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बिहार में चीनी मिलों की कहानी: सरकार बंद पड़े 9 मिल को चालू करेगी, 25 नई लगाने की चुनौती: क्या नीतीश कर पाएंगे ये काम?

बिहार सरकार के आधिकारिक जानकारी के अनुसार वर्तमान में 9 चीनी मिलें राज्य में ऑपरेशन में हैं. नौ बंद पड़ी हैं. सरकार ने प्रदेश के लोगों से वादा किया था कि इसे चालू करेंगे और 25 नई चीन मिल भी चालू करेंगे. कभी देश में चीनी उत्पादन में नंबर वन बिहार आज बेहाल क्यों?

बिहार में चीनी मिलों की कहानी: सरकार बंद पड़े 9 मिल को चालू करेगी, 25 नई लगाने की चुनौती: क्या नीतीश कर पाएंगे ये काम?
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बिहार एक समय देश के प्रमुख चीनी उत्पादक राज्यों में रहा करता था, लेकिन आर्थिक, प्रबंधात्मक और कृषि-संबंधी कई कारणों से यहां की चीनी मिलें धीरे-धीरे बंद होती चली गई. अब 2025 में बनी नई सरकार ने इस गिरावट को पलटने की पहल की है. 9 बंद मिलों को फिर से चालू करने पर काम शुरू हो गया है. किसानों, मजदूरों और गन्ना-उद्योग दोनों के लिए एक बड़ा अवसर हो सकता है. इसके लिए यह जरूरी है कि गन्ना उत्पादन बढ़े, निवेश सही हो और मिलों का परिचालन सुचारु व पारदर्शी हो.

बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में प्रचंड जीत के बाद नीतीश कुमार के नेतृत्व में बनी एनडीए की सरकार ने नौकरी और रोजगार को लेकर बड़े फैसले लेने शुरू कर दिए हैं. एनडीए के घोषणा पत्र में 25 संकल्प लिया गया. अब उसको जमीन पर उतारने की कवायद भी शुरू हो गई है. उसी के तहत 9 पुरानी चीनी मिल को फिर से शुरू करने और 25 नई चीनी मिल खोलने का कैबिनेट में फैसला लिया है.

इन चीनी मिलों को खोलेगी नीतीश सरकार

मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक बिहार में बिट्रिश शासनकाल में चीनी मिलें खूब फली-फूली. चीनी मिल बिहार में लगाने के पीछे बड़ा कारण गन्ना उत्पादन के लिए गंगेटिक इलाके में उपयुक्त जमीन होना था. बिहार में एक समय नील की खेती बहुत होती थी लेकिन उसके खिलाफ जन विरोध की वजह से ब्रिटिश रूल ने नील की खेती की जगह गन्ना की खेती के शुरू कर दी. जिन बंद चीनी मिलों को फिर से चालू करने की योजना है उसमें:

निजी क्षेत्र की बंद चीनी मिलें

बिहार चीनी निगम की बंद मिलों को भी खोलने की योजना है, इसके तहत चार मिले हैं.

  • 1993- 94 में बंद हुई दरभंगा रैयाम चीनी मिल
  • 1996- 97 में बंद मधुबनी सकरी चीनी मिल
  • 1996-97 में बंद समस्तीपुर चीनी मिल
  • 1996-97 में बंद हुई मुजफ्फरपुर मोतीपुर चीनी मिल
  • 2013-14 में बंद श्री हनुमान शुगर मिल
  • 2021-22 में बंद हुई सासामुसा शुगर मिल
  • 1997- 98 में कावनपुर शुगर वर्क्स लिमिटेड मढ़ौरा
  • कावनपुर शुगर वर्क्स लिमिटेड बारा चकिया पूर्वी चंपारण
  • कावनपुर सूगर वर्क्स लिमिटेड चनपटिया पश्चिम चंपारण
  • 1997-98 में बंद सारण के मढ़ौरा का कावनपुर शुगर मिल

कभी थीं 33 चीनी मिलें

1947 तक बिहार में 33 चीनी मिलें थीं, जो देश के कुल उत्पादन का 40% योगदान देती थीं. प्रमुख मिलें 1914-1930 के बीच स्थापित हुईं. आज बिहार चीनी उत्पादन में देश का 5% से भी कम योगदान देता है. अभी गन्ना के कुल उत्पादन के 70% चीनी मिलों को बेचा जाता है. 20% इथेनॉल फैक्ट्री में उपयोग होता है. 10% गन्ना गुड और अन्य उत्पादों में खपत होता है.

चीनी मिल खोलना संभव

मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक बिहार में गन्ना उत्पादन के लिए उपयुक्त जमीन है. केन्या से चीनी मिल की मशीन ब्रिटिश शासन में लाई गई थी. इसके कारण आसानी से कई चीनी मिल की स्थापना हुई. बाद में बिहार की चीनी मिल बंद होने लगे. आज तो 5% के आसपास ही बिहार का देश के चीनी उत्पादन में योगदान है. यदि सरकार ने फैसला लिया है तो पुरानी चीनी मिलों को खोलना कोई बड़ी बात नहीं है.

