गलत टिकट, भोजपुरी गाने और... बिहार में आरजेडी की हार के थे ये कारण, बैठक में खुली पोल
बिहार चुनाव 2025 में इस बार आरजेडी को करारी शिकस्त का सामना करना पड़ा. आरजेडी ने 143 सीटों पर चुनाव लड़ा लेकिन उनको जीत सिर्फ 25 सीटों पर ही मिल पाई. वहीं हार के बाद हुई समीक्षा बैठकों में अब आरजेडी की हार के कई मुख्य कारण सामने निकलकर आ रहे हैं.
बिहार विधानसभा चुनाव के नतीजों ने पूरे राज्य की राजनीति को हिलाकर रख दिया है. आरजेडी जो साल 2020 में 75 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनी थी, इस बार महज 25 सीटों पर सिमट गई. महागठबंधन को कुल 35 सीटें मिलीं जबकि एनडीए 202 सीटों के साथ भारी बहुमत से जीती. चुनावी प्रदर्शन के बाद आरजेडी की अंदरूनी बैठकों में उठे सवालों ने साफ कर दिया कि हार के पीछे कई कारक लंबे समय से उबल रहे थे.
पार्टी के टिकट बांटने पर सवाल, प्रचार रणनीति में गड़बड़ी और स्थानीय नेताओं की नाराजगी जैसे मुद्दे अब खुलकर सामने आ रहे हैं. चुनाव से पहले ही कई नेता टकराव की स्थिति में थे और पार्टी नेतृत्व को बार-बार चेतावनियां मिल रही थीं, जिनकी अनदेखी अब पार्टी को भारी पड़ी.
टिकट बंटवारे पर फूटा गुस्सा
चुनाव घोषणा के तुरंत बाद टिकट वितरण आरजेडी के लिए विवाद का केंद्र बन गया. पिछले महीने पूर्वी चंपारण के मधुबन से आरजेडी नेता मदन प्रसाद साह को टिकट न मिलने पर उन्होंने जोरदार विरोध प्रदर्शन किया था. नाराज साह ने अपना गुस्सा सार्वजनिक रूप से व्यक्त करते हुए अपने कपड़े फाड़ दिए और लालू प्रसाद यादव तथा राबड़ी देवी के आवास 10, सर्कुलर रोड के बाहर सड़क पर लोटने लगे थे.
उन्हें विश्वास था कि गलत टिकट बंटवारे का खामियाजा पार्टी को भुगतना पड़ेगा. विरोध के दौरान उन्होंने यह भी भविष्यवाणी की थी कि पार्टी केवल 25 सीटों पर सिमट जाएगी और हुआ भी कुछ ऐसा ही.
आरजेडी का कमजोर प्रदर्शन
आरजेडी ने इस चुनाव में 143 सीटों पर प्रत्याशी उतारे, लेकिन नतीजे निराशाजनक रहे. साल 2020 में 75 सीटों वाली आरजेडी इस बार 25 सीट ही हासिल कर पाई. इसके साथ ही महागठबंधन 35 सीटों पर सिमट गईं, जबकि एनडीए ने 202 सीटों के साथ बड़ी जीत दर्ज की.
अंदरूनी बैठकों में खुली पोल
चुनावी हार के बाद हुई समीक्षा बैठकों में कई नेताओं ने माना कि गलत टिकट चयन, स्थानीय समीकरणों की समझ की कमी और चुनावी रणनीति में कमजोरियां पार्टी को भारी पड़ीं. कुछ जिलों में उम्मीदवारों के चयन से कार्यकर्ताओं में भारी आक्रोश पैदा हुआ, जिसने बूथ स्तर पर पार्टी की पकड़ को कमजोर किया.
प्रचार में गड़बड़ियां और भोजपुरी गाने विवाद
कई नेताओं ने प्रचार सामग्री और चुनावी कैंपेन को लेकर नाराजगी जताई. कुछ जिलों में ऐसे भोजपुरी गाने चलाए गए जिनके बोल पार्टी समर्थकों और मतदाताओं को पसंद नहीं आए. नेताओं के अनुसार, इससे पार्टी की गंभीर छवि को नुकसान पहुंचा और विरोधी दलों को हमला करने का मौका मिला.
इसके अलावा चुनावों से पहले प्रदेश और जिला स्तर के कई नेता इस बात को लेकर नाराज थे कि उनकी राय टिकट चयन में शामिल नहीं की गई. कई क्षेत्रों में उन चेहरों को टिकट दिया गया जो जमीनी स्तर पर उतने सक्रिय नहीं थे, जिससे वफादार कार्यकर्ताओं और स्थानीय समीकरणों की अनदेखी हुई.





