'हरी' छोड़ अब 'पीली' की पॉलिटिक्स! लालू के लाल तेजप्रताप की टोपी के बदले रंग का क्या है असली राज?
Tej Pratap Yadav News: आरजेडी प्रमुख लालू यादव के लाल तेजप्रताप यादव ने बिहार की राजनीति में एक बार फिर नया रंग भर दिया है. हरी टोपी छोड़ अब पीलेपन की तरफ बढ़े तेज प्रताप के सियासी कदम को लेकर सवाल उठने लगे हैं. क्या सिर्फ टोपी बदली है या सोच और रणनीति भी? जानिए इस बदले रंग के पीछे की राजनीति क्या है?

आरजेडी प्रमुख लालू यादव के बड़े बेटे ने 26 जुलाई को टोपी वही पहनी थी, लेकिन उसका रंग बदल गया था. पहले उनकी टोपी का रंग हरा था, अब पीला हो गया. जब लालू के लाल तेज प्रताप टोपी का रंग बदलते हैं… तो बिहार की सियासत में हलचल मचती है. ये महज एक रंग नहीं, एक इशारा है. एक संकेत है, आने वाले चुनावी तूफान का! सवाल यह है कि क्या तेज प्रताप का पीली टोपी पहनना सिर्फ फैशन है या फिर कोई गहरी रणनीति?
हरी टोपी से दूरी क्यों?
तेजप्रताप यादव को आपने अक्सर हरे रंग की टोपी में देखा होगा जो सीधे-सीधे राष्ट्रीय जनता दल (RJD) की विचारधारा और पारंपरिक पहचान से जुड़ी मानी जाती थी, लेकिन अब, जब उन्होंने पीली टोपी पहननी शुरू की है, तो राजनीतिक गलियारों में कानाफूसी शुरू हो गई है कि क्या वो आरजेडी से दूरी बना रहे हैं?
पीला रंग क्या बताता है?
राजनीति में रंगों की अपनी भाषा होती है. पीला रंग बौद्धिकता, नई ऊर्जा और कभी-कभी ब्राह्मणिक संस्कृति का भी प्रतीक माना जाता है. क्या तेजप्रताप अब अपने पिता लालू यादव की जातिगत राजनीति से हटकर कोई नई सोच गढ़ रहे हैं? या फिर ये ‘ब्राह्मण कार्ड’ खेलने की शुरुआती झलक है?
परिवार में फूट या 'फ्रंट फुट' तेज?
पिछले कुछ समय से तेज प्रताप और तेजस्वी यादव के बीच टकराव की खबरें आती रही हैं. तेजस्वी जहां अपने 'सोबर' और 'टेक्नोक्रेट' इमेज को आगे बढ़ा रहे हैं. वहीं तेज प्रताप खुद को लालू परिवार के खिलाफ ‘सन्यासी योद्धा’ की तरह पेश करते नजर आ रहे हैं. भगवा कपड़े, रथ यात्रा, शिव भक्त और अब पीली टोपी. क्या ये अलग पहचान बनाने की कोशिश है या कोई नया राजनीतिक मंच तैयार करने की तैयारी?
आने वाले चुनाव और संकेत
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के पहले तेजप्रताप का टोपी बदलना कई मायनों में संदेश देता है. शायद वो अपनी खुद की टीम, नया संगठन या फिर अपने नाम से नया फ्रंट बनाने की रणनीति पर काम कर रहे हैं. कुछ वैसा ही जैसा चिराग पासवान ने किया था. या अखिलेश के खिलाफ शिवपाल यादव ने यूपी में किया था. टोपी का रंग बताता है कि तेज प्रताप अब गंभीरता से 'अपनी राजनीति' की स्क्रिप्ट लिखने की कोशिश में जुट गए हैं.
