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RJD के चुनावी मुद्दे को हड़प गए राहुल, पीके और चिराग; तेजस्वी MY के दम पर लड़ेंगे चुनाव या गढ़ेंगे नया फार्मूला?

बिहार विधानसभा चुनाव 2025 को लेकर इस बार नया सियासी समीकरण बन रहा है. ऐसा इसलिए कि आरजेडी नेता तेजस्वी यादव के पलायन, बेरोजगारी, महंगाई, गरीब, सामाजिक न्याय के मुद्दे पर कांग्रेस के राहुल गांधी, जन सुराज पार्टी के प्रशांत किशोर और लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के चिराग पासवान कुंडी मारकर बैठना के फिराक में हैं. ताकि युवाओं, मुसलमानों, गरीबों और ओबीसी वोट बैंक के दम पर सरकार बना सकें.

RJD के चुनावी मुद्दे को हड़प गए राहुल, पीके और चिराग; तेजस्वी MY के दम पर लड़ेंगे चुनाव या गढ़ेंगे नया फार्मूला?
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( Image Source:  Sora AI )

बिहार की राजनीतिक समीकरण पांच साल पहले की तुलना में इस बार तेजी से बदल रहा है. प्रशांत किशोर, चिराग पासवान और राहुल गांधी की आक्रामक रवैये से राष्ट्रीय जनता दल को नुकसान होने के संकेत अभी से मिलने लगे हैं. ऐसा इसलिए कि जिन मुद्दों को लंबे समय से लालू यादव और तेजस्वी यादव अपना कोर एजेंडा बताते आए हैं, उन पर अब राहुल गांधी, प्रशांत किशोर और चिराग पासवान कुंडी मारकर बैठ गए हैं. सभी ने इस पर दावेदारी जताकर सियासी पिच गर्म कर दी है.

ऐसे में सबसे बड़ा सवाल यह है कि तेजस्वी यादव इस बार किस मुद्दे पर चुनाव लड़ेंगे. इस या फिर वो एम-वाई (मुस्लिम-यादव) और गरीब व दलितों के अलावा अन्य मुद्दे भी उठाएंगे. अभी तक ऐसा संकेत नहीं मिले हैं. ऐसे में सवाल है कि क्या तेजस्वी यादव केवल एमवाई (मुस्लिम–यादव) समीकरण के भरोसे विधानसभा चुनाव जीत पाएंगे.

दरअसल, बिहार की राजनीति में आरजेडी हमेशा सामाजिक न्याय और रोजगार जैसे मुद्दों को अपने पाले में रखती रही है. हालांकि, उसका मुस्लिम यादव मतदाता अभी आरजेडी के पक्ष में इनटैक्ट हैं, लेकिन 2025 के चुनाव से पहले राहुल गांधी, पीके और चिराग पासवान मुस्लिम वोट बैंक में भी सेंध लगा चुके हैं. इन्हीं मुद्दों पर जनता को लुभाने की कोशिश में हैं. ऐसे में तेजस्वी यादव के सामने चुनौती है कि वे पारंपरिक एमवाई समीकरण से आगे निकलकर एक व्यापक फार्मूला तैयार करें, वरना उनका मजबूत वोट बैंक खिसक सकता है.

इस बार क्या करेंगे तेजस्वी?

तेजस्वी यादव ने 2020 विधानसभा चुनाव में भी 10 लाख नौकरी देने का वादा कर युवाओं को आकर्षित किया था. एमवाई समीकरण पर भरोसा तो है, लेकिन सरकार बनाने के लिए इसी के भरोसे रहना उनके लिए नुकसान का सौदा साबित हो सकता है. इस बार उन पर दबाव है कि वे नौकरी, सामाजिक न्याय, विकास के साथ नया सियासी कॉम्बिनेशन पेश करें.

तेजस्वी युवाओं को युवाओं को बेहतर शिक्षा, तकनीकी प्रशिक्षण और रोजगार देने पर जोर दे रहे हैं. वह सरकार स्कूलों की स्थिति सुधारने और शिक्षकों की बहाली के साथ सरकारी अस्पतालों में डॉक्टरों और नर्सों की नियुक्ति बढ़ाना का भी वादा करते आए हैं. महंगाई और किसान हित, डीजल–पेट्रोल की कीमतों पर सवाल सवाल उठाते आए है. गरीब और पिछड़े वर्गों के लिए सामाजिक न्याय और को बढ़ाकर पिछड़े-दलित-अल्पसंख्यक समाज को राजनीतिक–आर्थिक भागीदारी दिलाने का वादा भी टॉप पर रहा है. एनडीए सरकार में व्याप्त भ्रष्टाचार के मसले भी वो उठाते आए हैं. इसके अलावा, सामाजिक आधार पर राजनीति की परंपरा को आगे बढ़ाते हुए अपने को ‘सभी वर्गों का नेता’ बताने की कोशिश भी करते दिखाई देते हैं. इसका उन्हें कितना लाभ मिलेगा इसकी तस्वीर अभी साफ नहीं हुई है.

