जब लालू यादव पहली बार बने बिहार के CM तो नाराज हो गईं थी उनकी मां - जानें क्या कहा था, क्यों हंस पड़े थे लोग?
बात मंडल-कमंडल के दम पर पहली बार लालू यादव का सीएम बनने से संबंधित है. बिहार सीएम बनने के बाद लालू प्रसाद यादव पहली बार मां मरछिया देवी से मिलने अपने गृह जिले गोपालगंज के फुलवरिया पहुंचे. घर पहुंचने पर लालू यादव ने मां को प्रणाम किया. साथ ही कहा, "मैं सीएम बन गया हूं." इस पर मां मरछिया देवी की आंखों में चिंता तैरने लगी. उन्होंने जो कहा वो आज भी लोगों के जेहन में गूंजता है - "अब त सरकारी नौकरी न लागी न? एक मां की इस भावना को वही समझ सकता है, जो देश की जमीनी हकीकत को जनता है."

देश या राज्य की राजनीति की ऊंचाइयों पर पहुंचना हर परिवार के लिए गर्व की बात होती है, लेकिन जब बात लालू प्रसाद यादव की हो तो उनकी कोई भी कहानियां भी आम नहीं होतीं. साल 1990 में जब लालू यादव पहली बार बिहार के मुख्यमंत्री बने तब पूरे गांव में ढोल-नगाड़े बजे. दलित, यादव, गरीब, मुसलमान और अति पिछड़े वर्ग के लोगों में खुशी का उन्माद छा गया था. लोग जमकर जश्न मना रहे थे, लेकिन घर के अंदर एक मां की आंखें नम थीं. वो मां कोई और नहीं सीएम लालू यादव की मां मरछिया देवी थीं? उनकी आंखों में चिंता इस बात की थी कि अब उनका बेटा 'सरकारी नौकरी' नहीं करेगा!
एक मां की यह मासूम चिंता उस दौर की सोच और व्यवस्था दोनों को बखूबी समझाने के लिए काफी है. जब सरकारी नौकरी को ही जिंदगी की सबसे बड़ी सफलता माना जाता था. सिस्टम की बारीकियों से अनजान और गुमनाम लोगों के लिए 'मुख्यमंत्री' बनना भी उससे छोटा लग सकता था.
लालू यादव के सीएम बनने की कहानी
1990 में जब लालू प्रसाद यादव बिहार के मुख्यमंत्री बने, तो यह न केवल राजनीतिक समीकरणों का उलटफेर था बल्कि सामाजिक न्याय की राजनीति की नई शुरुआत भी थी. गांव-गांव में जश्न था, लेकिन घर में एक सन्नाटा था. जब बेटे के मुख्यमंत्री बनने की खबर मरछिया देवी तक पहुंची, तो उन्होंने खुशी के बजाय चिंता भरे स्वर में कहा -0 "अब त सरकारी नौकरी न लागी न?" यह वाक्य न केवल भावनात्मक था बल्कि उस मां की जमीनी सोच का प्रतीक है जो बेटे की ऊंचाई से ज्यादा उसकी नौकरी की सुरक्षा को 'मां' अहम मानती थी.
मरछिया देवी की ये बात व्यंग्य बन गया
मरछिया देवी ने अपनी भावना का इस तरह से इजहार सिस्टम की जानकारी न होने की वजह से किया था, लेकिन उनका उस समय दिया गया कथन बाद में व्यंग्य बन गया, जो यह दर्शाता है कि कैसे सत्ता में पहुंचने के बावजूद भी आम लोगों की सोच और प्राथमिकताएं (नौकरी, रोटी और परिवार)जैसी बुनियादी जरूरतें ही होती हैं.
मां के सवाल पर लालू यादव का जवाब
मां के इस सवालों का जिक्र जब उसी दिन पत्रकारों ने लालू यादव से किया तो उन्होंने हंसते हुए कहा – "हमरी माई तो सोचती थी कि नौकरी लग जाए, राजनीति के बारे में त उ जानती ही नहीं थी."
मरछिया के बयान का संदेश
मां मरछिया देवी का बयान, 'हमें यह भी सिखाता है कि चाहे कोई कितना भी बड़ा नेता क्यों न बन जाए, मां की नजरों में वह हमेशा वही बेटा होता है, जिसकी चिंता उसे हर पल रहती है.' लालू यादव के मुख्यमंत्री बनने पर मां मरछिया देवी की चिंता बताती है,' सत्ता और पद भले ही बड़े हों, लेकिन घर की जमीन पर मां की सोच हमेशा सरल और सच्ची होती है. हालांकि, यह किस्सा न भावनाओं से भरा है.
वरिष्ठ पत्रकार संतोष सिंह ने अपनी पुस्तक 'लालू-नीतीश का बिहार कितना राज कितना काज' में भी इस बात का जिक्र किया है. उन्होंने लिखा कि जब 1990 में बिहार में बदलाव की बयार बही. मात्र 42 साल की उम्र में लालू यादव 'फर्श से अर्श' पर पहुंच गए. उनके सिर पर सीएम सेहरा सज चुका था. सीएम बनने के बाद वह गोपालगंज स्थिति अपने गांव फुलवरिया पहुंचे. मां को बताया कि मैं सीएम बन गया हूं. पैर छूकर प्रणाम किया, तो उनकी मां Lalu Yadav के CM बनने पर दुखी हो गईं, मां मरछिया देवी, बोलीं- ^अब त सरकारी नौकरी न लागी न? मां की बात सुनने के बाद लालू ने जोर का ठहाका लगाया."
फिर, लालू यादव ने मां की ममता की नजाकत को समझते हुए अपनी मां को सीएम मतलब समझाने की कोशिश की. "मां, अब लालू, हथुआ महराज से बड़का आदमी बन गया है." इस पर मां ने तपाक से बोली - "ठीकवा, जायद... तोहरा के सरकारी नौकरी न मिलल ना - अच्छा ठीक है, जाने दो, सरकारी नौकरी नहीं मिली न ."