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तुमसे न हो पाएगा तेज प्रताप! सत्ता की अंधी चाहत ने लालू का घर ‘घर’ न रखकर बिना पांडवों के बिहारी-राजनीति का ‘कुरुक्षेत्र’ बना डाला!

बिहार की राजनीति में लालू प्रसाद यादव का परिवार सत्ता की होड़ में बिखर चुका है. रक्षाबंधन पर तेज प्रताप यादव को उनकी दो राजनीतिक बहनों मीसा भारती व रोहिणी ने राखी नहीं बांधी, जबकि तेजस्वी यादव को बांधी. पत्रकारों के अनुसार तेज प्रताप की रंगीन मिजाजी, बड़बोलापन और परिवार का तेजस्वी के प्रति झुकाव उन्हें अलग-थलग कर चुका है. होटल में छुटभैय्या नेताओं से बैठक भी महज ध्यानाकर्षण का प्रयास मानी जा रही है. उनका राजनीतिक व पारिवारिक अस्तित्व संकट में है.

तुमसे न हो पाएगा तेज प्रताप! सत्ता की अंधी चाहत ने लालू का घर ‘घर’ न रखकर बिना पांडवों के बिहारी-राजनीति का ‘कुरुक्षेत्र’ बना डाला!
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( Image Source:  ANI )
संजीव चौहान
By: संजीव चौहान

Updated on: 11 Aug 2025 12:19 PM IST

दुनिया में कूटनीति-राजनीति के गुरु ‘चाणक्य’ जो बात कई सौ साल पहले सिद्ध करके जा चुके हैं कि, सत्ता के सिंहासन की लड़ाई में ‘रिश्ते-नाते’ बेईमान हो जाते हैं. बिहार की राजनीति का प्रमुख गढ़ रहे राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव के घर-परिवार-आंगन में भी यही सब होता हुआ आज नजर आ रहा है. फिर चाहे वह लालू प्रसाद यादव खुद हों, उनकी पत्नी राबड़ी देवी, बड़े बेटे तेज प्रताप यादव अथवा तेजस्वी यादव. सत्ता के सिंहासन की मैली चाहत खून के इन तमाम मजबूत रिश्तों पर भारी पड़ती जा रही है.

एक ही परिवार के अलग-अलग लोगों की सत्ता का सिंहासन पाने की सनक की हदें, शनिवार (9 अगस्त 2025) को रक्षा-बंधन जैसे पवित्र त्योहार पर तो समझो पार ही हो गईं. जब लालू प्रसाद यादव की उन दो बेटियों मीसा भारती और रोहिणी ने जो पिता-मां के साथ राजनीतिक गलियारों में, उनके कंधे से कंधा मिलाकर चहलकदमी कर रही हैं, ने अपने दोनों भाईयों में से एक तेजस्वी यादव को ही राखी बांधी. जबकि तेज प्रताप यादव दोनों बहनों से कलाई में राखी बंधवाने की सूखी उम्मीद लिए हुए ही ठगे से खड़े रह गए.

सत्ता के लालच ने भाई-बहन के रिश्‍ते में डाली दरार

मतलब, सत्ता के सिंहासन की चाहत इस कदर मैली हो चुकी है कि, जिसने भाई-बहन को प्यार में भी दरार डाल दी है. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक बड़े भाई तेज प्रताप के सिर्फ उन दोनों बहनों ने ही राखी नहीं बांधी जो, छोटे भाई तेजस्वी यादव और मां राबड़ी देवी व पिता लालू प्रसाद यादव के साथ राजनीति में हाथ बंटा रही हैं. बाकी पांच अन्य बहनें जिनका राजनीति से दूर-दूर का कोई वास्ता नहीं है, उन पांचो बहनों ने ही अपने बड़े भाई तेज प्रताप यादव को राखी बांधकर, रंगीन-मिजाज भाई तेज प्रताप यादव का राखी का त्योहार ‘खोटा’ होने से बचा लिया.

