जनता की कमाई पर डाका! छत्तीसगढ़ शराब स्कैम में पूर्व IAS समेत 31 अफसरों की करोड़ों की संपत्ति अटैच, ‘पार्ट-बी’ स्कीम का खोला राज़
छत्तीसगढ़ में सामने आया शराब घोटाला सिर्फ आर्थिक अपराध नहीं, बल्कि उस सिस्टम पर सवाल है जिसे जनता के पैसे की रखवाली करनी थी. प्रवर्तन निदेशालय (ED) की जांच में ऐसे चौंकाने वाले तथ्य सामने आए हैं, जिन्होंने सरकारी महकमों की अंदरूनी कार्यशैली को बेनकाब कर दिया है. इस केस में पूर्व IAS अधिकारी और तत्कालीन आबकारी आयुक्त निरंजन दास समेत 30 से ज्यादा अधिकारियों की भूमिका जांच के घेरे में है.
छत्तीसगढ़ के बहुचर्चित शराब घोटाले ने एक बार फिर सिस्टम की सच्चाई को सामने ला दिया है. जिन अधिकारियों पर राज्य के राजस्व की सुरक्षा की जिम्मेदारी थी, वही अफसर कथित तौर पर करोड़ों की अवैध कमाई में लिप्त पाए गए. प्रवर्तन निदेशालय की ताज़ा कार्रवाई में पूर्व IAS अधिकारी समेत 31 आबकारी अफसरों की करोड़ों रुपये की संपत्ति अटैच की गई है.
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जांच में सामने आई ‘पार्ट-बी’ स्कीम ने यह भी उजागर किया है कि किस तरह सरकारी तंत्र के भीतर एक समानांतर व्यवस्था खड़ी कर जनता की कमाई पर डाका डाला गया.
करोड़ों की संपत्ति पर ईडी की कार्रवाई
ईडी ने इस मामले में करीब 38.21 करोड़ रुपये की चल-अचल संपत्तियां अटैच की हैं. इनमें आलीशान बंगले, प्रीमियम फ्लैट्स, कमर्शियल दुकानें और बड़े पैमाने पर कृषि भूमि शामिल हैं. इसके साथ ही बैंक खातों में जमा रकम, फिक्स्ड डिपॉजिट, बीमा पॉलिसियां, शेयर और म्यूचुअल फंड जैसे निवेश भी जब्त किए गए हैं. ये कार्रवाई ईडी की रायपुर जोनल यूनिट ने मनी लॉन्ड्रिंग कानून के तहत की है.
आबकारी विभाग का ‘पैरलल सिस्टम’
जांच में सामने आया कि आबकारी विभाग के भीतर ही एक समानांतर व्यवस्था खड़ी कर दी गई थी. इस नेटवर्क की कमान निरंजन दास और तत्कालीन CSMCL के एमडी अरुणपति त्रिपाठी के हाथ में बताई जा रही है. आरोप है कि सरकारी नियंत्रण को दरकिनार कर अवैध कमाई का रास्ता बनाया गया, जिससे राज्य को भारी नुकसान हुआ.
‘पार्ट-बी’ स्कीम: अवैध शराब का खेल
ईडी के अनुसार, घोटाले का केंद्र ‘पार्ट-बी’ नाम की एक गुप्त योजना थी. इसके तहत बिना रिकॉर्ड की देसी शराब बनाई और बेची गई. डुप्लीकेट होलोग्राम, बिना हिसाब की बोतलें और सीधे डिस्टिलरी से दुकानों तक सप्लाई-इस पूरी प्रक्रिया में सरकारी गोदामों को जानबूझकर नजरअंदाज किया गया. यह सब कुछ अधिकारियों की मिलीभगत से हुआ.
हर केस पर कमीशन, हर महीने मोटी रिश्वत
जांच में खुलासा हुआ कि आबकारी अधिकारियों को हर केस पर तय कमीशन मिलता था. अकेले निरंजन दास पर आरोप है कि उन्होंने इस घोटाले से 18 करोड़ रुपये से ज्यादा की अवैध कमाई की और हर महीने करीब 50 लाख रुपये की रिश्वत ली. कुल मिलाकर 31 अधिकारियों ने लगभग 89.56 करोड़ रुपये की अवैध रकम अर्जित की.
जांच जारी, परतें अब भी खुलनी बाकी
यह जांच एंटी करप्शन ब्यूरो और आर्थिक अपराध शाखा की एफआईआर के आधार पर शुरू हुई थी. ईडी का कहना है कि घोटाले से राज्य के खजाने को हजारों करोड़ का नुकसान हुआ. फिलहाल जांच जारी है और आने वाले दिनों में और बड़े खुलासों की उम्मीद जताई जा रही है.





