BJP को सत्ता तक पहुंचाने के लिए RSS ने पटना में डाला डेरा, गुपचुप रणनीति और आक्रामक नैरेटिव से महागठबंधन को बेदम करने की तैयारी
बिहार विधानसभा चुनाव में बीजेपी की राह इस बार भी आसान नहीं है, लेकिन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की गहरी पैठ और जमीनी सक्रियता से पार्टी को चुनाव में बड़ा फायदा मिल सकता है. ऐसा इसलिए कि संघ ने महाराष्ट्र और हरियाणा की तर्ज पर बिहार में सक्रिय भूमिका निभाने के संकेत दिए हैं. ऐसे में सवाल यह उठता है कि संघ बिहार में महाराष्ट्र और हरियाणा की तरह चमत्कार दिखा पाएगी. फिलहाल, आरएसएस ने चुनावी जीत को सुनिश्चित करने के लिए जमीनी स्तर पर स्वयंसेवकों काम पर लगा दिया है.
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 बेहद अहम माने जा रहे हैं. महागठबंधन और एनडीए के बीच सीधी टक्कर की संभावनाएं हैं. इस बात को ध्यान में रखते हुए अपने स्वयंसेवकों को महाराष्ट्र और हरियाणा की तर्ज पर इस काम को अंजाम देने को कहा है. ताकि बीजेपी की जीत सुनिश्चित हो सके. अगर संघ (RSS) के कार्यकर्ता अपने मिशन में सफल रहे तो बीजेपी के लिए आरएसएस की भूमिका विधानसभा चुनाव में निर्णायक साबित हो सकती है. फिर संघ ने बिहार चुनाव के सियासी समीकरणों को ध्यान में रखते हुए युवा और पहली बार वोटर्स को अपने पक्ष में करने के लिए अलग से रणनीति बनाई है.
वैसे भी संघ बिहार के पिछले कुछ वर्षों से काफी सक्रिय है. संतों, धर्माचार्यों, हिन्दू मठों के शंकराचार्यों, बाबा बागेश्वर सहित सभी बड़े धर्माचार्यों को बिहार के लिए माहौल बनाने को कहा था. अब आरएसएस ने जमीनी पकड़, गांव-गांव तक कार्यकर्ताओं का नेटवर्क और समाज के अलग-अलग वर्गों तक सीधा संपर्क को बीजेपी के लिए बड़ा हथियार बनाने में जुटी है. चुनाव के नतीजों में यह रणनीति कितना असर डालेगी, यह तो वक्त बताएगा, लेकिन अभी से माहौल बनाने की कोशिश तेज हो गई है.
बिहार के लिए खास माइक्रो मैनेजमेंट
1. घर-घर जाकर लोगों से संपर्क करना. इस अभियान के तहत आरएसएस के कार्यकर्ता बूथ स्तर पर परिवारों सीधी पहुंच बनाने में जुटे हैं.
2. सामाजिक और धार्मिक कार्यक्रमों के जरिए माहौल बनाने की कोशिश.
3. बिहार के युवा और पहली बार वोटर पर आरएसएस ने खास तौर से अपने स्वयंसेवकों को फोकस करने को कहा है.
4. शिक्षा, रोजगार और सांस्कृतिक गौरव जैसे मुद्दों को उठाया जा रहा है. शाखाओं के जरिए युवाओं को जोड़ने की रणनीति.
5. बिहार में जातीय समीकरण साधने की कोशिश, ओबीसी, अति पिछड़ा और दलित वर्ग पर विशेष ध्यान देने पर भी संघ की योजना है.
6. सामाजिक समरसता कार्यक्रमों के जरिए जातीय विभाजन को कम करने का प्रयास.
7. लोगों से जुड़े स्थानीय मसलों को उठाना पहली प्राथमिकता. किसानों, छोटे व्यापारियों और प्रवासी मजदूरों के मुद्दों को प्रमुखता देने को कहा गया है.त्र
8. बिहार की स्थानीय भाषाओं व रीति-रिवाजों से जुड़ाव दिखाना और उसके प्रति सम्मान का भाव प्रकट करना.
9. माइक्रो मैनेजमेंट के तहत हर विधानसभा क्षेत्र में कोर टीम बनाई गई है. सोशल मीडिया और जमीनी प्रचार को प्रभावी बनाने के लिए आपसी तालमेल.