क्या कहते हैं राहुल गांधी के बदले तेवर?

राहुल गांधी ‘भारत जोड़ो न्याय यात्रा’ और ‘गरीबी-रोजगार’ के मुद्दे पर जनता को जोड़ रहे हैं. हाल ही में उन्होंने बिहार में एसआईआर के मसले पर वोटर अधिकार यात्रा निकालकर न केवल अपने प्रमुख सहयोगी राष्ट्रीय जनता दल को चौंका दिया है बल्कि विपक्षी दलों में बीजेपी, जेडीयू और एलजेपीआर को भी मुश्किल में डाल दिया है. राहुल गांधी की ये यात्रा उन क्षेत्रों से निकली थी, जिनमें विरोधी दलों की स्थिति मजबूत है. कांग्रेस रोजगार और सामाजिक न्याय पर जोर देकर आरजेडी के पारंपरिक एजेंडे को चुनौती दी है. हालांकि, एक ही गठबंधन का हिस्सा होने के नाते आरजेडी नेता उसे उस रूप में नहीं ले रहे हैं. बताया जा रहा है कि राहुल गांधी की इस मुहिम से मुसलमानों को रुझान कांग्रेस की ओर बढ़ गया है.

एनडीए-महागठबंधन पर PK का वार

जन सुराज पार्टी के प्रमुख प्रशांत उर्फ पीके ने ‘जन सुराज’ अभियान से जमीनी स्तर पर पैठ बना ली है. हालांकि, उन्हें अभी चुनावी सफलता नहीं मिल है. वह जाति और धर्म से परे जाकर बेहतर शिक्षा, स्वास्थ्य और बिहार की बेहतरी का आह्वान कर रहे हैं. उनकी सभाओं में लोग जुट भी रहे हैं. ये बात अलग है कि उन्होंने अभी कोई बड़ी रैली नहीं की है. पहली बार विधानसभा चुनाव लड़ने की तैयारी में उनकी पार्टी जुटी है. वे शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार जैसे मसलों एनडीए और महागठबंधन की पोल खोल रहे हैं. उनके भाषण को लोग सुनने के लिए पहुंचने रहे हैं. युवा मतदाताओं को सीधे टारगेट कर रहे हैं.

बिहारी अस्मिता चिराग का राग

चिराग पासवान विकास और ‘बिहार फर्स्ट बिहारी फर्स्ट’ के मुद्दे को फिर से उभार रहे हैं. दलित–युवा वोट बैंक को साधने की कोशिश. बीजेपी के साथ गठबंधन की संभावना उन्हें और मजबूत बना सकती है. चिराग पासवान सबसे ज्यादा बात बिहारी अस्मिता की करते हैं. उनका साफ कहना है कि बिहार फर्स्ट, बिहारी फर्स्ट उनके लिए सबसे बड़ा सियासी मुद्दा है. प्रदेश युवाकों के पिछले कुछ समय में सबसे लोकप्रिय चेहरा बनकर उभरे हैं.

बदलते समीकरण बढ़ा सकती हैं इनकी मुश्किलें

अगर राहुल, पीके और चिराग मुद्दों को लोग पकड़ लेते हैं तो आरजेडी का परंपरागत एजेंडा कमजोर होगा. एनडीए (NDA) की तरफ से भी जातीय समीकरण और मोदी फैक्टर बड़ा रोल निभाएंगे. इसलिए, नए चुनावी माहौल में आरजेडी को अब केवल एमवाई पर नहीं, बल्कि सर्वजन अप्रोच पर काम करना होगा.

इसके अलावा, बिहार में मतदाताओं को लुभाने के उद्देश्य से केंद्र सरकार ने बजट 2025 में कई बड़ी परियोजनाओं की घोषणा की, जिनमें मखाना बोर्ड, एक ग्रीनफील्ड हवाई अड्डा और राज्य के मिथिलांचल क्षेत्र में पश्चिमी कोशी नहर परियोजना के लिए वित्तीय सहायता शामिल है.

ऑपरेशन सिंदूर के बाद होने वाले पहले बिहार चुनाव 2025 ने राजनीतिक विवाद को जन्म दे दिया है. कांग्रेस ने प्रधानमंत्री मोदी की एनडीए के मुख्यमंत्रियों के साथ बैठक से पहले भाजपा पर इस अभियान का राजनीतिकरण करने का आरोप लगाया है.

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