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करीब 40 साल बिहार पर राज करने वाली कांग्रेस कैसे अपनी सियासी जमीन खोती चली गई?

Bihar Congress News: कांग्रेस देश की सबसे पुरानी पार्टी है. बिहार में आजादी के बाद से 1990 तक के दौर में करीब 5 साल के दो अलग-अलग मुख्यमंत्रियों के कार्यकाल को छोड़ दें तो कांग्रेस ही हमेशा सत्ता में रही. इसके बावजूद कांग्रेस करीब 4 दशक में बिहार की सत्ता में वापसी नहीं कर पाई है. प्रदेश की जनता उसे मौका देने के लिए क्यों नहीं है तैयार? क्या है इसकी पृष्ठभूमि? जानें सब कुछ.

करीब 40 साल बिहार पर राज करने वाली कांग्रेस कैसे अपनी सियासी जमीन खोती चली गई?
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Bihar Congress News: भारत को आजादी मिलने के बाद बिहार की राजनीति पर कांग्रेस का लगभग चार दशक तक दबदबा रहा, लेकिन आज हालात यह है कि राज्य की सियासत में कांग्रेस हाशिए पर पहुंच चुकी है. ऐसे कौन-से हालात थे जिसकी वजह से कांग्रेस चार दशक तक सत्ता में रहने के बाद पिछड़ गई और फिर कभी वापसी नहीं कर पाई? इतना ही नहीं, अब तो कांग्रेस ने अपनी परंपरागत सियासी जमीन भी बिहार में खो दी है. वर्तमान में कांग्रेस बिहार में केवल आरजेडी की पिछलग्गू पार्टी रह गई है.

दरअसल, बिहार की राजनीति में कांग्रेस का दौर कभी इतना मजबूत था कि केंद्र की सत्ता तक का रास्ता पटना से होकर गुजरता था, लेकिन धीरे-धीरे बदलते राजनीतिक समीकरण, सामाजिक न्याय की नई लहर, जातीय समीकरण और कमजोर नेतृत्व ने कांग्रेस को कमजोर कर दिया. 1947 से लेकर 1990 के बीच केवल 1969 से 1972 और फिर 1977 से 1979 तक सत्ता से बाहर रही.

1990 और उसके बाद कांग्रेस का कैसा रहा प्रदर्शन

1. इसके बाद 1990 में विधानसभा चुनाव हुए. जनता दल को 122 सीटों पर जीत हासिल हुई. वहीं कांग्रेस को महज 71 सीटों पर जीत मिली. झारखंड मुक्ति मोर्चा को 19, कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया को 23, कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया(M) को 6, जनता पार्टी को 3, सोशलिस्ट पार्टी को एक सीट पर जीत मिली. 30 निर्दलीय भी चुनाव जीते थे. जनता दल की वामपंथी दलों और निर्दलीयों के सहारे सरकार बन गई. इसके बाद मुख्यमंत्री पद के लिए जनता दल के अंदर वोटिंग हुई और लालू यादव इसमें विजयी हुए। इसके बाद लालू यादव

2. 1995 के विधानसभा चुनाव में एक बार फिर से जनता दल की सरकार बनी.लालू यादव फिर से बिहार के मुख्यमंत्री बने. 1997 में चारा घोटाला का आरोप लगने के बाद लालू यादव ने जनता दल में टूट के बाद राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के नाम से एक अलग पार्टी बना ली. लालू यादव को मुख्यमंत्री पद छोड़ना पड़ा. राबड़ी देवी को उन्होंने बिहार का मुख्यमंत्री बना दिया. जब लालू यादव जनता दल छोड़ कर आए थे, तब उनके साथ 136 विधायकों का समर्थन था और कांग्रेस और झारखंड मुक्ति मोर्चा के समर्थन से उन्होंने बिहार में आरजेडी की सरकार बना ली. यहां पर कांग्रेस सत्ता में तो आई लेकिन इस बार लालू बिहार के नेता थे और कांग्रेस अब कमजोर हो चुकी थी. जो कांग्रेस 1990 तक अकेले दम पर बिहार की सत्ता में थी, वही कांग्रेस 5 साल बाद 28 सीटों पर सिमट चुकी थी.

3. बिहार विधानसभा चुनाव 2000 में कांग्रेस की सीटों की संख्या गिरकर 23 पर आ गई. इस बार बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार बीजेपी के समर्थन से बने, लेकिन महज 7 दिन के लिए. गठबंधन में दरार पड़ती है और राबड़ी देवी एक बार फिर से बिहार की मुख्यमंत्री बन जाती हैं.

4. साल 2005 के विधानसभा चुनाव में आरजेडी और कांग्रेस की करारी हुई. नीतीश कुमार की जेडीयू 88 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनी. जबकि भाजपा की 55 सीटें जीतने में कामयाब हुई. दोनों मिलकर सरकार का गठन किया. कांग्रेस ने इस चुनाव में आरजेडी के साथ गठबंधन में 51 सीटों पर चुनाव लड़ा.उसे महज 9 सीटों पर जीत मिली थी.

5. साल 2010 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी महज चार सीटों पर सिमट गई. लालू यादव की आरजेडी के साथ मिलकर चुनाव लड़ा था. एनडीए गठबंधन को 206 सीटों पर जीत हासिल हुई. जबकि आरजेडी को 22 और कांग्रेस को महज 4 सीट मिली.

