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डॉक्टर बना ड्रग डॉन! इलाज के बहाने करता था नशे की सप्लाई, पंजाब के 22 डी-एडिक्शन सेंटरों का काला कारोबार बेनकाब

पंजाब में मादक पदार्थों के खिलाफ लड़ाई पहले ही कठिन थी. लेकिन हाल ही में खुलासा हुआ कि जिन नशामुक्ति केंद्रों पर राज्य ने भरोसा किया था, वहीं से गैरकानूनी दवाओं का व्यापार चल रहा था. और इस पूरे जाल के बीच में हैं चंडीगढ़ के डॉक्टर अमित बंसल, जिनके 22 प्राइवेट डि-ऐडिक्शन सेंटरों पर अब ईडी और स्वास्थ्य विभाग की जांच चल रही है.

डॉक्टर बना ड्रग डॉन! इलाज के बहाने करता था नशे की सप्लाई, पंजाब के 22 डी-एडिक्शन सेंटरों का काला कारोबार बेनकाब
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( Image Source:  Meta AI: Representative Image )
हेमा पंत
Edited By: हेमा पंत

Updated on: 30 Oct 2025 12:23 PM IST

पंजाब में नशे के खिलाफ चल रही जंग को उस वक्त बड़ा झटका लगा जब एक डॉक्टर पर ही नशे की सप्लाई का आरोप लग गया. इलाज के नाम पर चल रहा यह काला कारोबार अब ईडी की जांच के दायरे में है. चंडीगढ़ के डॉक्टर अमित बंसल ने राज्य में 22 डी-एडिक्शन सेंटर खोले थे, जिनका मकसद था लोगों को नशे से मुक्ति दिलाना, लेकिन हकीकत इसके ठीक उलट निकली.

इन केंद्रों में फर्जी मरीजों का रिकॉर्ड तैयार किया गया, दवाओं की ज़रूरत से ज़्यादा खेप मंगाई गई और फिर वही गोलियां खुले बाजार में बेची गईं. अब जब यह पूरा नेटवर्क बेनकाब हो चुका है, तो सवाल उठ रहा है कि क्या पंजाब में नशा छुड़ाने के नाम पर नशे का एक नया कारोबार पनप चुका है? अब ऐसे में सरकार ने बीते मंगलवार को बड़ा फैसला किया कि अब कोई भी निजी व्यक्ति राज्य में पांच से अधिक नशामुक्ति केंद्र नहीं चला सकेगा.

एक डॉक्टर, 22 सेंटर और फर्जी मरीजों की कहानी

डॉ अमित बंसल का नाम पहली बार 2022 में चर्चा में आया, जब लुधियाना के उनके एक केंद्र से दो कर्मचारियों को गड़बड़ियों के आरोप में गिरफ्तार किया गया. इसके बाद पिछले साल एक वीडियो वायरल हुआ, जिसमें उनके स्टाफ को दवाइयां खुले बाजार में बेचते दिखाया गया.उनके पास पंजाब के 16 जिलों और चंडीगढ़ में 22 केंद्र थे. यह किसी एक व्यक्ति के पास सबसे ज्यादा केंद्र थे. अब ये सभी बंद हो चुके हैं.सरकारी केंद्रों में नशामुक्ति के लिए दी जाने वाली दवाएं मुफ्त मिलती हैं. जबकि प्राइवेट केंद्रों को हर मरीज से एक गोली के 40 रुपये लेने की अनुमति है. लेकिन बंसल के केंद्रों ने मरीजों की झूठी एंट्री दिखाई, जरूरत से अधिक गोलियां खरीदीं और फिर ये दवाएं बाजार में ऊंचे दाम पर बेचीं.

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डॉक्टर को मिली बेल

डॉ बंसल को पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट से मार्च 2025 में जमानत मिल चुकी है. उनके खिलाफ ईडी ने बैंक खातों को अटैच कर लिया है और विदेश यात्रा पर रोक भी लगाई गई है. फिलहाल मामला अदालत में है.राज्य सरकार अब सख्ती के मूड में है.

