नीतीश पर सीधा हमला करने से बचने वाले लालू इस बार क्यों हो रहे इतने हमलावर?
राष्ट्रीय जनता दल के प्रमुख लालू यादव आमतौर पर नीतीश कुमार के खिलाफ तल्ख लहजे बहुत कम बोलते हैं, लेकिन बिहार विधानसभा चुनाव से पहले उन्होंने सीएम पर तंज कसा है. क्या इसे यह मान लिया जाए कि लालू चुनावी जंग में जेडीयू को कोई रियायत का लाभ नहीं उठाने देंगे. या फिर उन्होंने नीतीश को तंजिया लहजे में बड़ा संकेत दिया है.

आरजेडी प्रमुख लालू यादव जो कभी नीतीश कुमार के खिलाफ शब्दों को तोल-मोल कर इस्तेमाल करते थे, वही अब हर मंच से खुलकर हमला बोल रहे हैं. सवाल यह नहीं है कि लालू यादव ने नीतीश को निशाना क्यों बनाया? असली सवाल यह है कि अब तक जो 'संयम' था, वो अचानक 'संघर्ष' में कैसे बदल गया? बिहार की राजनीति में यह एक बड़ा संकेत है. एक तरफ तेजस्वी यादव की भूमिका पर भरोसा, दूसरी तरफ नीतीश कुमार पर पूर्ण अविश्वास, बिहार के पिछले दो दशक की राजनीति के लिहाज से देखें तो उसमें ऐसा कैसे संभव है? ऐसा इसलिए कि नीतीश कुमार अपनी सुविधा के हिसाब से गुट बदलते रहे हैं.
बिहार राजनीति की इसकी चर्चा इसलिए हो रही है कि 12 जुलाई को लालू यादव ने एक कार्टून और सिंगल लाइन टेक्स्ट सभी से साझा किया है. खासकर, उन्होंने नीतीश कुमार को लेकर कहा है कि उन्हें लोक सेवा की नहीं बल्कि कुर्सी की चिंता है. गांठ बहुत घनघोर है. कार्टून में सीएम नीतीश कुमार सहित पीएम मोदी, चिराग पासवान, सम्राट चौधरी, विजय कुमार सिन्हा, जीतन राम मांझी हैं. इसमें सीएम नीतीश कुमार को उन्होंने कुर्सी से गिरते दिखाया है.
पुराने रिश्तों का हो गया अंत
दरअसल, लालू यादव और नीतीश कुमार का राजनीतिक रिश्ता जेपी आंदोलन के समय से ही है. हालांकि, 1990 के बाद उसमें बड़े पैमाने पर उतार-चढ़ाव देखने को मिला है, लेकिन संवाद बने रहे हैं. दोनों ने एक साथ में जेपी आंदोलन लड़ा, सत्ता साझा की, और फिर रास्ते जुदा किए, लेकिन हर बार जब भी साथ लौटे, लालू ने नीतीश को एक ‘सियासी स्पेस’ दिया. यहां तक कि 2022 में जब ‘महागठबंधन 2.0’ बना, तब भी लालू ने नीतीश को प्रधानमंत्री पद का समर्थन तक दिया, लेकिन अब समय बदल चुका है.
तो गठबंधन के साथ भरोसा भी टूटा
17 महीने तक आरजेडी के साथ सरकार चलाने के बाद फिर से एनडीए कुनबे में नीतीश कुमार के लौटने की घटना को लालू यादव ने इस बार व्यक्तिगत विश्वासघात मान लिया है. सिर्फ गठबंधन टूटना मुद्दा नहीं था. नीतीश का ‘तेजस्वी को भावी सीएम’ कहकर अचानक पलटना लालू के आत्मसम्मान पर चोट थी. यही कारण है कि लालू यादव अब कह रहे हैं, “नीतीश की बातों पर अब कोई भरोसा नहीं करता, वो सत्ता के लिए कुछ भी कर सकते हैं.”
लालू ने खोला निर्णायक मोर्चा
लालू यादव यह मानकर चल रहे है कि बिहार विधानसभा चुनाव 2025 आरजेडी को स्पष्ट तौर पर नेतृत्व करना है. इस बार पार्टी नीतीश की ‘विचारधारा की उलझन’ को मुद्दा बनाएगी. लालू जान चुके हैं कि नीतीश को 'मौन रहकर' हराना अब संभव नहीं है, अब जरूरत है सीधी टक्कर देने की है. यही वजह है कि उन्होंने खुद मोर्चा संभाल लिया है. ताकि तेजस्वी को एक निर्णायक नेता के रूप में पेश करना संभव हो सके.
संदेश सिर्फ नीतीश को नहीं, जनता को भी
आरजेडी के राष्ट्रीय अध्यक्ष लालू यादव के हमले दरअसल सिर्फ नीतीश के खिलाफ नहीं हैं, बल्कि जनता के लिए एक संदेश हैं. तभी तो उन्होंने नारा दिया है, “अब भ्रम में मत रहो, नीतीश अब विकल्प नहीं हैं.” ये हमले सत्ता की राजनीति को सीधा चुनौती देते हैं. नीतीश के बार-बार पक्ष बदलने वाले इतिहास को जनता के सामने दोबारा खोलते हैं.
पर्दे के पीछे से नहीं चलेगी राजनीति
लालू यादव अब 'बड़े नेता' की चुप्पी छोड़कर 'जमीनी योद्धा' की तरह मैदान में हैं. उनके सीधे हमले से साफ है कि बिहार की राजनीति में अब पर्दे के पीछे की राजनीति नहीं चलेगी. लड़ाई अब सीधी और निर्णायक होगी. 2025 में लड़ाई ‘विकल्प’ की नहीं, ‘विश्वास’ की होगी. लालू इसे अब शब्दों में नहीं, तेवरों में दिखा रहे हैं.