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'चिंता ना करीं, ओकर काम हो जाई', जेल में बंद शहाबुद्दीन ने किस CM को दिया था ये भरोसा

बिहार के सिवान से पूर्व सांसद और बाहुबली नेता मोहम्मद शहाबुद्दीन हमेशा विवादों और सुर्खियों में रहे. हालांकि, चार पहले उनका निधन हो गया, लेकिन जेल में बंद रहते हुए भी उनके रसूख और ताकत की कहानियां खूब चलती हैं. उन्हीं से जुड़ा एक किस्सा ऐसा भी है, जब जेल से ही उन्होंने एक मुख्यमंत्री को भरोसा दिलाया था कि आप चिंता ना करीं, जो भी है उसका काम तमाम हो जाएगा. आइए जानते हैं यह वाक्य किस सीएम से जुड़ा है, और इसके पीछे की पूरी कहानी क्या है?

चिंता ना करीं, ओकर काम हो जाई, जेल में बंद शहाबुद्दीन ने किस CM को दिया था ये भरोसा
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बात मंडल और कमंडल के दौर की है. साल 1990 का बिहार विधानसभा चुनाव हुआ था. यह चुनाव एक तरफ प्रदेश में नए युग की शुरुआत के लिहाज से ऐतिहासिक था, तो यह दूसरे मायने इसने कई क्रिमिनल बैकग्राउंड वाले लोगों को राजनीति में ला खड़ा किया. हालांकि, बिहार में राजनीति और अपराध का संबंध बहुत पुराना है, लेकिन 1990 के दशक में बिहार की राजनीति ने ऐसा मोड़ लिया, जिससे राजनीति का अपराधीकरण प्रदेश में संस्थागत हो गया.

दरअसल, बिहार एक एक कृषि प्रधान राज्य होने के नाते वहां पर लोगों का किसी शख्स के स्टेटस आकलन संपत्ति पर अधिकार के लिहाज से होता है. यही वो कारण है, जिसकी वजह से बिहार में जमीन पर कब्जा करने के लिए अक्सर गुर्गों का इस्तेमाल किया जाता था. गुर्गों की भूमिका तब और बढ़ गई, जब उनका इस्तेमाल प्रतिद्वंद्वियों को धमकाने और सभी प्रकार के राजनेताओं द्वारा मतदान केंद्रों पर कब्जा करने के लिए किया जाने लगा. किताब 'ब्रोकेन प्रोमिसेज' - (द बालकनाइजेशन आफ बिहार के चैप्टर) में इस बात का जिक्र है.

गुंडों ने सियासी संरक्षण के नाम पर की दबंगई

साल 1980 और 1990 के दशक में बिहार में गुंडों ने दबंगई के दम और राजनेताओं द्वारा राजनीतिक सत्ता हथियाने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका को महसूस किया था. इसके बाद उन्होंने खुद चुनाव लड़ने का फैसला किया. इससे बिहार में राजनीति का अपराधीकरण चरम स्तर तक हुआ और क्राइम की एंट्री बिहार में इस तरह हुआ कि दोनों एक-दूसरे के पर्याय बन गए. अपराधी से राजनेता बने नए लोग और राजनीतिक दल एक-दूसरे की पूरी तरह से सेवा करते थे. उम्मीदवारों को एक पार्टी चिन्ह और चुनाव लड़ने की वैधता मिलती थी. पार्टियों को ऐसे उम्मीदवार मिलते थे जिनके बारे में उन्हें पता था कि वे अपने निर्वाचन क्षेत्रों में किसी भी अन्य की तुलना में जीतने में अधिक सक्षम हैं.

जीते 30 निर्दलीय प्रत्याशियों में अधिकांश बाहुबली

यहां पर इस बात का जिक्र कर दें कि 1990 के विधानसभा चुनावों में आश्चर्यजनक तरीके से बिहार विधानसभा चुनाव में 30 निर्दलीय उम्मीदवार चुनाव जीतने में कामयाब हुए. इनमें से अधिकांश बाहुबली थे, जिनका अपने क्षेत्रों में आतंक था. इनमें एक नाम बाहुबली और आरजेडी के कद्दावर नेता मोहम्मद शहाबुद्दीन का भी था.

जेल में रहें या बाहर, रसूख रहता था बरकरार

इससे साफ है कि शहाबुद्दीन का बिहार की राजनीति में दबंगई, अपराध और सत्ता की साजिशों के साथ करीब का जुड़ा रहा. वह चाहे जेल में रहे हों या बाहर, उनका राजनीतिक रसूख हमेशा चर्चा में रहा. यहां तक कि जेल से भी उनकी पकड़ इतनी मजबूत थी कि मुख्यमंत्री तक को उन्होंने भरोसा दिलाया था कि आप काम की चिंता न करें, आपका काम हो जाएगा.

