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EXCLUSIVE: चुनाव से पहले बिहार के कद्दावर नेताओं से विदेशी डिप्लोमेट और दूतावास कर्मियों की ‘मुलाकात’ का मतलब समझिए...!

बिहार विधानसभा चुनाव 2025 से पहले राज्य में विदेशी डिप्लोमेट्स और राजदूत सक्रिय हो गए हैं. वे प्रमुख नेताओं से मुलाकात कर राजनीतिक हालात और आगामी चुनावी रुझानों को समझने की कोशिश कर रहे हैं. नॉर्वे, इंडोनेशिया, जापान, ब्रिटेन और फ्रांस के अधिकारी बिहार की यात्रा कर चुके हैं. ये यात्राएं सिर्फ सांस्कृतिक या औपचारिक नहीं हैं, बल्कि संभावित राष्ट्रीय राजनीतिक बदलाव और केंद्र की सत्ता पर चुनाव परिणामों के असर का अध्ययन करने के उद्देश्य से मानी जा रही हैं.

EXCLUSIVE: चुनाव से पहले बिहार के कद्दावर नेताओं से विदेशी डिप्लोमेट और दूतावास कर्मियों की ‘मुलाकात’ का मतलब समझिए...!
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( Image Source:  Sora AI )
संजीव चौहान
By: संजीव चौहान

Updated on: 20 Sept 2025 1:21 PM IST

बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के दिन ज्यों-ज्यों कम होते जा रहे हैं त्यों-त्यों राज्य से लेकर दिल्ली तक के कद्दावर नेताओं के दिलों की धड़कनें बढ़ती जा रही हैं. शायद इसलिए क्योंकि इस बार पूर्व (नीतीश कुमार के कार्यकाल से लेकर अब तक) के विधानसभा चुनावों की तुलना में, चुनावों से ठीक पहले मौजूदा हुकूमत को खतरा कहीं ज्यादा नजर आ रहा है. इस बात में भी दम है कि इस 'विरोधी-बयार' का रुख मौजूदा मुख्यमंत्री नीतीश बाबू भांप चुके हैं.

नीतीश कुमार और उनकी बैसाखी बनी बीजेपी भी समझ चुकी है कि साल 2025 के बिहार राज्य विधानसभा चुनावों में इनकी जीत उतनी आसान नहीं दिखाई पड़ रही है, जितना सोचकर अब तक यह सब घोड़े बेचकर सोए हुए थे. बीते दो दशक से सत्ता के सिंहासन पर काबिज मौजूदा मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने नींद से जागने पर पावों की ओर देखा तो इस बार उन्हें सूबे में अपनी राजनीतिक जमीन खिसकती हुई दिखाई दी. इस मुसीबत से निकलने की गरज में सूबे की मौजूदा सरकार ने जन-मानस को लुभाने-बरगलाने के लिए सरकारी खजाने का मुंह जनता की ओर खोल दिया है. सवाल यह है कि क्या बीते 20 साल से नीतीश बाबू के तिकड़मी दिमाग की ‘हुकूमत’ को झेल रहे बिहार के मतदाता, इस बार भी पहले के 20 वर्ष की तरह ही आगामी विधानसभा चुनाव में भी झेलने की दम रखते हैं.

अपने कुनबे को फिट कराने में दिन रात जुटे नेता

अतीत का इतिहास उठाकर पढ़-देख लीजिए. बिहार की राजनीति ऊंच-नीच, जाति-पांति, अगड़ा-पिछड़ा की ही कमजोर नाव के ऊपर ‘तैरती उतराती या डूबती’ रही है. इस बार ढलती उम्र के चलते मौजूदा मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी खुद को कहीं मानसिक रूप से उस तरह का मजबूत नहीं समझ रहे हैं, जितना की अब से पहले के बिहार विधानसभा चुनाव में उनमें दमखम मौजूद रहा था. फिर भी राजनीति तो राजनीति है. पापा-ससुर का सिक्का अगर राजनीति के चलन से बाहर हो रहा होता है तो वे अपनी जगह जाते-जाते कुनबे खानदान में से बेटा-बेटी, बीबी-बहू, भांजा, दामाद, में से किसी न किसी को जरूर ‘फिट’ करने की हसरत रखते हैं. इससे 2025 विधानसभा चुनाव भी अछूता नहीं रहा है. 70 से 75 साल के बजुर्ग हो चुके नेता खुद को राज्य की राजनीति के चलन से बाहर करके, अपनी आगे मौजूद पीढ़ी को फिट करने में दिन रात जुटे हैं.

बिहार चुनाव से विदेशियों का क्‍या लेना?