रोजगार के बढ़ेंगे मौके

अगर इसका साइकिल कम कर दिया गया और साल में दो प्रोडक्ट गन्ना का होने लगे तो किसानों को इसका लाभ मिलेगा. एक चीनी मिल में 4000 लोगों को रोजगार मिल सकता है. उस हिसाब से रोजगार देने में चीनी मिल बहुत ही सहायक होगा.

इन चीनी मिलों के चिमनी से धुएं नहीं उठते

दरभंगा राज की चीनी मिल: 1980 से पहले 28 से अधिक चीनी मिलें बिहार में चल रही थीं. मधुबनी का लोहट चीनी मिल 1914 में अंग्रेज के समय स्थापित किया गया था. लोहट चीनी मिल 225 एकड़ की भूमि में दरभंगा राज के दरभंगा शुगर कंपनी ने स्थापित किया था. लोहट चीनी मिल का 150 एकड़ में कृषि फार्म और 75 एकड़ में कारखाना था ढुलाई के लिए पंडोल स्टेशन से लेकर लोहट चीनी मिल के अंदर तक रेलवे लाइन बिछाई गई थी.

घाटे के बाद लटका ताला

1974 में बिहार स्टेट शुगर कॉरपोरेशन लिमिटेड की स्थापना हुई. ताकि चीनी मिलों को चलाया जा सके लेकिन घाटा बढ़ने के बाद 1996 में लोहट चीनी मिल को भी बंद कर दिया गया है. 2022 में चीनी मिल की जो मशीन थी, कोलकाता की कंपनी बीबीएस इंफोमकान प्राइवेट लिमिटेड को 24 करोड़ में बेच दी गई. 1917 में मिल के अंदर रखे गए रेल इंजन को रेलवे यहां से ले जाकर दरभंगा स्टेशन के सामने सजा कर रखा है.

बिहार में अभी 9 मिलें चालू

देश में 2024-25 में 250 लाख टन के करीब चीनी का उत्पादन हुआ है और इसमें 5% से भी कम बिहार का उत्पादन है. उत्तर प्रदेश 87.50 लाख टन, महाराष्ट्र 80.06 लाख टन, कर्नाटक 39.5 लाख टन और बिहार का उत्पादन 7 लाख टन के आसपास है. बिहार में 9 चीनी मिल अभी काम कर रही हैं, जो चंपारण, गोपालगंज और समस्तीपुर इलाके में हैं. बिहार सरकार के नए फैसले से जिसे चीनी क्षेत्र में नहीं उम्मीद जगी है.

चीनी मिल के सामने चुनौतियां

चीनी मिल खोलने की राह में कई तरह की चुनौतियां हैं. विशेषकर किसान गन्ना की जगह दूसरे फसल का उत्पादन करने लगे हैं. ऐसे में किसानों को गन्ना की फसल उत्पादन करने के लिए प्रेरित करना आसान नहीं होगा.

बिहार राज्य चीनी निगम

बिहार राज्य चीनी निगम की स्थापना 28 दिसंबर 1974 को हुई थी. इसका मकसद रुग्ण और बंद पड़ी चीनी मिलों का संचालन करना और उन्हें पुनर्जीवित करना था. शुगर केन अंडरटेकिंग एक्ट 1976 और बिहार राज्य चीनी उपक्रम अध्यादेश 1985 के अंतर्गत 15 बंद चीनी मिलों लोहट, सकरी, समस्तीपुर, गरौल, बनमनखी, वारिसलीगंज, बिहटा, गुरारू, न्यू सावन, मोतीपुर, मीरगंज हथुहा, सिवान, लोरिया और सुगौली इकाई का अधिग्रहण किया गया.

बियाडा को दे दी जमीन

साल 2006 में नीतीश सरकार ने निविदा प्रक्रिया के माध्यम से निवेशकों को लीज के आधार पर चीनी मिलों के हस्तांतरण का फैसला लिया, लेकिन वह भी कारगर नहीं हुआ. चीनी मिलों की जमीन बियाडा को दे दी गई.

मुख्य सचिव की रिपोर्ट पर काम शुरू

नव गठित नीतीश सरकार ने पहली कैबिनेट में चीनी मिल खोलने और पुरानी चीनी मिल को फिर से शुरू करने का फैसला लिया है. इस पर गन्ना उद्योग मंत्री संजय कुमार ने कहा की चीनी मिलों को लेकर कैबिनेट में जो फैसला लिया गया है, इसको लेकर मुख्य सचिव की अध्यक्षता में कमेटी बनाई गई है.

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