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बिहार में EC के नागरिकता जांच अभियान को लेकर SC में घमासान! ADR ने कहा- मतदाताओं के साथ हो रहा गंभीर धोखा, पूछे तीखे सवाल

ADR ने सुप्रीम कोर्ट में कहा है कि बिहार में चुनाव आयोग द्वारा चलाया जा रहा विशेष मतदाता सूची पुनरीक्षण (SIR) नागरिकों के अधिकारों का हनन है. यह पूर्ववर्ती सुप्रीम कोर्ट के फैसलों का उल्लंघन करता है. संगठन ने Aadhaar जैसे सामान्य दस्तावेजों को खारिज करने को 'बेतुका' बताया और मतदाताओं को नागरिकता साबित करने की बाध्यता को अनुचित करार दिया. ADR ने BLO द्वारा गाइडलाइंस के उल्लंघन, फर्जी फॉर्म भरने और भारी पैमाने पर नाम काटने की आशंका जताई है.

बिहार में EC के नागरिकता जांच अभियान को लेकर SC में घमासान! ADR ने कहा- मतदाताओं के साथ हो रहा गंभीर धोखा, पूछे तीखे सवाल
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( Image Source:  AI )

Bihar SIR Controversy, ADR vs EC in Supreme Court: बिहार में मतदाता सूची के विशेष पुनरीक्षण (Special Intensive Revision - SIR) के तहत नागरिकता की जांच को लेकर चुनाव आयोग (EC) और एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) के बीच सुप्रीम कोर्ट में चल रही कानूनी लड़ाई और तीखी हो गई है. ADR ने अपने जवाब में कहा है कि EC का यह दावा कि उसे मतदाताओं की नागरिकता जांचने का संवैधानिक अधिकार है, सुप्रीम कोर्ट के पूर्ववर्ती निर्णयों का उल्लंघन है.

ADR ने EC द्वारा दायर जवाबी हलफनामे के जवाब में कहा कि नागरिकता जांच की यह प्रक्रिया पूर्व में कोर्ट द्वारा दिए गए फैसलों के खिलाफ है, जैसे:

  • लाल बाबू हुसैन बनाम भारत सरकार (1995): पहले से दर्ज मतदाता को नागरिकता साबित करने की जरूरत नहीं.
  • इंदरजीत बरुआ बनाम चुनाव आयोग (1985): मतदाता सूची में नाम होना नागरिकता का प्राथमिक प्रमाण है, और इसे चुनौती देने वाले पर इसका खंडन साबित करने की जिम्मेदारी है.

ADR का आरोप है कि 2003 के बाद रजिस्टर्ड हुए सभी मतदाताओं को नए सिरे से नागरिकता और आयु के दस्तावेज़ जमा करने को कहा गया है, जो मौजूदा वैध मतदाताओं पर नागरिकता साबित करने का अनावश्यक बोझ डालता है.

Aadhaar, राशन कार्ड को मान्यता न देना 'बेतुका': ADR

ADR ने EC द्वारा आधार और राशन कार्ड जैसे व्यापक रूप से उपयोग किए जाने वाले दस्तावेजों को अमान्य ठहराने को 'स्पष्ट रूप से बेतुका' बताया. ADR ने कहा. आधार कार्ड को पासपोर्ट, जाति प्रमाण पत्र और स्थायी निवास प्रमाणपत्र के लिए वैध माना जाता है. अगर आधार फर्जीवाड़े का शिकार हो सकता है, तो EC द्वारा सुझाए गए 11 दस्तावेज भी उतने ही असुरक्षित हो सकते हैं.

ADR का आरोप: जमीनी स्तर पर BLO गाइडलाइंस का उल्लंघन

ADR ने कहा कि EC की 24 जून की गाइडलाइन के अनुसार BLO को हर घर जाकर दो फॉर्म देने थे, लेकिन कई मतदाताओं ने शिकायत की है कि उनसे कोई संपर्क नहीं हुआ और फिर भी उनके फॉर्म ऑनलाइन सबमिट कर दिए गए. मृत लोगों के नामों से भी फॉर्म जमा होने की शिकायतें हैं. इसके अलावा, फॉर्म जांचने की कोई स्पष्ट प्रक्रिया नहीं है, जिससे ERO (Electoral Registration Officers) को अत्यधिक और मनमाना अधिकार मिल गया है, जिससे बड़े पैमाने पर लोगों के नाम काटे जा सकते हैं.

ADR के सवाल: 2025 की सूची होते हुए SIR क्यों?

ADR ने कहा कि बिहार विधानसभा चुनाव से पहले मतदाता सूची का यह दोबारा पुनरीक्षण अनुचित है क्योंकि जनवरी 2025 में विशेष सारांश पुनरीक्षण (SSR) के तहत ही 12.03 लाख नए नाम जोड़े गए और 4.09 लाख नाम हटाए गए थे. चुनाव आयोग ने नहीं बताया कि SSR के बाद अब SIR की जरूरत क्यों पड़ी, और अगर कुछ खामियां थीं तो उन्हें इसी सूची में सुधार कर लिया जा सकता था.

राजनीतिक पार्टियों ने नहीं की थी SIR की मांग: ADR

ADR का तर्क है कि EC का यह दावा गलत है कि यह प्रक्रिया राजनीतिक दलों की मांग पर शुरू की गई. ADR के अनुसार, किसी भी राजनीतिक दल ने 'नवीन पुनरीक्षण' (de novo revision) की मांग नहीं की थी. पार्टियों की शिकायत केवल फर्जी वोट जोड़ने या विपक्ष समर्थक वैध वोट काटने को लेकर थी.

कोर्ट में अब अगली सुनवाई 28 जुलाई को

सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने EC को 21 जुलाई तक जवाब दाखिल करने को कहा था. अगली सुनवाई 28 जुलाई को. EC ने कहा है कि उसे 7.23 करोड़ मतदाताओं से फॉर्म मिले हैं, जिनके आधार पर ड्राफ्ट वोटर लिस्ट तैयार की जाएगी. अब तक 65 लाख नाम हटाने का प्रस्ताव है, और ये आंकड़ा आगे और बढ़ सकता है.

30 सिंतबर को जारी होगी अंतिम सूची

ड्राफ्ट लिस्ट में जिनके नाम नहीं होंगे, वे 1 अगस्त से 1 सितंबर के बीच आपत्ति या दावा दायर कर सकते हैं. अंतिम सूची 30 सितंबर को जारी होगी.

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