दरअसल, बिहार की राजनीति में तेजस्वी ‘नेता’ हैं, लेकिन तेज प्रताप ‘कहानी’ हैं. इस कहानी में अब एक नया रंग जुड़ गया है पीला. टोपी का रंग क्या सच में सोच की पहचान है? या फिर ये बस एक तेज प्रताप स्टाइल है जो मीडिया का अटेंशन खींचना जानता है? जो भी हो, राजनीति में जब लालू के लाल रंग बदलते हैं… तो उसका मतलब होता है. क्या यह परिवार और पार्टी से बगावत है या नई सियासी जमीन तैयार करने की कोशिश?
मुंगेरीलाल के हसीन सपने न देखे लालू का परिवार - परिमल
जानकारों की नजर में तेज प्रताप यादव का हरी टोपी से पीली टोपी में परिवर्तन बिहार की राजनीति में कई संकेतों की ओर इशारा करता है जो उनके व्यक्तिगत और राजनीतिक दृष्टिकोण में बदलाव को साफ-साफ बता रहा है. जनता दल यूनाईटेड बिहार के प्रवक्ता परिमल का कहना है कि प्रदेश में राष्ट्रीय जनता दल एक ऐसी पार्टी है कि अनजस्टीफायबल पार्टी है. उसका न्याय में कोई भरोसा ही नहीं है.
अगर तेजस्वी और तेज प्रताप में तुलना में तुलना करें तो तेज शिक्षित हैं, लेकिन उनका जो पारिवारिक सिस्टम हैं, उसमें इन सबका कोई महत्व नहीं है. तेज प्रताप ने जो भी मांग की है वो प्रजातांत्रिक है. उन्होंने पार्टी और परिवार के अंदर अपनी आवाज को बुलंद कर लोकतांतिक हक मांगा है. आप ये सोचिए, उन्हें पार्टी से बाहर क्यों निकाला गया. एक महिला की वजह से ही ना. आप ये अंदाजा लगाइए जिस पार्टी में सत्ता में रहते हुए 15 साल तक बिहार को लूटने का काम किया, वो एक महिला के न्याय कैसे कर सकती है. लालू यादव परिवार मुंगेरीलाल के हसीन सपने देख रहा है.
जेडीयू प्रवक्ता परिमल कुमार के मुताबिक कांच का हांडी बार बार नहीं चढ़ती. इस बार आरजेडी सिंगल डिजिट में सिमट कर रह जाएगी. तेजस्वी यादव प्रतिपक्ष का नेता बनने की हैसियत में नहीं होंगे. महागठबंधन में भी सिर फुटव्वल जारी है.
रंग बदलना तेज प्रताप की मजबूरी - रंजन सिंह
लोक जनशक्ति पार्टी के रंजन सिंह का तेज प्रताप यादव के नए तेवर पर कहना है कि वो राजनेता हैं. महुआ से चुनाव जीते भी थे. जहां तक हरी टोपी से पीली टोपी की की बात है तो वह जब निर्दलीय चुनाव लड़ेंगे, तो कोई न कोई चुनाव चिन्ह तो लेना ही पड़ेगा ना. उन्होंने तंज कसते हुए कहा कि हम तो उन्हें इस बात के लिए शुभकामना ही दे सकते हैं. वह महुआ ही क्यों, कहीं से भी चुनाव लड़ने के लिए स्वतंत्र है. यह फैसला लेने का उनका लोकतांत्रिक अधिकार है. उन्हें आरजेडी से निकाल दिया गया है. तो अब उन्हें आरजेडी के सिम्बल से हटकर ही चुनाव लड़ना होगा. संभवत: यही वजह है कि उन्होंने हरी टोपी को छोड़कर पीली टोपी पहन लिया है.
उन्होंने कहा कि वैसे भी महुआ सीट आरजेडी की परंपरागत सीट नहीं है. साल 2010 में जेडीयू प्रत्याशी रविंदर राय विधायक चुने गए थे. साल 2015 जेडीयू-आरजेडी का महागठबंधन के तहत चुनाव लड़ने की वजह से तेज प्रताप यादव वहां से जीत कर विधानसभा पहुंचे थे.