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BJP के लिए क्या तुरुप के इक्के हैं पावर स्टार पवन सिंह, समझिए 30+ सीट के लिए क्यों हैं Thirsty?

भोजपुरी स्टार पवन सिंह एक बार फिर बीजेपी में वापसी कर चुके हैं. दिल्ली में उन्होंने उपेंद्र कुशवाहा, जेपी नड्डा और अमित शाह से मुलाकात कर इस बात की जानकारी दी है. बताया जा रहा है कि आने से बिहार चुनाव में वह समीकरण बदल सकते हैं. शाहाबाद और मगध की 30 से ज़्यादा सीटों पर उनका सीधा असर माना जा रहा है. अमित शाह और जेपी नड्डा से मुलाकात के बाद पवन सिंह बीजेपी के तुरुप का इक्का बन सकते हैं.

BJP के लिए क्या तुरुप के इक्के हैं पावर स्टार पवन सिंह, समझिए 30+ सीट के लिए क्यों हैं Thirsty?
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( Image Source:  instagram/singhpawan999 )
नवनीत कुमार
Curated By: नवनीत कुमार

Published on: 1 Oct 2025 2:33 PM

बिहार विधानसभा चुनाव जैसे-जैसे नज़दीक आते जा रहे हैं, राजनीतिक हलचल तेज़ हो गई है. टिकट बंटवारे से लेकर गठबंधन की रणनीति तक, हर दल अपने-अपने वोट बैंक साधने में जुटा है. इसी बीच भोजपुरी सिनेमा के सुपरस्टार पवन सिंह की बीजेपी में री-एंट्री ने पूरे चुनावी समीकरण को हिला दिया है.

पवन सिंह को सिर्फ एक कलाकार या गायक कहना उनकी लोकप्रियता के साथ अन्याय होगा. वो युवाओं के दिलों की धड़कन हैं, और खासकर शाहाबाद व मगध क्षेत्र में उनका प्रभाव किसी राजनीतिक ब्रांड से कम नहीं. बीजेपी को भरोसा है कि पवन सिंह की एंट्री से उसे कम से कम 30 विधानसभा सीटों पर सीधा फायदा मिलेगा. सवाल है कि क्या पवन सिंह वाकई बीजेपी का तुरुप का इक्का साबित होंगे?

पवन सिंह की राजनीति में वापसी

2024 के लोकसभा चुनाव में निर्दलीय प्रत्याशी बनकर चुनाव लड़ने वाले पवन सिंह ने अच्छा-खासा वोट हासिल किया था. हालांकि, जीत न उनके हिस्से आई और न ही एनडीए प्रत्याशी उपेंद्र कुशवाहा के. इसके बाद दोनों के बीच तनाव गहरा गया था. लेकिन दिल्ली में अमित शाह और उपेंद्र कुशवाहा से मुलाकात कर पवन सिंह ने एक तरह से एनडीए में अपनी ‘घर वापसी’ कर ली. अब बीजेपी को पूरा भरोसा है कि पवन सिंह की स्टार पावर और जनाधार उन्हें शाहाबाद और मगध क्षेत्र की 30 से भी ज़्यादा सीटों पर सीधा फायदा दिला सकती है.

वोटबैंक को साध सकते हैं पावर स्टार

भोजपुरी फिल्मों के “पावर स्टार” पवन सिंह की लोकप्रियता भोजपुर, बक्सर, रोहतास, कैमूर, जहानाबाद, अरवल, गया, औरंगाबाद और नवादा तक फैली हुई है. इन जिलों में विधानसभा की 60 से ज़्यादा सीटें आती हैं. बीजेपी को भरोसा है कि पवन सिंह का चेहरा और प्रभाव यहां वोटों का सीधा ट्रांसफर करा सकता है. पवन सिंह राजपूत समाज से आते हैं. बिहार की राजनीति में ठाकुर (राजपूत) वोट बैंक बेहद अहम माना जाता है. बीजेपी का मानना है कि पवन सिंह की मौजूदगी इस समुदाय को एकजुट करने में मददगार होगी और एनडीए गठबंधन को सीधा फायदा होगा. बीजेपी को भरोसा है कि पवन सिंह की एंट्री से इन जिलों की 30+ सीटों पर निर्णायक असर पड़ेगा.

अमित शाह से मुलाकात का संदेश

दिल्ली में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा से मुलाकात कर पवन सिंह ने यह संकेत दे दिया कि उनकी भूमिका सिर्फ शोभायात्रा वाली नहीं होगी. बल्कि चुनावी रणनीति में उन्हें केंद्र में रखा जाएगा. शाह का समर्थन पाना किसी भी नए नेता के लिए ‘ग्रीन सिग्नल’ जैसा है. पवन सिंह की बीजेपी में वापसी में सबसे बड़ी अड़चन उपेंद्र कुशवाहा थे. 2024 के लोकसभा चुनाव में पवन सिंह और कुशवाहा एक-दूसरे के प्रतिद्वंद्वी बने थे. लेकिन इस बार कुशवाहा के घर जाकर पांव छूना और आशीर्वाद लेना, एक बड़ा राजनीतिक मैसेज था- गिले-शिकवे खत्म और एनडीए में मजबूती का संकेत.

हल्के में नहीं ले रहे विपक्षी दल

आरजेडी समेत विपक्षी दल पवन सिंह को हल्के में नहीं ले रहे. तेज प्रताप यादव तक ने उन पर तंज कसा. इसका मतलब है कि विपक्ष को भी समझ में आ गया है कि पवन सिंह की मौजूदगी चुनाव में हवा बदल सकती है. सबसे ज़्यादा चर्चा इस बात की है कि क्या पवन सिंह आरा से विधानसभा चुनाव लड़ेंगे. आरा और आसपास के जिलों में पवन सिंह का सीधा प्रभाव है. अगर वे मैदान में उतरते हैं तो बीजेपी के लिए 20-25 सीटों का खेल आसान हो सकता है.

बीजेपी के लिए तुरुप या बोझ?

हालांकि, पवन सिंह की पर्सनल लाइफ और विवादों का लंबा इतिहास है. महिलाओं को लेकर कई बार विवादों में घिरे पवन सिंह बीजेपी के ‘चाल-चरित्र-चेहरा’ की टैगलाइन को कमजोर भी कर सकते हैं. पार्टी को ये रिस्क समझना होगा. मनोज तिवारी और रवि किशन की तरह पवन सिंह भी राजनीति में लंबी पारी खेलना चाहते हैं. लेकिन यह पारी उनके अनुशासन और व्यवहार पर निर्भर करेगी. बीजेपी के लिए वह तुरुप का इक्का साबित होंगे या बोझ, इसका फैसला उनके चुनावी प्रदर्शन पर होगा. पवन सिंह की सबसे बड़ी ताकत उनका युवाओं पर असर है. सोशल मीडिया और स्टेज शो के जरिए उनकी फैन फॉलोइंग अपार है. यही वोट बैंक बीजेपी को 2-3% अतिरिक्त वोट दिला सकता है, जो कई सीटों पर हार-जीत का फर्क तय करता है.

बिहार विधानसभा चुनाव 2025
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