6. बिहार विधानसभा चुनाव 2015 में केंद्र में मोदी की सरकार बन चुकी थी और बिहार में नया समीकरण बन चुका था. नीतीश कुमार और लालू यादव एक साथ हो गए थे और कांग्रेस भी साथ में ही थी. इस बार महागठबंधन की सरकार बनी. हालांकि, 2017 में गठबंधन टूट गया और नीतीश कुमार ने बीजेपी के साथ मिलकर सरकार बना ली.

7. साल 2020 विधानसभा चुनाव में एनडीए फिर से सत्ता में लौटी. इस बार भी सीएम नीतीश कुमार ही बने. बीजेपी से मतभेद के बाद 2022 में नीतीश कुमार ने आरजेडी और कांग्रेस के साथ सरकार बनाई. साल 2024 में नीतीश एक बार एनडीए में आ गए और सीएम बन गए. साल 2020 में कांग्रेस 70 सीटों पर चुनाव लड़ी और 19 सीटें जीतने में कामयाब हुई. महागठबंधन में सबसे कम स्ट्राइक रेट कांग्रेस का ही था.

सत्ता से बाहर होने के बाद वापसी क्यों नहीं कर पाई कांग्रेस?

1. आजादी के बाद कांग्रेस का दबदबा

आजादी के बाद से लेकर 1990 तक बिहार में कांग्रेस का मजबूत जनाधार था. जाति और धर्म की राजनीति उतनी मुखर नहीं थी. पंडित नेहरू से लेकर इंदिरा गांधी और फिर राजीव गांधी तक कांग्रेस को यहां जनता का भरोसा मिलता रहा.

2. भ्रष्टाचार और अंदरूनी विवाद

सत्ता में रहने के दौरान कांग्रेस के कई नेता भ्रष्टाचार के आरोपों में घिरे. साथ ही, पार्टी में गुटबाजी बढ़ती गई. इससे संगठन कमजोर हुआ और कार्यकर्ताओं का मनोबल टूटा.

3. नेतृत्व का अभाव

बिहार में चार दशक तक शासन में रहने के बाद भी कांग्रेस कोई करिश्माई नेता खड़ा नहीं कर पाई. लालू, नीतीश और यहां तक कि बीजेपी ने अपने-अपने चेहरे सामने रखे, लेकिन कांग्रेस हमेशा हाईकमान पर निर्भर रही.

4. सामाजिक न्याय का उभार

बिहार में 1990 के दशक में मंडल कमीशन लागू होने के बाद बिहार की राजनीति में बड़ा बदलाव आया. पिछड़ों और अति पिछड़ों के बीच सामाजिक न्याय की राजनीति ने जोर पकड़ा. लालू प्रसाद यादव और बाद में नीतीश कुमार जैसे नेताओं ने कांग्रेस का जनाधार खींच लिया.

5. जातीय राजनीति

आरजेडी, जेडीयू और बीजेपी ने जातीय समीकरण के हिसाब से अपनी राजनीति मजबूत की. कांग्रेस इन समीकरणों को साधने में पीछे रह गई.

6. अब क्या है हाल?

वर्तमान में प्रदेश कांग्रेस गठबंधन की राजनीति पर निर्भर है. खुद अपने दम पर चुनाव लड़ने की उसकी ताकत लगभग खत्म हो चुकी है. राहुल गांधी बिहार में 17 दिनों की यात्रा पर हैं. ईसी ने की वोट की चोरी का नारा देकर राहुल गांधी सुर्खियों में हैं. कांग्रेस इस बार बिहार में पार्टी के विस्तार में जुटी है.

कांग्रेस के हालात पर नेताओं की राय

कांग्रेस भूल सुधार की राह पर - नवल किशोर यादव

आरजेडी के राष्ट्रीय प्रवक्ता प्रोफेसर नवल किशोर यादव का कहना है कि ये बात सही है कि कांग्रेस पार्टी 1990 के बाद बहुत कमजोर हुई है, लेकिन कांग्रेस ने अपने भूल को स्वीकार कर लिया है. अब कांग्रेस उन्हीं मुद्दों पर जोर दे रही है, जिस पर हमारी पार्टी शुरू से दमदार तरीके से अपनी आवाज बुलंद करती आई है. जैसे सामाजिक न्याय, महंगाई, बेरोजगारी, लोकतंत्र की रक्षा, वोट का अधिकार आदि. उन्होंने कहा कि कांग्रेस का पतन नहीं हुआ है बल्कि वो अब सुधार की ओर अग्रसर है. बाकी कांग्रेस महागठबंधन के साथ चुनाव लड़ रही हैं. ऐसे में जो भी परिणाम होगा वो सबके लिए एक समान होगा.

RJD का वोट बैंक कब्जाना चाहते हैं राहुल - रंजन सिंह

बिहार में कांग्रेस पार्टी का न तो कोई वोट बैंक है, न ही कोई आधार. राहुल गांधी आरजेडी के वोट पर कब्जा करने के लिए वोट अधिकार रैली निकाल रहे हैं. अब इस सवाल का जवाब तेजस्वी यादव को देना होगा कि आरजेडी के वोट बैंक पर राजनीति वो करेंगे या राहुल गांधी को उस पर अपना अधिकार जमाने देंगे. तेजस्वी भ्रष्टाचार के युवराज हैं तो राहुल गांधी वोट अधिकार रैली के जरिए बिहार और देश की जनता को गुमराह कर हैं. इससे कांग्रेस का विस्तार नहीं बल्कि वो और सिकुड़ जाएगी.

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