राघोपुर के विकास से डर गए तेजस्वी यादव! ऐसा क्या हुआ कि फुलपरास से भी चुनाव लड़ने का लिया फैसला?
राघोपुर सीट 35 साल से लालू यादव और उनके परिवार के पास है, लेकिन वे लोग राघोपुर में विकास का काम नहीं करा पाए. नीतीश के राज में रायपुर में गंगा पर एशिया का सबसे बड़ा पुल बना है. स्थानीय स्तर पर कई अन्य काम हुए हैं. चूंकि, राघोपुर बिहार के दियरा क्षेत्र में स्थिति है, इसलिए गंगा पर पुल बन जाने से यहां के लोग सीधे पटना सहित कई जिलों से जुड़ गए हैं.

बिहार विधानसभा चुनाव में इंडिया गठबंधन की ओर से आरजेडी नेता और लालू प्रसाद यादव के बेटे तेजस्वी घोषित 'सीएम फेस' हैं. इसके बावजूद गौर करने वाली बात यह है कि बिहार से सबसे बड़े सियासी परिवार का 'वारिस' यह युवा नेता परिवार की परंपरागत सीट 'राघोपुर' से चुनाव जीत को लेकर आश्वस्त नहीं है. यही वजह है कि उन्होंने कांग्रेस सांसद राहुल गांधी की तरह तेजस्वी यादव भी 2 विधानसभा सीटों से चुनाव लड़ सकते हैं.
राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के सूत्रों के हवाले से यह जानकारी सामने आई है, लेकिन आरजेडी प्रवक्ता ने इसकी पुष्टि कर दी है कि वो मधुबनी जिले के फुलपरास सीट से भी चुनाव लड़ सकते हैं. इस सीट से साल 1977 में कर्पूरी ठाकुर विधायक रह चुके हैं. वह बिहार के सीएम भी बने थे.
NDA का तिलिस्म तोड़ने के लिए तेजस्वी लड़ेंगे फुलपरास से चुनाव- RJD
तेजस्वी यादव के फुलपरास सीट से भी चुनाव लड़ने पर आरजेडी प्रवक्ता ऋषिकेश कुमार ने एक न्यूज डिबेट में कहा, "तेजस्वी यादव के लिए फुलपरास दूसरी सीट खोजी गई है, जहां से वह चुनाव लड़ेंगे. फुलपरास यादव बहुल सीट है."
ऋषिकेश कुमार ने आगे कहा, "इंडिया गठबंधन की स्थित उत्तर बिहार में बहुत खराब है. इस क्षेत्र की 130 सीटों में 100 से ज्यादा सीटों एनडीए के पास है. करीब 65 प्रतिशत से ज्यादा सीटों पर बीजेपी और जेडीयू का कब्जा है. उत्तर बिहार के मिथिलांचल और सीमांचल में इंडिया गठबंधन के आरजेडी और कांग्रेस की स्थिति बहुत खराब है. दरभंगा में एक मधुबनी में 2020 में आरजेडी सिर्फ दो सीटें जीत पाई थी."
उन्होंने कहा, "यही वजह है कि आरजेडी ने उत्तर बिहार में इंडिया गठबंधन की स्थिति को मजबूत करने के लिए फुलपरास से चुनाव लड़ने का फैसला लिया है, ताकि उसका असर दरभंगा, सीतामढ़ी, समस्तीपुर, सहरसा, शिवहर, सीमांचल में आने वाले जिलों पर पार्टी की स्थिति मजबूत हो सके. एनडीए के पास दक्षिण बिहार से सिर्फ 25 सीटों आई थी. इस क्षेत्र में एनडीए के तिलिस्म को रोकने के लिए रेणु कुशवाहा व कुछ अन्य नेताओं को आरजेडी में शामिल कराया गया है."
नीतीश के विकास से डरे लालू के लाल - नीरज कुमार
इसके उलट, बीजेपी प्रवक्ता नीरज कुमार का कहना है, "राघोपुर में सीएम नीतीश कुमार के विकास की रफ्तार देख तेजस्वी यादव को हार का डर सता रहा है. इसलिए, उन्होंने जहां से पूर्व सीएम कर्पूरी ठाकुर चुनाव लड़े थे वहां से भी चुनाव लड़ने का फैसला लिया है. सच यह है कि वो कहीं से भी चुनाव लड़ लें, इस बार उन्हें दांतों तले चने चबाने होंगे. बिहार की जनता उन्हें सबक सिखाएगी. बिहार की जनता जंगलराज टू की बात सुनकर आज भी सिहर उठता है."
तेजस्वी 2020 में हार जाते, चिराग ने बचा लिया था- रंजन सिंह
बिहार लोक जनशक्ति पार्टी रामविलास के प्रवक्ता रंजन सिंह के मुताबिक, "तेजस्वी यादव इस बार परिवार की परंपरागत सीट होने के बावजूद राघोपुर से चुनाव हार जाएंगे, इसलिए उन्होंने मधुबनी का यादव बहुल सीट फुलपरास से भी चुनाव लड़ने का फैसला लिया है. तेजस्वी 2020 में चुनाव हार जाते. वो गनीमत रही कि चिराग पासवान ने अपनी पार्टी से राजपूत उम्मीदवार राकेश रोशन उतार दिया था, जिसकी वजह से बीजेपी प्रत्याशी सतीश राय करीब 25 हजार वोटों से हार गए थे. करीब इतने ही वोट चिराग के उम्मीदवार को मिले थे. यह हाल तेजस्वी यादव का उस समय था, जब 35 साल से इस सीट पर उनके परिवार का कब्जा है. राघोपुर विधानसभा सीट पर करीब 1.5 लाख मतदाता यादव हैं."
रंजन सिंह के अनुसार, "राघोपुर सीट 35 साल में लालू यादव और उनके परिवार के पास है, लेकिन वो राघोपुर में विकास का काम नहीं करा पाए. नीतीश के राज में राघोपुर में गंगा पर एशिया का सबसे बड़ा पुल बना है. इसके अलावा, स्थानीय स्तर पर कई अन्य काम भी हुए हैं. चूंकि, राधोपुर बिहार के दियरा क्षेत्र में स्थिति है, इसलिए गंगा पर पुल बन जाने अब वो सीधे पटना सहित कई जिलों से जुड़ गया है. अब राघोपुर के लोगों कहीं आना जाना आसान हो गया. यही वजह है कि तेजस्वी यादव हार के डर से परिवार को विरासत को बचाने के लिए यहां से चुनाव तो लड़ेंगे लेकिन जीत के लिए उन्होंने फुलपरास से चुनाव लड़ने का फैसला लिया है. राघोपुर से लालू परिवार के जीत की मुख्य वजह इस सीट पर यादव मतदाताओं की संख्या करीब डेढ़ लाख होना है."