इस बीच अब खबर आ रही है कि बिहार राज्य के विधानसभा चुनावों की सरगर्मियों के बीच, कुछ विदेशी मेहमानों, डिप्लोमेट्स ने भी राज्य में आ-जाकर चहलकदमी करना शुरू कर दिया है. आखिर ऐसा क्यों? बिहार से कोई विदेशी तो चुनाव लड़ नहीं रहा है. न ही हमेशा से अगड़ा-पिछड़ा, ऊंच-नीच की राजनीति करते रहे बिहार में कोई विदेशी या बाहर का इंसान (जॉर्ज फर्नांडिस को छोड़कर) अपने पांव जमा पाने की हिमाकत ही कर सकता है. फिर राज्य में विदेशियों का इन दिनों आवागमन अचानक क्यों कैसे बढ़ गया है? ऐसा हो रहा है इस बात की पुष्टि बिहार, छत्तीसगढ़, झारखंड की राजनीतिक-पत्रकारिता में गजब की मजबूत पकड़ रखने वाले वरिष्ठ पत्रकार मुकेश बालयोगी भी स्टेट मिरर हिंदी के साथ विशेष बातचीत में करते हैं.

नजरंदाज नहीं की जा सकती विदेशियों की घुसपैठ

उनके मुताबिक, “बिहार विधानसभा के आगामी चुनावों से ठीक पहले विदेशी ताकतों की राज्य में घुसपैठ को नजरंदाज नहीं किया जा सकता है. वह भी तब जब कांग्रेस और संसद में नेता विपक्ष ‘SIR’ यानी वोट चोरी के आरोप लगाकर भारतीय जनता पार्टी और नीतीश कुमार की नींद उड़ाए हुए हों तब ऐसा होना और भी ज्यादा गंभीर मुद्दा है.” कहीं ऐसा तो नहीं कि साल 2025 में पूरे भारत में सिर्फ बिहार राज्य में ही विधानसभा चुनाव हो रहे हैं. इसलिए भी विदेशी ताकतों की नजर आगामी बिहार विधानसभा चुनावों के जरिए ही सही, देश की केंद्रीय सत्ता के भविष्य का रुख भांपने पर हो.

अगर इन विदेशियों के बिहार में आने-जाने के रास्तों पर पैनी नजर डाली जाए तो, 9 जुलाई 2025 को भारत में नॉर्वे की राजदूत एलिन स्टेनर हवाई जहाज से बिहार पहुंचती हैं. उनका काफिला जनसुराज के कर्ताधर्ता प्रशांत किशोर के घर पर जाकर ही रुकता है. बंद कमरे में प्रशांत किशोर और नॉर्वे की राजदूत के बीच क्या मंत्रणा हुई, इन दोनों के अलावा किसी को नहीं मालूम. इसके बाद 18 अगस्त 2025 को भारत में इंडोनेशिया की राजदूत इना हगनिंग्यास कृष्णमूर्ति का बिहार की राजधानी पटना में पदार्पण होता है. वे भी जिनसे मिलना जुलना होता है. या जिन कुछ जगहों पर उन्हें आना-जाना था वहां होकर वापिस लौट जाती हैं.

अप्रैल में ही बिहार का दौरा कर चुके हैं जापान के राजदूत

बिहार विधानसभा चुनाव 2025 से ऐन पहले राज्य की हद में किसी विदेशी के आगमन का तीसरा उदाहरण रहे भारत में जापान के राजदूत ओनो केइची. वह ऊपर उल्लिखित दोनों विदेशी मेहमानों से कुछ महीने पहले ही यानी अप्रैल 2025 में बिहार की राजधानी पटना पहुंचते हैं. वह पटना पहुंचते ही जापान में जन्मी (आजाद हिंद फौज की रानी झांसी रेजिमेंट रहीं) आशा सहाय चौधरी से जाकर मिलते हैं. वे बातचीत में कहते हैं कि उनकी यह यात्रा तो महज भारत और जापान के सांस्कृतिक-सामाजिक संस्कारों-संस्कृति को लेकर हुई. सवाल फिर वही कि आखिर जब राज्य में विधानसभा चुनाव सिर पर आन खड़े हुए तभी इस मुलाकात का शुभ-मुहूर्त क्यों निकला?

Image Credit: Facebook/PKforCM

चुनाव से ठीक पहले ही बिहार आने की क्‍या पड़ रही जरूरत?

इन तमाम विदेशी मेहमानों की बिहार की यात्रा राज्य विधानसभा चुनाव से ठीक पहले नजरअंदाज नहीं की जा सकती है. यह तो वे चंद बड़े नाम थे, जिन पर बिहार में सबकी निगाहें गड़ गईं हैं. इनके अलावा तमाम अन्य विदेशी प्रतिनिधि भी बिहार की इन दिनों यात्रा पर आ जा रहे हैं. वो इन डिप्लोमेट्स से जुड़े हों या फिर इनसे अलग. अगर बीते करीब एक साल के दौरान बिहार में हो रही सरगर्मियों पर नजर डालें तो, साल 2024 के मध्य से ही इन विदेशी मेहमानों का आवागमन बिहार में बढ़ा हुआ था. अब चूंकि कुछ देशों के भारत में मौजूद “दूत” भी बिहार के चक्कर काट रहे हैं, तो यह यहां उल्लेखनीय और देशहित में विचारणीय विषय या बिंदु तो है ही.

