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30 साल से मोकामा का राजा! बाहुबली अनंत सिंह की गिरफ्तारी के बाद अब कौन संभालेगा उनका साम्राज्य?

दुलारचंद हत्याकांड में बाहुबली नेता अनंत सिंह की गिरफ्तारी के बाद मोकामा की राजनीति में भूचाल आ गया है. करीब 30 सालों से इस सीट पर उनका दबदबा रहा है. पत्नी नीलम देवी विधायक रह चुकी हैं और अब चर्चा है कि दिल्ली में पढ़ रहे उनके जुड़वा बेटे विरासत संभाल सकते हैं. क्या मोकामा की सत्ता की अगली कहानी परिवार के नए किरदार लिखेंगे? बिहार की सियासत में बड़ा सवाल खड़ा हो गया है.

30 साल से मोकामा का राजा! बाहुबली अनंत सिंह की गिरफ्तारी के बाद अब कौन संभालेगा उनका साम्राज्य?
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नवनीत कुमार
Curated By: नवनीत कुमार

Published on: 2 Nov 2025 2:47 PM

बिहार की सियासत में मोकामा का नाम आते ही एक ही चेहरा सबसे पहले उभरता है- अनंत सिंह. तीन दशक से ज्यादा वक्त तक जिस सीट पर सत्ता, बाहुबली छवि और लोकल जनाधार ने मिलकर एक ऐसी “अजेय छवि” बनाई, अब वही मोकामा एक बार फिर सुर्खियों में है. वजह है दुलारचंद हत्याकांड, जिसमें अनंत सिंह की गिरफ्तारी होते ही राजनीतिक तापमान अचानक तेज़ हो गया. लेकिन इस बार कहानी सिर्फ गिरफ्तारी तक सीमित नहीं है. सवाल बड़ा है. किसके हाथ जाएगी अनंत की विरासत?

कभी भाई की छाया में राजनीति में उभरे, फिर खुद मोकामा के सबसे प्रभावशाली नेता बने, जेल से चुनाव जीते, पत्नी को विधायक बनवाया, और अब चर्चाओं में हैं उनके जुड़वा बेटे. क्या मोकामा की सत्ता अब “सिंह फैमिली 3.0” के हाथ में जाएगी? या यह गिरफ्तारी तीन पीढ़ियों से चल रही सत्ता पर ब्रेक साबित होगी? यही वह मोड़ है, जहां से कहानी नए अध्याय में प्रवेश कर रही है.

मोकामा की राजनीति का ‘सिंह युग’

पिछले 30 सालों से मोकामा की राजनीति किसी पार्टी के नाम पर नहीं, बल्कि एक ही व्यक्ति के प्रभाव पर टिकी रही—अनंत सिंह. गांव से विधानसभा तक, बाहुबली से नेता तक की उनकी यात्रा ने इस सीट को ‘सेफ ज़ोन’ जैसा बना दिया, जहां उम्मीदवार तो बदलते रहे पर चेहरा वही रहा- अनंत सिंह.

कौन संभालेगा कमान?

दुलारचंद हत्याकांड में हुई ताज़ा गिरफ्तारी ने एक बार फिर उस सीट को चर्चा में ला दिया है, जहां सत्ता हमेशा संघर्ष और प्रभाव के बीच बंटी रही. सवाल यह नहीं कि अनंत सिंह जेल में हैं या बाहर. सवाल यह है कि अब उनके नाम पर राजनीति कौन करेगा?

सियासत की शुरुआत दिलीप सिंह से

अनंत सिंह की पहचान भले बाद में बनी, लेकिन मोकामा की राजनीतिक ज़मीन उनके बड़े भाई दिलीप सिंह ने तैयार की थी, जिन्हें लोग ‘बड़े सरकार’ के नाम से जानते थे. 1985, 1990 और 1995 तीन बार लगातार जीतने वाले दिलीप ने सिंह परिवार की राजनीतिक जड़ें मजबूत कीं.

2005 में एंट्री, फिर लगातार जीत

दिलीप की हार के बाद 2005 में अनंत खुद मैदान में उतरे. जीत मिली और फिर 2020 तक कोई उन्हें हटा नहीं सका. कई मुकदमे लगे, राइफल-लॉबी से लेकर धौंस तक के आरोप लगे, मगर वोटर्स का भरोसा टस से मस नहीं हुआ.

जब पत्नी बनीं मोर्चा संभालने वाली

2022 में एक केस ने उनकी विधायकी छीन ली. लेकिन सिंह परिवार ने सत्ता छोड़ी नहीं- पत्नी नीलम देवी मैदान में उतरीं और जीत गईं. यह पहली बार साबित हुआ कि मोकामा में “चेहरा बदल सकता है, लेकिन नाम नहीं.”

जुड़वा बेटे चर्चा में

अनंत सिंह के दो बेटे अंकित और अभिषेक दिल्ली में पढ़ाई कर रहे हैं. दोनों पॉलिटिकल साइंस से ग्रेजुएशन कर रहे हैं और परिवार के भीतर चर्चा है कि वे अगली राजनीतिक लाइनअप का चेहरा बन सकते हैं. यानी अब राजनीति सिर्फ विरासत नहीं, प्लानिंग मोड में है.

अनंत सिंह का स्टाइल- आरोप भी, अपनापन भी

अनंत को बाहुबली कहा गया, मगर उनके समर्थकों के लिए वे “जमीन पर मिलने वाले नेता” रहे. जेल से चुनाव जीत लेने वाली उनकी छवि ने उन्हें एक अलग किस्म का ‘लोकल पावर सेंटर’ बनाया. यही वजह है कि गिरफ्तारी के बावजूद चर्चा चुनाव की नहीं, उत्तराधिकारी की हो रही है.

फैसला अब जनता नहीं, समय करेगा

अनंत सिंह की गिरफ्तारी तात्कालिक है, लेकिन विरासत की लड़ाई लंबी है. क्या जुड़वा बेटे राजनीति में उतरेंगे? क्या पत्नी फिर टिकट लेंगी? या यह गिरफ्तारी परिवार की पकड़ ढीली कर देगी? जवाब आने वाला समय देगा पर मोकामा की राजनीतिक स्क्रिप्ट अभी खत्म नहीं हुई है.

बिहार विधानसभा चुनाव 2025अनंत सिंह
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