दवा कंपनी के साथ पैसों का खेल

ईडी की जांच में पता चला कि डॉक्टर बंसल के केंद्रों को जो “Buprenorphine+Naloxone (BNX)” दवाएं मिलती थीं, वे मुंबई की कंपनी रु‍सन फार्मा लिमिटेड से आती थीं. यह वही कंपनी है जिसे भारत में पहली बार इन दवाओं की मंजूरी मिली थी. पंजाब के स्वास्थ्य विभाग ने अब इस कंपनी से जवाब मांगा है कि अप्रैल से नवंबर 2024 के बीच इतने बड़े पैमाने पर, करीब 2.87 करोड़ गोलियां कैसे सप्लाई की गईं. ईडी ने पाया कि रूसन फार्मा को सिर्फ एक ही केंद्र, एकम हॉस्पिटल, से तीन महीनों में 90 लाख रुपये का भुगतान हुआ. साल 2020 से 2025 तक पांच साल में कंपनी को पंजाब के तमाम केंद्रों से 300 करोड़ रुपये मिले. इनमें से 165 करोड़ रुपये अकेले बंसल के नेटवर्क से आए.कंपनी का कहना है कि वह केवल अधिकृत डॉक्टरों और संस्थानों को ही दवाएं देती है, और उसने ईडी को अपने पूरे सप्लाई रिकॉर्ड सौंप दिए हैं.

जांच अटकी- रिकॉर्ड गायब

हालांकि, ईडी की जांच के अलावा जनवरी 2025 में पंजाब स्वास्थ्य विभाग ने भी अपनी आंतरिक जांच शुरू की. लेकिन यह जांच अब अधर में लटक गई है. कारण यह है कि कई केंद्र बंद हो चुके हैं और उनके रिकॉर्ड तक पहुंचना लगभग नामुमकिन हो गया है.

सिस्टम में सेंध कैसे लगी?

जिन केंद्रों के लाइसेंस 2016 से 2022 के बीच दिए गए, वे उस दौर में तेजी से बढ़े जब सरकारें बदल रही थीं. पहले अकाली-भाजपा गठबंधन और फिर कांग्रेस सरकार के कार्यकाल में नियम बने लेकिन निगरानी कमजोर रही. मौजूदा आम आदमी पार्टी सरकार के आने के बाद ही ज्यादातर गड़बड़ियां सामने आईं. लाइसेंस देने की प्रक्रिया भले मजबूत है, लेकिन बाद की निगरानी लगभग नाममात्र की रही.

तीन साल के लिए मिलता लाइसेंस

नशामुक्ति केंद्रों को लाइसेंस तीन साल के लिए दिया जाता है, जिसमें शर्त होती है कि केंद्र में मनोचिकित्सक, योग्य स्टाफ और दवाओं का पूरा लेखा-जोखा ऑनलाइन दर्ज होना चाहिए. लेकिन असलियत यह है कि जिला स्तरीय समितियां शायद ही कभी निरीक्षण करें.

निगरानी में ढिलाई या जानबूझकर आंख बंद करना?

बंसल के खिलाफ जब एक जिले में शिकायत आई, तब भी अन्य जिलों के केंद्रों की जांच नहीं की गई. अधिकारियों ने "वर्कलोड" का बहाना दिया. किसी भी प्राइवेट नशामुक्ति केंद्र का वित्तीय ऑडिट कभी नहीं हुआ.

पंजाब में नशामुक्ति क्लीनिक की दशा

पंजाब में 529 सरकारी नशामुक्ति क्लीनिक चल रहे हैं, लेकिन वहां भीड़ बहुत अधिक होती है. इसी बोझ को कम करने के लिए 177 प्राइवेट सेंटर को लाइसेंस दिया गया था. यह पहल “कॉम्प्रिहेंसिव एक्शन अगेंस्ट ड्रग एब्यूज योजना का हिस्सा थी. इसका मकसद साफ था प्राइवेट डॉक्टर्स को प्रमोट करना ताकि नशे की पकड़ कम की जा सके.पर ऐसा हुआ नहीं. कुछ ने इस पहल को कमाई का जरिया बना लिया. दवाओं को मरीजों की जगह नशे के बाजारों तक पहुंचाया गया. यह पूरा सिस्टम, जो राहत देने के लिए बनाया गया था, खुद लत फैलाने का जरिया बन गया.

इलाज या कारोबार?

डॉ. अमित बंसल का मामला सिर्फ एक व्यक्ति या एक कंपनी का नहीं है. यह उस पूरे सिस्टम की कहानी है, जहां नशा छुड़ाने के नाम पर करोड़ों की गोलियां बेची जाती रहीं और सरकारी तंत्र ने आंख मूंद ली. पंजाब में नशा केवल एक सामाजिक समस्या नहीं रह गया है. यह अब उन संस्थानों के भीतर तक घुस चुका है, जिन्हें इसे मिटाने की जिम्मेदारी दी गई थी.

पंजाब न्‍यूज
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