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बस्तर में मतांतरण को लेकर बड़ा आंदोलन, 14 से ज्यादा गांवों में पास्टरों के प्रवेश पर रोक; कांकेर जिले में गांव-गांव लग रहे बोर्ड

छत्तीसगढ़ के कांकेर जिले में मतांतरण को लेकर तनाव गहराता जा रहा है. 14 से अधिक आदिवासी गांवों में ग्राम सभाओं के प्रस्ताव के बाद पास्टरों और पादरियों के प्रवेश पर रोक लगा दी गई है. ग्रामीणों का कहना है कि यह कदम संस्कृति और परंपराओं की रक्षा के लिए है. छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने भी इन फैसलों को संवैधानिक करार दिया है, जिससे यह आंदोलन और मजबूत हुआ है.

बस्तर में मतांतरण को लेकर बड़ा आंदोलन, 14 से ज्यादा गांवों में पास्टरों के प्रवेश पर रोक; कांकेर जिले में गांव-गांव लग रहे बोर्ड
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( Image Source:  Sora_ AI )

Religious Conversion in Bastar: छत्तीसगढ़ के बस्तर संभाग के कांकेर जिले में मतांतरण को लेकर उपजा विवाद अब एक संगठित ग्रामीण आंदोलन का रूप ले चुका है. भानुप्रतापपुर विकासखंड के कुड़ाल गांव से शुरू हुई यह पहल अब जिले के 14 से अधिक गांवों तक फैल चुकी है, जहां ग्राम सभाओं के प्रस्ताव के बाद गांव की सीमाओं पर बोर्ड लगाकर पास्टरों और पादरियों के प्रवेश पर रोक लगा दी गई है.

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कांकेर जिले की लगभग 67 प्रतिशत आबादी आदिवासी है, जिनमें से अनुमानित सात प्रतिशत लोगों के मतांतरण की बात सामने आ रही है. विशेष रूप से अनुसूचित जाति की माहरा जाति, जिसकी आबादी करीब तीन लाख बताई जाती है, वहां 95 प्रतिशत तक मतांतरण होने के दावे ने इस विवाद को और गहरा कर दिया है.

बड़ेतेवड़ा गांव में अंतिम संस्कार के दौरान हुई हिंसा और तोड़फोड़

यह मामला आमाबेड़ा क्षेत्र के बड़ेतेवड़ा गांव में अंतिम संस्कार के दौरान हुई हिंसा और तोड़फोड़ के बाद तेज हुआ. इसके बाद कई गांवों की ग्राम सभाओं ने एकजुट होकर बाहरी धार्मिक हस्तक्षेप के खिलाफ प्रस्ताव पारित किए. ग्रामीणों और सरपंचों का कहना है कि यह फैसला किसी धर्म विशेष के विरोध में नहीं है, बल्कि आदिवासियों को प्रलोभन देकर कराए जा रहे मतांतरण को रोकने के उद्देश्य से लिया गया है. उनका आरोप है कि इससे उनकी पारंपरिक संस्कृति, सामाजिक संरचना और रीति-रिवाज खतरे में पड़ रहे हैं.

वर्तमान में कुड़ाल, मुसुरपुट्टा और कोड़ेकुर्रो समेत 14 से अधिक गांवों में ऐसे बोर्ड लगाए जा चुके हैं. दर्जनों अन्य गांवों में भी इसी तरह के प्रस्ताव लाने की तैयारी है. ग्राम सभाओं ने पेसा अधिनियम 1996 का हवाला देते हुए यह निर्णय लिया है और बोर्ड के जरिए स्पष्ट किया गया है कि गांवों में मसीही धार्मिक आयोजन और सभाएं प्रतिबंधित रहेंगी.

छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने खारिज की ग्राम सभाओं के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका

इस पूरे मामले में छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने भी अहम टिप्पणी की है. ग्राम सभाओं के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका को खारिज करते हुए कोर्ट ने कहा कि जबरन या प्रलोभन के जरिए हो रहे मतांतरण को रोकने के लिए लगाए गए ये बोर्ड असंवैधानिक नहीं हैं, बल्कि स्थानीय संस्कृति की रक्षा के लिए ग्राम सभा का एहतियाती कदम हैं.

बोर्ड पर क्या लिखा गया है?

बोर्ड पर साफ लिखा गया है कि आदिवासियों को प्रलोभन देकर किया जा रहा मतांतरण उनकी सांस्कृतिक पहचान और आदिम परंपराओं के लिए खतरा है. इसलिए ग्राम सभा के प्रस्ताव के तहत पास्टर, पादरी और मतांतरित व्यक्तियों के धार्मिक आयोजन के उद्देश्य से गांव में प्रवेश पर रोक लगाई गई है.

कुड़ाल गांव में अगस्त 2025 में हुई ग्राम सभा के बाद यह अभियान परवी, जनकपुर, भीरागांव, घोडागांव, जुनवानी, हवेचुर, घोटा, घोटिया, सुलंगी, टेकाठोडा, बांसला, जामगांव, चारभाठा और मुसुरपुट्टा जैसे गांवों तक तेजी से फैल गया.

नरहरपुर विकासखंड के जामगांव में मतांतरण

नरहरपुर विकासखंड के ग्राम जामगांव में भी मतांतरण का मामला सामने आया है. करीब सात हजार की आबादी वाले इस गांव में 14–15 परिवारों के अघोषित रूप से ईसाई धर्म अपनाने की बात कही जा रही है. सामाजिक कार्यकर्ता गौरव राव का आरोप है कि मतांतरण के जरिए स्थानीय सामाजिक ताने-बाने को कमजोर किया जा रहा है. बिना ग्राम सभा की अनुमति के चंगाई और प्रार्थना सभाएं आयोजित की जा रही हैं और मतांतरण के बाद नाम न बदलना भी नियमों का उल्लंघन है. वहीं, जिला पंचायत सदस्य गुप्तेश उसेंडी का कहना है कि क्षेत्र में बढ़ते विवादों को रोकने के लिए प्रभावी कानून बनाना और उसका सख्ती से पालन बेहद जरूरी है, अन्यथा आने वाले समय में सामाजिक संघर्ष और गहरा सकता है.

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