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2005 में बिहार में क्यों नहीं हुआ विधानसभा का गठन, किसने की थी राष्ट्रपति शासन लगाने की अनुशंसा? फिर जो हुआ...

बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के बाद भी सरकार का गठन नहीं हो सका. इसकी वजह यह थी कि किसी भी पार्टी या गठबंधन को बहुमत न मिलने और जोड़-तोड़ की राजनीति के आरोपों के बीच राज्यपाल बूटा सिंह ने तत्कालीन केंद्र सरकार को प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लागू करने की अनुशंसा की थी. उसके बाद उसी साल नवंबर में चुनाव हुए तो जेडीयू-बीजेपी की सरकार बनी और आरजेडी अभी तक सत्ता में वापसी नहीं कर पाई.

2005 में बिहार में क्यों नहीं हुआ विधानसभा का गठन, किसने की थी राष्ट्रपति शासन लगाने की अनुशंसा? फिर जो हुआ...
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( Image Source:  https://vidhansabha.bihar.gov.in/ )

बिहार विधानसभा चुनाव 2005 प्रदेश की राजनीति के इतिहास का अहम मोड़ माना जाता है. एक ऐसा मोड़ जिसके बाद लालू यादव अपनी पार्टी को दो दशक बाद भी वहां की सत्ता में वापसी नहीं करवा पाए. दरअसल, किसी भी गठबंधन को बहुमत न मिलने पर तत्कालीन राज्यपाल बूटा सिंह ने राष्ट्रपति शासन की सिफारिश केंद्र से की थी. केंद्र सरकार ने सिफारिश पर अमल करते हुए विधानसभा भंग कर राष्ट्रपति शासन लगा दिया. उसके बाद जो हुआ उसने बिहार की राजनीति को नई दिशा दी.

दो महीने बाद फिर विधानसभा चुनाव होने हैं. दो दशक से लालू यादव इस कोशिश में जुटे हैं कि आरजेडी बिहार की सत्ता में अपने दम पर लौटे, लेकिन ऐसा अभी तक संभव नहीं हो पाया है. फिलहाल, इस बात को लेकर कयासबाजी का दौर जारी है कि इस बार तेजस्वी यादव करिश्मा दिखा पाते हैं या नहीं.

सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी RJD

बिहार विधानसभा चुनाव 2005 के नतीजे किसी भी दल या गठबंधन के पक्ष में नहीं थे. 15 साल से सत्ता में रहने के बावजूद लालू यादव सरकार बनाने में उस समय विफल हुए थे. हालांकि, सबसे बड़ी पार्टी आरजेडी बनकर उभरी थी, लेकिन वे बहुमत के लिए जरूरी आंकड़े नहीं जुटा पाए. आरजेडी के पास 75 सीटें थीं, लेकिन यह सरकार बनाने के लिए पर्याप्त नहीं था. बीजेपी और जेडीयू के गठबंधन के पास 92 सीटें थीं, लेकिन सरकार बनाने की संख्‍या वे भी नहीं जुटा पाए. हालांकि, सरकार बनाने के लिए दोनों तरफ से नेताओं ने कोशिश की थी.

विधानसभा भंग होने की वजह

इसके बाद तत्कालीन राज्यपाल बूटा सिंह ने केंद्र कांग्रेस की अगुवाई वाली यूपीए सरकार से विधानसभा भंग कर फिर से चुनाव कराने की अनुशंसा कर दी. केंद्र सरकार ने भी राज्यपाल की सिफारिश पर अमल करते हुए प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लगा दिया. कहा जाता है कि ऐसा तत्कालीन केंद्र सरकार में शामिल राष्‍ट्रीय जनता दल के नेता लालू यादव के दबाव में किया गया था. बाद में सुप्रीम कोर्ट ने विधानसभा भंग कर इस फैसले को असंवैधानिक ठहराया था. तब तक बहुत देर हो चुकी थी और नए सिरे से चुनाव की प्रक्रिया शुरू हो चुकी थी.

राष्ट्रपति शासन की सिफारिश क्यों?

फरवरी 2005 में बिहार विधानसभा के चुनाव परिणाम में न तो आरजेडी, नहीं जेडीयू-भाजपा गठबंधन, और न ही अन्य दल स्पष्ट बहुमत हासिल कर सके. 'हंग असेंबली' की स्थिति में राजनीतिक जोड़-तोड़ और दल-बदल की संभावनाएं तेज हो गईं. राज्यपाल बूटा सिंह ने रिपोर्ट भेजकर केंद्र को इसकी जानकारी दी. उन्होंने अपनी रिपोर्ट में बताया कि किसी भी दल के पास स्थिर सरकार बनाने के लिए पर्याप्त संख्या नहीं है और खरीद-फरोख्त की संभावना बढ़ गई है.

विजेता प्रत्याशी नहीं बन सके विधायक

फरवरी 2005 में हुए बिहार विधानसभा चुनाव के विजेता उम्मीदवारों को विधानसभा के दर्शन तक का मौका नहीं मिला. विधानसभा का औपचारिक गठन हुए बगैर ही इसे भंग कर राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया. बिहार विधानसभा की ना तो कोई बैठक हुई और ना ही नवनिर्वाचित प्रतिनिधियों को विधायक पद की शपथ लेने का मौका मिला. लगभग छह महीने बाद दोबारा चुनाव हुए तो कई उम्मीदवार अपनी जीत दोहरा नहीं सके. उदाहरण के लिए सीवान सीट से फरवरी में जीतने वाले अवध बिहारी चौधरी अगले चुनाव में हार गए. फरवरी के चुनाव में जीरादेई सीट से जीतने वाले राजद के अजीजुल हक इसके बाद कभी चुनाव नहीं जीत सके. ऐसा ही गरखा से चुने जाने वाले मुनेश्वर चौधरी के साथ हुआ. आरजेडी के भी कई विजेता उम्मीदवार उसी साल नवंबर में संपन्न चुनाव हार गए. कई विजेता प्रत्याशी के लिए ये आखिरी चुनावी जीत साबित हुई.

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