10. बीजेपी को संगठनात्मक मजबूती देने के लिए पार्टी के कार्यकर्ताओं और आरएसएस स्वयंसेवकों के बीच तालमेल सहित चुनावी प्रशिक्षण शिविर व बूथ मैनेजमेंट पर जोर.
संगठनात्मक मजबूती
संघ के सुझाव के अनुरूप बिहार BJP अध्यक्ष दिलीप जायसवाल ने चुनाव से पहले नई टीम का गठन किया. जिसमें 5 प्रदेश महामंत्री, 14 प्रदेश मंत्री, 13 प्रदेश उपाध्यक्ष, 1 कोषाध्यक्ष और 2 सह-कोषाध्यक्ष शामिल हैं. प्रदेश महामंत्री जो कि प्रभावी पद माना जाता है, उसकी जिम्मेदारी आरएसएस के लोगों को दी गई है. जिन्हें बीजेपी बिहार का महामंत्री बनाया गया है, उनमें शिवेश राम, राजेश वर्मा, राधामोहन शर्मा, लाजवंती झा और राकेश कुमार का नाम शामिल है. इन लोगों को आरएसएस रुझान वाला नेता माना जाता है. उपाध्यक्ष पद पर प्रमोद चंद्रवंशी (EBC वर्ग का प्रतिनिधित्व), धर्मशिला गुप्ता (वैश्य समुदाय), बेबी कुमारी (दलित नेता), और राजेंद्र सिंह का नाम शामिल है.
जिला-स्तर पर संगठन को प्रभावी बनाने की योजना
राज्य स्तर पर चुनाव अधिकारी और महामंत्री राजेश वर्मा को बनाया है. इसके अलावा 45 जिला संगठन चुनाव अधिकारी नियुक्त किए गए हैं. इनमें से लगभग 35 अधिकारी पिछड़ा वर्ग और दलित समुदाय से हैं. ताकि व्यापक सामाजिक प्रतिनिधित्व सुनिश्चित किया जा सके.
एमएलसी प्रमोद कुमार (MLC) को पटना ग्रामीण और विनय सिंह (पूर्व MLA) को पटना महानगर का चुनाव अधिकारी बनाया गया है. इनके अलावा अन्य कई सांसद, विधायक और विधान परिषद सदस्य भी शामिल हैं जो जिला-स्तर पर एकजुटता बनाए रखने में अहम भूमिका निभाएंगे.
‘वार रूम’ से होगा सब कुछ कंट्रोल
भाजपा ने बिहार में एक चुनाव वार रूम की स्थापना की है, जिसका संचालन रोहन गुप्ता कर रहे हैं. इनके पास हरियाणा, झारखंड और दिल्ली जैसी जगहों पर इसी तरह का अनुभव है. इस वार रूम में कॉल सेंटर के माध्यम से बूथ और मंडल-स्तरीय कार्यकर्ताओं से जानकारी जुटाई जा रही है. नए मतदाताओं को पंजीकृत कराने का काम भी चल रहा है.
कुछ केंद्रीय नेताओं को बिहार के विभिन्न जोन के लिए चुनावी प्रभारी नियुक्त किया गया है. JP नड्डा, रवि शंकर प्रसाद, थावर चंद गहलोत, राधामोहन सिंह, नरेंद्र सिंह तोमर, गिरिराज सिंह और राम कृपाल यादव को इस टीम में शामिल किया गया है. ये लोग सभी 243 विधानसभा क्षेत्रों की निगरानी करेंगे और जोन-स्तर पर चुनावी अभियान को संचालित करेंगे. केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह स्वयं पटना स्थित वार रूम की निगरानी में जुटे हैं.
प्रत्येक मंडल (लगभग 50 बूथों वाला) में सक्रियता बढ़ाने की रणनीति, जिसमें प्रत्येक बूथ पर 5 समर्पित कार्यकर्ता होंगे जिन्हें लगभग 200 वोटर तक पहुंचने की जिम्मेदारी दी जाएगी. पार्टी ने हर जिलों को दो-दो नेता (एक राजनीतिक और एक संगठनात्मक) जिम्मेदारी सौंपी है. ताकि रणनीति और निष्पादन दोनों सुनिश्चित हों. इन्हें केंद्रीय कमांड को रिपोर्ट करनी है. बूथ स्तर पर 'शक्ति केंद्र' (पंचायत-स्तरीय) कर्मियों को प्रशिक्षित किया जा रहा है. इसके बाद उन्हें पांच बूथ कार्यकर्ता और 'पन्ना प्रभारी' नियुक्त करने का काम सौंपा गया है.