लालू परिवार में उठा-पटक का दौर

इन तमाम तथ्यों की पुष्टि पटना में मौजूद और स्टेट मिरर हिंदी के एडिटर से खास बातचीत में वरिष्ठ पत्रकार मुकेश बालयोगी भी करते हैं. उनके मुताबिक, “बीते दो दशक के दौर में जिस तरह से लालू यादव के हाथ से बिहार की सत्ता का सिंहासन नीतीश कुमार ने झपटा है. उसके बाद से ही लालू प्रसाद यादव के घर-परिवार में उठा-पटक का दौर शुरू हो चुका है. इन 20 साल के दौरान लालू के पारिवारिक हालत ठीक वैसी ही हो चुकी है, जैसे कि मानो महाभारत के युद्ध में चक्रव्यूह में फंसा कोई अभिमन्यु.”

सबको चाहिए सत्ता का सिंहासन

एक सवाल के जवाब में वरिष्ठ पत्रकार कहते हैं, “सच पूछिए और आज के हालातों के मद्देनजर देखा जाए तो लालू प्रसाद यादव का परिवार, ऐसा कुरुक्षेत्र बना हुआ है जिसमें पांडव पक्ष के कृष्ण, अर्जुन, युद्धिष्ठर या विदुर की तो कोई उपस्थिति ही नहीं है. लालू प्रसाद और राबड़ी देवी के आंगन में मौजूद सत्ता का सिंहासन झपट कर उसके ऊपर बैठने की मैली मंशा ने परिवार के हर सदस्य को ही कौरव पक्ष का दुर्योधन, धृतराष्ट्र और गांधारी बना डाला हो. जो आपस में ही लड़-भिड़कर, अपना अपने हाथों से अपनों को ही ठिकाने लगाकर, किसी भी हद तक नीचे गिरकर सिर्फ और सिर्फ सत्ता सुख का पान करने को व्याकुल या आतुर है.”

अपनी दुर्दशा के सबसे बड़े जिम्‍मेदार खुद तेज प्रताप हैं

स्टेट मिरर हिंदी के एक सवाल के जवाब में वरिष्ठ पत्रकार मुकेश बालयोगी बोले, “दरअसल तेज प्रताप यादव लालू और राबड़ी के बड़े पुत्र बेशक हों. मगर उनकी हालत परिवार में बीते लंबे समय से ऐसी रही है मानो दूध से छिटक कर निकाल फेंकी गई मक्खी. अब इसके लिए अगर तेज प्रताप यादव की रंगीन-मिजाजी, उनका बड़-बोलापन कुछ हद तक जिम्मेदार है. तो उनकी इस दुर्गति-दुर्दशा के लिए लालू यादव और राबड़ी देवी का छोटे बेटे तेजस्वी यादव के प्रति उनके मन में मौजूद एक-तरफा मौजूद सम्मान और प्यार भी है. ऐसा नहीं है कि इस बात को मैं ही कह या बता रहा होऊं. यह सब जमाने को पता है. और इस बात को लालू राबड़ी के बड़े पुत्र तेज प्रताप यादव दुनिया से कहीं ज्यादा बेहतर खुद जानते समझते हैं.”

मानो मैं अपनों के लिए ‘अछूत’ हूं...

बीते 20 साल से सत्ता-सुख से दूर रहकर उसे पाने की मंशा में लार टपका रहे लालू यादव परिवार को उसके राजनीतिक बिखराव ने कहीं का नहीं छोड़ा है. इस बिखराव का असर सीधे तौर पर पड़ा तो पूरे ही परिवार के ऊपर है. मगर सबसे ज्यादा विपरीत प्रभाव के शिकार हो इकलौते बड़े बेटे तेज प्रताप यादव रहे हैं. तेज प्रताप इस बात को कई बार कह भी चुके हैं कि उन्हें अपने ही घर में बंधक और बेगानों की तरह रखा जाता रहा है. उन्हें अपने ही परिवार द्वारा अतीत में अहसास कराया जाता रहा है कि, जैसे मानो मैं अपनों के लिए ‘अछूत’ होऊं.

तेज प्रताप यादव की जग-हंसाई के लिए कौन जिम्मेदार है?

