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जेठानी–देवरानी की तरह क्यों है नीतीश-BJP के रिश्ते की कहानी? कभी साथ तो कभी जुदाई की है ये Story

बिहार की राजनीति हमेशा से उतार-चढ़ाव और गठबंधनों के फेरबदल के लिए जानी जाती है. राज्य की जनता चाहे जिसे वोट दे दे, सीएम तो नीतीश कुमार ही बनते हैं. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने सत्ता पलटने के अपने इस क्रम को 2022 में एक बार फिर दोहरा दिया. इससे पहले 1952 से 1968 और 1979 से 1990 के दौर को छोड़ दें तो बिहार में आजादी के बाद हमेशा गठबंधन का दौर रहा है. गठबंधन की इस राजनीति में सबसे दिलचस्प कहानी और नाजुक डोर है बीजेपी-नीतीश कुमार (जेडीयू) की. पिछले 29 सालों से दोनों के बीच ये रिश्ता "जेठानी-देवरानी" जैसा रहा है.

जेठानी–देवरानी की तरह क्यों है नीतीश-BJP के रिश्ते की कहानी? कभी साथ तो कभी जुदाई की है ये Story
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बिहार की सत्ता की कहानी में नीतीश कुमार और बीजेपी का रिश्ता सबसे अहम रहा है. कभी एक-दूसरे के बिना अधूरा दिखने वाला यह गठबंधन कई बार टूटा, फिर जुड़ा. सत्ता के समीकरण से लेकर सियासी रणनीति तक, इस रिश्ते में हर बार नए और दिलचस्प मोड़ आए. खास बात यह है कि हर बार नए समीकरण गढ़े गए. आइए, जानते हैं पिछले 29 सालों में नीतीश–बीजेपी गठबंधन की पूरी कहानी.

दिल है हिन्दुस्तानी वाला सफर?

जनता दल यूनाइटेड (नीतीश कुमार) और बीजेपी के बीच सियासी सफर साल 1990 के दशक में शुरू हुआ. इय बीच जनता दल के टूटने के बाद जब क्षेत्रीय राजनीति ने जोर पकड़ा, तब नीतीश ने बीजेपी के साथ आकर अपनी राजनीतिक जमीन बिहार में मजबूत की. दोनों की साझेदारी ने नीतीश को राष्ट्रीय राजनीति में पहचान दिलाई.

पहली जुदाई: 1994-1996 का दौर

साल 1994 में समता पार्टी के गठन के बाद नीतीश कुमार ने बीजेपी के साथ हाथ मिलाया. दोनों की जोड़ी ने 1996 और 1999 के लोकसभा चुनावों में बीजेपी को बिहार में मजबूती दी, लेकिन सत्ता समीकरण और आपसी खींचतान के चलते यह रिश्ता पहली बार दरका.

साथ मिलकर सत्ता पर कब्जा: 2005

साल 2000 में विधानसभा चुनाव के बाद 3 मार्च को नीतीश कुमार ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली, लेकिन उनकी ये सरकार सिर्फ 7 दिन चली. सरकार गठन में बीजेपी ने नीतीश कुमार का साथ दिया था.

इसके बाद बिहार की राजनीति में बड़ा बदलाव 2005 में आया. लालू प्रसाद यादव की सत्ता को खत्म करने के लिए नीतीश कुमार और बीजेपी ने मिलकर एनडीए सरकार बनाई. यही वह दौर था जब बिहार की राजनीति में नीतीश–बीजेपी गठबंधन ने मजबूत पकड़ बनाई और विकास का नया आयाम बिहार में पेश किया. इसके के बाद दोनों पार्टी साल 2010 में मिलकर चुनाव लड़े और ऐतिहासिक जीत हासिल की. एनडीए गठबंधन को 200 से ज्यादा सीटें मिली थी.

दूसरी जुदाई: 2013 का बड़ा ब्रेकअप

साल 2013 तक सब कुछ सही चल रहा था, लेकिन नरेंद्र मोदी को बीजेपी का पीएम उम्मीदवार बनाए जाने के बाद रिश्ते बदलने के संकेत मिले. हालांकि नीतीश कुमार ने एक पार्टी का आयोजन किया था, लेकिन एक फुल पेज का विज्ञापन छपा. विज्ञापन में बिहार सरकार को गुजरात सरकार द्वारा प्रदेश के भूकंप राहत कोष को दिए 5 करोड़ रुपये का जिक्र था. इसकी जानकारी नीतीश कुमार को नहीं दी गई थी. अचानक सभी अखबारों में छपे इस विज्ञान ने नीतीश कुमार को नाराज कर दिया. उन्होंने बीजेपी से रिश्ता तोड़ दिया. नीतीश ने धर्मनिरपेक्ष राजनीति का हवाला देकर गठबंधन से अलग होने का ऐलान किया. यह बिहार की राजनीति का अहम मोड़ था.

वापसी और फिर अलगाव: 2017 से 2022

साल 2015 में नीतीश ने आरजेडी और कांग्रेस के साथ महागठबंधन बनाया और बीजेपी के खिलाफ चुनाव लड़ा. इस बार बीजेपी गठबंधन की बुरी हार हुई. बीजेपी सिर्फ 54 सीटों पर सिमट गई, लेकिन 2017 में हालात बदले. आरजेडी नेताओं के भ्रष्टाचार को लेकर नीतीश ने एक बार फिर बीजेपी का दामन थाम लिया. साल 2020 का चुनाव दोनों मिलकर लड़े. दोनों ने मिलकर सरकार बनाई.

दोनों दलों के शीर्ष नेताओं के बीच मतभेद की वजह से साल 2022 आते-आते एक बार फिर गठबंधन टूटा और नीतीश ने महागठबंधन में वापसी की. लेकिन आरजेडी के साथ यह गठबंधन लंबा नहीं चला और नीतीश कुमार लोकसभा चुनाव 2024 से पहले फिर एनडीए में लौट आए.

जेठानी-देवरानी जैसा रिश्ता कैसे?

बीजेपी और नीतीश कुमार का रिश्ता बार-बार जुड़ने और टूटने के बावजूद बिहार की राजनीति का केंद्र रहा है. कभी सहयोग, कभी टकराव और कभी समझौते की राजनीति ने इसे "जेठानी-देवरानी का रिश्ता" बना दिया. अब 2025 के चुनाव से पहले फिर से इस रिश्ते की चर्चा तेज है.

बिहार विधानसभा चुनाव 2025बिहार
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