जिन्होंने कभी नहीं देखा स्कूल, अब 50 की उम्र में पास की परीक्षा, झारखंड में शिक्षा की ओर नया कदम
इस अभियान का मकसद 2030 तक शत-प्रतिशत साक्षरता हासिल करना है. जिला शिक्षा अधीक्षक आशीष कुमार पांडेय बताते हैं कि अब तक हजारों लोग इस मुहिम का हिस्सा बन चुके हैं. खास बात यह है कि इसमें 50 साल से ऊपर के वे लोग भी शामिल हैं, जिन्होंने कभी स्कूल का मुंह तक नहीं देखा था.

झारखंड के पूर्वी सिंहभूम जिले में रविवार का दिन खास रहा. उम्र भले ही उनके चेहरों पर झलक रही थी, लेकिन सीखने का जज्बा अब भी जवान था. कोई 50 का, तो कोई 60 साल का. किसी के हाथ लिखते समय कांप रहे थे, किसी की लिखावट तिरछी पड़ रही थी, लेकिन आंखों में सपना साफ था.
अब सिर्फ नाम भर नहीं, बल्कि पूरा अक्षरज्ञान सीखना है. और इसी जज्बे को परखने का मौका मिला जब इन बुजुर्गों ने पहली बार परीक्षा दी. यह संभव हुआ है जिले में चल रहे नव भारत साक्षरता अभियान के चलते, जिसे 2022 में शुरू किया गया था.
नव भारत साक्षरता अभियान और लक्ष्य
इस अभियान का मकसद 2030 तक शत-प्रतिशत साक्षरता हासिल करना है. जिला शिक्षा अधीक्षक आशीष कुमार पांडेय बताते हैं कि अब तक हजारों लोग इस मुहिम का हिस्सा बन चुके हैं. खास बात यह है कि इसमें 50 साल से ऊपर के वे लोग भी शामिल हैं, जिन्होंने कभी स्कूल का मुंह तक नहीं देखा था.
गांवों में अभियान की पहुंच
अभियान के तहत 1500 से अधिक स्वयंसेवक जुड़े, जिनमें सरकारी और गैर-सरकारी संगठन, सामाजिक संस्थाएं, स्कूल और कॉलेज के छात्र शामिल हैं. ये स्वयंसेवक गांवों में जाकर लोगों की पहचान करते और उन्हें पंजीकृत करते. पढ़ाई मुफ्त में सरकारी स्कूलों, गांवों के चौक-चौराहों और घरों में कराई गई. डुमरिया, गुदाबांधा, पोटका और पतमदा जैसे ग्रामीण इलाके साक्षरता के लिहाज से पिछड़े हैं, क्योंकि वहां के लोग खेती-किसानी और अन्य कामों में व्यस्त रहते हैं और पढ़ाई की ओर ध्यान कम देते हैं.
परीक्षा और साक्षरता प्रमाणपत्र
अभियान के तहत अब तक जिले में तीन परीक्षा आयोजित की जा चुकी हैं. इनमें कुल 28,000 लोगों को साक्षरता प्रमाणपत्र जारी किए गए, जिनमें 90 प्रतिशत महिलाएं थीं. इस पहल के तहत लोग 15 साल से लेकर 50 प्लस उम्र तक के शामिल हुए. साक्षरता अभियान के सदस्य सुजय कुमार ने बताया कि एक स्कूल को जनता जागरूकता केंद्र में बदल दिया गया है. यहां न केवल पढ़ाई होती है, बल्कि ग्रामीणों को कानूनी और डिजिटल शिक्षा भी दी जाती है, ताकि बैंक अकाउंट और अन्य डिजिटल सेवाओं में उन्हें कोई परेशानी न हो.
महिलाओं की बड़ी भागीदारी
अब तक जिले में तीन परीक्षाएं कराई गई हैं. इनमें से 28,000 लोगों को साक्षरता प्रमाणपत्र मिल चुका है, और इनमें से 90 प्रतिशत महिलाएं हैं. महिलाओं का इस अभियान में आगे आना गांवों में बदलाव की सबसे बड़ी उम्मीद है. जिला शिक्षा अधीक्षक का कहना है कि अगर महिलाएं साक्षर हों तो पूरा परिवार और समाज बदलता है.
पढ़ाई के साथ-साथ डिजिटल शिक्षा भी
कार्यक्रम सिर्फ अक्षरज्ञान तक सीमित नहीं है. एक स्कूल को जन-जागरण केंद्र में बदला गया है, जहां गांववालों को न सिर्फ पढ़ना-लिखना सिखाया जाता है, बल्कि कानूनी जानकारी और डिजिटल शिक्षा भी दी जाती है. ताकि उन्हें बैंक खाता, डिजिटल पेमेंट, या सरकारी योजनाओं का लाभ उठाने में कोई परेशानी न हो.कार्यक्रम से जुड़े सुझय कुमार बताते हैं कि कई ग्रामीण महिलाएं अब बैंक जाकर बिना मदद के फॉर्म भरने और पासबुक अपडेट कराने में सक्षम हो गई हैं. इसी तरह बुजुर्ग किसान अब यह समझ पा रहे हैं कि फर्जीवाड़े और साइबर ठगी से खुद को कैसे बचाएं.
गांववालों की खुशियां
वो लोग, जिन्होंने कभी सोचा भी नहीं था कि वे पढ़-लिख पाएंगे, अब कागज पर अपना नाम लिखते ही गर्व से मुस्कुराते हैं. गांव के बुजुर्ग कहते हैं कि शिक्षित होने के बाद अब बैंकिंग या सरकारी दफ्तरों में दिक्कतें कम हो गई हैं. किसी को अब दस्तखत करने के लिए अंगूठा नहीं लगाना पड़ता.गांव की महिलाएं बताती हैं कि वे अब अपने बच्चों की कॉपी भी देख सकती हैं. कोई-कोई तो यहां तक कह रही हैं कि अब वे बच्चों के साथ बैठकर होमवर्क चेक करती हैं.
शिक्षा की नई उम्मीद
इस अभियान की सबसे अनोखी बात यह है कि इसमें 15 साल की उम्र के युवाओं से लेकर 60 साल के बुजुर्ग तक शामिल हैं. यानी यह सिर्फ शिक्षा नहीं, बल्कि समाज में जागरूकता और आत्मसम्मान की पहल बन गई है.सरकार और स्थानीय प्रशासन का कहना है कि कार्यक्रम 2030 तक लगातार जारी रहेगा और कोशिश होगी कि जिले का कोई भी व्यक्ति अशिक्षित न रह जाए.