ऐसे में सवाल यह पैदा होना लाजिमी है कि आखिर तेज प्रताप यादव की इस दुर्गति या जग-हंसाई के लिए कौन जिम्मेदार है? माता-पिता, भाई बहन या फिर खुद तेज प्रताप यादव की वह बेजा हरकतें, जिन्होंने तेज प्रताप यादव का जो मजाक बनवाया समाज में वो तो बनवाया ही है. उनके बेजा बड़बोलेपन, रंगीन मिजाजी ने परिवार को भी जमाने के सामने मुंह दिखाने के काबिल नहीं छोड़ा है. संभव है कि तेज प्रताप यादव की इन्हीं तमाम शर्मसार करने वाली बेजा हरकतों के चलते माता पिता लालू राबड़ी, भाई तेजस्वी यादव और राजनीति के गलियारों में चहलकदमी करने वाली 7 में से दो बहनों मीसा भारती व रोहणी ने तेज प्रताप यादव को नजरंदाज करके, उन्हें यह अहसास करा दिया हो कि, वो जो कर रहे हैं उससे उनके परिवार की नाक कट रही है.

जिसे परिवार नहीं पूछ रहा, उसे कौन...

ऐसे में सवाल यह है कि जब पूरा परिवार तेज प्रताप यादव को घास नहीं डाल रहा है. यह बात पूरे जमाने को पता है कि किस वजह से तेज प्रताप यादव के साथ उनका परिवार नहीं खड़ा है. तब क्या तेज प्रताप यादव को यह कारण या वजहें नहीं मालूम होंगी? अगर नहीं मालूम हैं तो भी तेज प्रताप यादव खुद इस सबके लिये जिम्मेदार हैं. और अगर तेज प्रताप यादव यह सब जानने के बाद भी, अपनी बेजा हरकतों से बाज नहीं आ रहे हैं, तब भी वह फिर परिवार माता पिता और भाई बहन के ऊपर अपनी जग-हंसाई की जिम्मेदारी का ठीकरा नहीं फोड़ सकते हैं. उनकी हरकतों के चलते परिवार उनके साथ वही व्यवहार कर रहा है जिसके वह लायक हैं.

यह सब मीटिंगबाजी...

हाल ही में तेज प्रताव यादव ने एक होटल में चार-पांच छुटभैय्ये राजनीतिक दलों के प्रमुख नेताओं के साथ बैठक की थी. इसके पीछे राह से भटके हुए तेज प्रताप यादव का क्या नफा-नुकसान या राजनीतिक-सामाजिक गुणा-गणित हो सकता है? पूछने पर वरिष्ठ पत्रकार मुकेश बालयोगी कहते हैं, “कुछ नहीं है यह सब मीटिंगबाजी. कोई इसके आगे पीछे गुणा गणित नहीं हैं. यह सब बस अपने खिलाफ चल रहे अपने ही परिवार और बिहार की राजनीति के धुरंधरों का ध्यान अपनी ओर खींचने के लिए तेज प्रताप यादव का हवा में उछाला गया तीर है. जो न तो किसी को निशाना साधकर चलाया गया है न ही यह तीर किसी के सीने को चीर पाने की कुव्वत रखता है.

खतरे में तेज प्रताप का राजनीतिक अस्तित्व

इस वक्त राजनीतिक और पारिवारिक बदहाली के जिस दौर से तेज प्रताप यादव गुजर रहे हैं. उसमें उन्हें अपना अस्तित्व बचाए रखने का खौफ खाए जा रहा है. होटल में कुछ छुटभैय्या दलों के नेताओं के साथ उनकी बैठक से उन्हें कुछ हासिल नहीं होने वाला है. यह सब उनका बस अपनी ओर बाकी तमाम का ध्यानाकर्षण कराने का घटिया कदम है. वह यह सब करके जताना चाह रहे हैं कि उन्हें भी बिहार की राजनीति में अहमियत दी जाए. जबकि ऐसा कुछ होने वाला नहीं है. जब उनके माता-पिता, दो-दो बहनें और सगा छोटा भाई ही उनसे दूरी बनाए बैठे हैं. तब सोचिए कि उन्हें कोई बाहर वाला क्यों और कैसे घास डालेगा? और नीतीश कुमार, लालू प्रसाद राबड़ी देवी के सामने तेज प्रताप यादव इतने बड़े तुर्रमखां या तीसमार-खां नेता भी नहीं है, जो वे बिहार की राजनीतिक में कुछ भी कर गुजरने की हैसियत रखते हों. अब वह जो कर रहे हैं वह सिर्फ और सिर्फ अपनी स्व-संतुष्टि के लिए कर रहे हैं.”

स्टेट मिरर स्पेशलबिहार विधानसभा चुनाव 2025
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