बिहार की जनता को 'तीसरी ताकत' पर नहीं रहा भरोसा, कभी होते थे किंगमेकर, अब पहुंचे रसातल में
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 ने एक बड़ा राजनीतिक ट्रेंड साफ कर दिया-राज्य में ‘तीसरी ताकत’ पूरी तरह हाशिये पर पहुंच चुकी है. कभी किंगमेकर माने जाने वाले निर्दलीय और छोटे दल इस बार एक भी सीट नहीं जीत सके. 2000 में जहां अन्य दलों और निर्दलीयों को 36.8% वोट मिलता था, वह 2025 में घटकर सिर्फ 15.5% रह गया. इसी अंतर ने एनडीए को भारी बढ़त दिलाई जबकि महागठबंधन का वोट प्रतिशत बढ़ने के बावजूद उसके हाथ सीटें नहीं लगीं. छोटे दलों के वोट टूटने से सीधी लड़ाई एनडीए बनाम महागठबंधन में सिमट गई.
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 कई ऐतिहासिक रिकॉर्ड के साथ खत्म हुआ है. इस बार मतदाताओं ने मतदान प्रतिशत के नए आयाम तय किए, आजादी के बाद के सभी पुराने आंकड़े पीछे छूट गए. एनडीए गठबंधन ने शानदार प्रदर्शन किया, हालांकि वह अपने 2010 के सर्वश्रेष्ठ रिकॉर्ड से सिर्फ 5 सीट पीछे रह गया, जब बीजेपी-जेडीयू ने मिलकर 206 सीटें जीती थीं.
चुनाव के परिणामों ने एक और बड़ा ट्रेंड साफ कर दिया- बिहार विधानसभा में पहली बार एक भी निर्दलीय विधायक नहीं पहुंच सका. यह वही राज्य है जहां कभी 33 तक स्वतंत्र उम्मीदवार विधानसभा में जीतकर पहुंचते थे. लेकिन 2000 के बाद से लगातार घटती यह संख्या 2025 में जाकर शून्य पर आ गई.
पहली बार विधानसभा में ‘जीरो’ निर्दलीय
साल 2000 से शुरू हुआ निर्दलीय विधायकों का पतन 2020 में 1 तक पहुंचा और 2025 में 0 हो गया. 2000 में 20 निर्दलीय जीते थे, 2005 (फरवरी) में 17, अक्टूबर 2005 में 10, 2010 में 6, 2015 में 4, 2020 में 1 और इस बार एक भी नहीं. 2020 में जीतने वाले अकेले निर्दलीय सुमित सिंह को नीतीश कुमार ने मंत्री बनाया था. इस बार वह जेडीयू टिकट पर लड़े, लेकिन हार गए.
तीसरी ताकत का ग्राफ क्रैश: एनडीए को मिला बड़ा लाभ
चुनाव में एक और बड़ा ट्रेंड दिखा- द्विध्रुवीय मतदान. तीसरे मोर्चे और अन्य दलों का वोट लगातार घटता गया है.
2000 में अन्य दल + निर्दलीय = 36.8% वोट
2005 फरवरी चुनाव = 49.4% वोट (चरम)
2020 = 25.5%
2025 में सिर्फ 15.5% रह गया
विशेषज्ञों के अनुसार, महागठबंधन की करारी हार का असली कारण यही है. 2020 में जहां अन्य दलों व निर्दलीयों के पास 25.5% वोट थे, 2025 में यह घटकर 15.5% रह गया- यानी 10% वोट सीधे एनडीए की ओर शिफ्ट हुआ, जिसने उनकी जीत को बेहद आसान और प्रचंड बना दिया.
महागठबंधन का वोट बढ़ा, लेकिन सीटें ‘साफ’
डेटा बताता है कि महागठबंधन का वोट प्रतिशत 2020 के 37.2% से बढ़कर 2025 में 37.9% हो गया. मतलब- वोटर साथ रहा, लेकिन लाभ नहीं मिला, क्योंकि तीसरी ताकत के वोट एनडीए को चले गए और पूरा समीकरण बदल गया.
लालू यादव के दौर में ऐसे था निर्दलीयों का दबदबा
1990 में जब लालू प्रसाद यादव मुख्यमंत्री बने, तब बिहार में 30 निर्दलीय विधायक थे. 1952 से 1985 तक भी यह संख्या 12 से 33 के बीच रही थी. झारखंड अलग होने से पहले विधानसभा में 324 सीटें थीं, जिनमें से दर्जनों पर निर्दलीय जीतते थे. बाद में 243 सीटें बचीं और निर्दलीयों की पकड़ लगातार कमजोर होती चली गई. बागी उम्मीदवारों ने कई सीटों पर बिगाड़ा खेल, हालांकि इस चुनाव में निर्दलीय और बागियों ने कई जगह नतीजे प्रभावित किए. सबसे ज्यादा वोट पाने वाली निर्दलीय प्रत्याशी रहीं. रितु जायसवाल (परिहार सीट) वे दूसरे स्थान पर रहीं, लेकिन इस बगावत की वजह से राजद तीसरे नंबर पर चली गई.





