं.'
जिम्मेदार कौन–सिस्टम या हम?
हम में से कई लोग सिस्टम को दोष देंगे, लेकिन सच यह है कि जिम्मेदारियां हमारी भी हैं. क्या हम कचरे का सही निपटान करते हैं? क्या हम पहाड़ों, जंगलों, नदियों को पर्यटन के नाम पर गंदा नहीं करते? क्या हम विकास के नाम पर प्रकृति का विनाश नहीं कर रहे? उम्मीद अभी बाकी है. हर समस्या का समाधान होता है, बस इरादे चाहिए. ठोस कचरा प्रबंधन को अनिवार्य बनाया जाए. पर्यटन स्थलों पर कचरा नियंत्रण कड़ा हो, जंगलों की सीमा और कॉरिडोर सुरक्षित किए जाएं, स्थानीय लोगों को वेस्ट मैनेजमेंट के लिए जिम्मेदार बनाया जाए.