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बिहार के लिए आरएसएस का 9 चुनावी मंत्र
1. हिसाब-किताब से प्रचार
आरएसएस ने चुनाव के महीनों पहले से ही लगभग महाराष्ट्र और हरियाणा में हजारों छोटी–छोटी जनसभाएं कीं. हर सभा में 8–15 लोग शामिल होते थे. इन सभाओं में घर-घर, मोहल्लों और सार्वजनिक जगहों पर जाकर संवेदनशील और प्रभावशाली विचारों को साझा किया गया. इसे रणनीति पर बिहार में भी अमल होगा. ताकि भाजपा को अंतिम समय में केवल वोट जुटाने (mobilise) की ज़रूरत पड़े, मन बदलने की नहीं.
2. सहयोग और समन्वय
लोकसभा में कमजोर प्रदर्शन के बाद RSS और BJP के बीच तालमेल पर जोर दिया जाएगा. महाराष्ट्र और हरियाणा की तर्ज पर आरएसएस और भाजपा नेताओं के बीच नियमित समीक्षा बैठक आयोजित की जाएगी. उम्मीदवारों का चयन, बूथ प्रबंधन पर जोर. आरएसएस भाजपा के लिए ग्रामीण इलाकों में मजबूती देने का काम करेगी.
3. जातीय समूहों को पार्टी के पक्ष करने की नीति
बिहार में परंपरागत रूप से ब्राह्मण, राजपूत, वैश्य, यादव, कुर्मी, महिला समूहों, गैर-जातीय समूह जैसे (हिंदू संगठनों, जातीय समितियों, ओबीसी , अति पिछड़ा व अन्य वर्गों) को लामबंद करने की रणनीति अपनाई जा रही है. ताकि हरियाणा और महाराष्ट्र की तरह बीजेपी को लाभ पहुंचाना संभव हो सके.
4. अप्रत्यक्ष प्रचार प्रसार
आरएसएस सुनियोजित तरीके से हिंदुत्व को एक व्यापक सांस्कृतिक आंदोलन के रूप में बताने का काम करेगी. इसे संघ वे विचार-संयोजन नाम दिया है.
5. विपक्षी नैरेटिव से निपटने का प्लान
संघ ने विपक्ष के नैरेटिव से निपटने का फैसला किया. उसने 13 समूह बनाए हैं. एक समूह विपक्ष से आने वाली सभी सूचनाओं को एकत्रित करने का काम करेगी.
6. जातीय सोशल इंजीनियरिंग
आरएसएस ने OBC के सूक्ष्म जातीय समूहों से मिलना-जुलना शुरू कर दिया है. उन्हें यह विश्वास दिलाया जा रहा है कि बीजेपी ही उनकी प्रतिनिधित्व और कल्याण की गारंटी है. महाराष्ट्र चुनाव में संघ ने अलग-अलग मराठा समूहों को इसी आधार पर बीजेपी पक्ष में चुनाव डालने के लिए तैयार करने में सफल हुई थी.
7. लोकसभा में असफलता से सीख
लोकसभा चुनाव 2024 में यूपी, महाराष्ट्र, बिहार, पश्चिम बंगाल व अन्य राज्यों में बीजेपी को नुकसान उठाना पड़ा था. बीजेपी-आरएसएस के नेता वही गलती बिहार चुनाव में नहीं दोहराना चाहते. यही वजह है कि आरएसएस ने बिहार चुनाव में सब कुछ दांव पर लगा दिया है.
8. हिंदू एकता और धार्मिक संदेश
धर्मयुद्ध (holy war) जैसा नैरेटिव, जैसे - “बटेंगे तो कटेंगे” (विभाजन हमारा पतन) और “एक हैं तो सेफ हैं” (एकता में सुरक्षा है) जैसे स्लोगन, समाज में हिंदू एकता की भावना जगाने की रणनीति रचे जा रहे हैं.
9. अन्य रणनीतिक फैक्टर
वोट विभाजन हरियाणा और महाराष्ट्र में आरजेडी-कांग्रेस-वीआईपी-वामपंथी, और निर्दलियों उम्मीदवारों ने मिलकर विपक्ष में वोट विभाजन किया, जिससे बीजेपी को सीधा लाभ हुआ.