ब्रिटेन और फ्रांस के अधिकारी भी नहीं पीछे

बीते साल यानी 18 नवंबर 2024 को ब्रिटिश उप-उच्चायुक्त एंड्रयू फ्लेमिंग भी बिहार की राजधानी पटना पहुंचे थे. वे भी राज्य के उप-मुख्यमंत्री सम्राट चौधरी और नीतीश कुमार की हुकूमत में उद्योग मंत्री नीतीश मिश्रा से मेल-मुलाकात करके लौट गए. उनसे ठीक पहले सितंबर 2024 में ही राज्य में फ्रांसीसी राजदूत थियरी माथू तीन दिन के दौरे पर पटना भ्रमण पर आए थे. भारत के पड़ोसी देश और हमेशा राजनीतिक-सैन्य उथल-पुथल के चलते अस्थिरता का ही शिकार बने रहे वाले म्यामांर से तो एक लंबी चौड़ी टीम ही बिहार के दौरे पर पहुंची थी. जिसने कई स्थानों का भ्रमण किया था. हालांकि वह टीम राज्य के कुछ पर्यटन, सामाजिक और सांस्कृतिक महत्व के स्थानों पर भी पहुंची थी.

केंद्रीय खुफिया एजेंसियों की जरूर होगी नजर

इस बारे में बात करने पर वरिष्ठ पत्रकार मुकेश बालयोगी कहते हैं, “दूतावासों में पॉलिटिकल ऑफिसर्स या जूनियर टिप्लोमेट्स के साथ प्रोटोकॉल की ज्यादा समस्या नहीं होती है. वे कहीं भी आसानी से बेरोक-टोक आ-जा या घूम सकते हैं. मगर ऐसे लोग ही संदेह के भी घेरे में ज्यादा आते हैं. संभव है कि इन बड़े विदेशी अधिकारियों के आगे-पीछे इन छोटे विदेशी प्रतिनिधिमंडल की यात्रा से बिहार की राजनीति से कुछ ज्यादा और आसानी से इन्हें (भारत विरोधी संदिग्ध ताकतों को) हासिल हो रहा हो. जो आइंदा भारत की केंद्रीय राजनीतिक के खिलाफ इस्तेमाल किया जा सके! हालांकि, इन सब विदेशियों की यात्राओं का चर्चा भले ही जोर-शोर से बिहार में न हो रहा हो, मगर यह भी संभव नहीं है कि केंद्रीय खुफिया एजेंसियों की नजर से यह सब या इनकी यात्राएं अछूती बची होंगीं.”

किन सवालों के जवाब ढूंढने बिहार आ रहे ये विदेशी?

वरिष्ठ राजनीतिक पत्रकार मुकेश बालयोगी से लंबी बातचीत में एक बात तो साफ हो जाती है कि, बिहार जैसे बड़े राज्यों के चुनावों से अक्सर राष्ट्रीय नेतृत्व के तमाम घटक पहले भी उभरते रहे हैं. यह संभावनाएं आइंदा भी प्रबल बनी रहेंगी. इसलिए भी विदेशी ताकतों की नजर में बिहार का आगामी विधानसभा चुनाव हो सकता है. चूंकि साल 2025 में भारत के बिहार राज्य में एक इकलौता चुनाव हो रहा है. इसलिए भी यह विदेशी प्रतिनिधि या उच्चाधिकारी हो सकता है कि पटना (बिहार) के चक्कर काटकर, आगे की राजनीति का ऊंट किस करवट बैठेगा? बिहार के चुनाव परिणाम दिल्ली की सत्ता (केंद्र) को किस तरह और किस हद तक प्रभावित करने का माद्दा अपने में रख सकेंगे? आदि-आदि सवालों के संभावित जवाब भी तलाशने यह विदेशी ताकतें संभव है कि बिहार में चहलकदमी करने आ-जा रही हों.

इस बारे में पत्रकार मुकेश बालयोगी इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक फाइनांस एंड पॉलिसी, बिहार के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. सुधांशु से हुई अपनी बातचीत का भी हवाला देते हैं जिसके मुताबिक, “बिहार में पक्ष-विपक्ष दोनों का नेतृत्व जय प्रकाश नारायण के सियासी शिष्यों का है. अब इनमें से अधिकांश उम्र के अंतिम पड़ाव की ओर बढ़ रहे हैं. ऐसे में नए उभरते हुए राजनीतिक-नेतृत्व का वजन तोलने या उनमें मौजूदा संभावनाओं को ताड़ने-तलाशने के लिए भी विदेशी राजदूतों की यह ताबड़तोड़ यात्राएं संभव हो सकती हैं. कालांतर में बिहार से कई बार राष्ट्रीय राजनीतिक में बदलाव की लहर भी उठती रही है. ऐसी स्थिति में रिजीम रेंज जैसी संभावनाओं की आहट भांपने के लिए डिप्लोमेट्स की नजर भी बिहार के इन विधानसभा चुनाव पर हो सकती है.”

स्टेट मिरर स्पेशलबिहार विधानसभा चुनाव 2025
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