पुस्तक ब्रोकेन प्रोमिसेस के लेखक मृत्युंजय शर्मा के मुताबिक, 'शहाबुद्दीन का नाम जब-जब बिहार की राजनीति में आता है, तो साथ में अपराध और सत्ता का गठजोड़ भी सामने आता है. कहा जाता है कि जेल में बंद रहने के बावजूद उनकी पहुंच इतनी गहरी थी कि मुख्यमंत्री स्तर के नेता भी उन पर निर्भर रहते थे.'

ऐसा ही एक वाक्या यह है कि एक फोन लीक होने की वजह से सामने आया. लीक कॉल के मुताबिक लालू यादव फोन कॉल जेल में बंद क्रिमिनल से लीडर बने शहाबुद्दीन को यह कहते हुए सूने गए कि, 'सुनो, वू बहुते परेशान कर रहा है, कुछ करो उसका'. इसके जवाब में शहाबुद्दीन ने उन्हें भोजपुरी में जवाब दिया, 'चिंता मत करीं, ओकर काम हो जाई.' जैसा कि शहाबुद्दीन ने लालू यादव को भरोसा दिया, उन्होंने उस काम को अपने गुर्गों के जरिए पूरा करा दिया.

RJD के संकटमोचक थे शहाबुद्दीन

यह घटना उस दौर की गवाही है जब बिहार में लालू-राबड़ी राज में शहाबुद्दीन का दबदबा चरम पर था. उन्हें पार्टी का संकटमोचक माना जाता था. वह जेल से भी राजनीतिक फैसलों को प्रभावित करने की उनकी क्षमता बनी रहती थी. उनका नाम कई अपराधों में आया, जिनमें हत्या और अपहरण भी शामिल है. हालांकि, पुस्तक में इस बात का उल्लेख नहीं है कि शहाबुद्दीन ने लालू यादव के कहने पर किसकी हत्या की थी, लेकिन शहाबुद्दीन के कई अपराधों में लालू प्रसाद यादव के संरक्षण की बात सामने आई है.

आईएएस अधिकारी व डीएम जी कृष्णैया की हत्या मामले में आनंद मोहन को सजा हुई थी, लेकिन शहाबुद्दीन का नाम भी चर्चा में आया था, पर वह वह बच गए. लालू प्रसाद यादव के शासनकाल में शाहाबुद्दीन को राजनीतिक संरक्षण प्राप्त था, जिससे उसे अपने अपराधों के लिए सजा नहीं मिली.

लालू यादव पर लगे थे संरक्षण देने के आरोप

उस समय लालू प्रसाद यादव और मोहम्मद शहाबुद्दीन के बीच फोन पर बातचीत के आरोपों ने काफी विवाद पैदा किया था. यह आरोप लगाया गया था कि लालू यादव ने शहाबुद्दीन के कहने पर कुछ लोगों को धमकाया या उनके काम करवाए. लालू यादव पर आरोप है कि उन्होंने शहाबुद्दीन को सियासी संरक्षण दिया, जिसकी वजह से उसे अपने अपराधों के लिए सजा नहीं मिली.

मोहम्मद शहाबुद्दीन पर किन-किन मामलों में लगे थे आरोप

  • 1990 और 2000 के दशक में कई हत्या के मामलों में शहाबुद्दीन का नाम आया.
  • चंदा बाबू के दो बेटों की तेजाब से नहलाकर हत्या (2004, सीवान) केस सबसे ज्यादा चर्चित रहा. सुप्रीम कोर्ट ने भी इस मामले को गंभीरता से लिया.
  • पूर्व विधायक कृष्णा सिंह हत्याकांड में भी सिवान के पूर्व सांसद शहाबुद्दीन का नाम सामने आया था.
  • कई राजनीतिक विरोधियों और कारोबारियों के अपहरण का आरोप.
  • पत्रकार राजदेव रंजन (हिन्दुस्तान के ब्यूरो चीफ, सीवान) की हत्या में भी उनका नाम चर्चाओं में रहा.
  • सीवान और आसपास के जिलों में व्यापारियों और ठेकेदारों से रंगदारी वसूली के आरोप.
  • अपने गैंग के साथ मिलकर सीवान में दहशत कायम करने का आरोप.
  • चुनाव के दौरान बूथ कैप्चरिंग, हिंसा और अवैध हथियार रखने के मामले.
  • शहाबुद्दीन के घर से एके-47 राइफल और अन्य हथियार बरामद हुए थे.
  • लालू प्रसाद यादव के करीबी माने जाने वाले शहाबुद्दीन पर आरोप था कि वह राजनीतिक विरोधियों को धमकाकर या खत्म करके आरजेडी पर दबदबा बनाए रखते थे.
  • शहाबुद्दीन के खिलाफ 50 से अधिक आपराधिक मामले दर्ज हुए थे, जिनमें से कई में उन्हें दोषी भी ठहराया गया.
बिहार विधानसभा चुनाव 2025बिहारलालू प्रसाद यादव
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