राबड़ी देवी के लिए लालू यादव कैसे बन गए पति से 'साहेब', दिलचस्प किस्सा, जानकर आपको भी होगी गुदगुदी
बिहार की राजनीति पूर्व सीएम राबड़ी देवी की एंट्री किसी सामान्य प्रक्रिया के तहत नहीं हुईं. न ही वो पॉलिटिक्स में एक्टिव थीं. इसके बावजूद सीधे बिहार का सीएम बनने की उनकी कहानी उतनी ही दिलचस्प है जितनी उनके मन में पति के लिए शादी के 22 साल बाद उमड़ा प्यार चौंकाने वाली..लालू यादव के अचानक फैसले ने उन्हें सीधा 'सामान्य गृहिणी' से 'बिहार का मुख्यमंत्री' बना दिया. ये कहानी तो सब जानते हैं, लेकिन बहुत कम लोगों को पता है राबड़ी देवी के लिए लालू यादव पति से 'साहेब' कब बन गए. यह किस्सा भी दिल को गुदगुदाने वाला है.

बिहार की राजनीति से जुड़े कई दिलचस्प किस्से हैं, लेकिन राबड़ी देवी का मुख्यमंत्री बनना सबसे अनोखी घटनाओं में से एक है. एक सामान्य गृहिणी, जिसने राजनीति का ‘ए बी सी...’ तक नहीं सीखा, अचानक प्रदेश की सबसे बड़ी कुर्सी यानी सीएम बन जाए तो आप क्या कहेंगे? यह कोई कल्पित कहानी नहीं है. ऐसा हुआ लालू प्रसाद यादव के एक ऐलान से, जिसने राबड़ी देवी को 'लालू की पत्नी' से सीधे 'प्रदेश की सत्ता का सर्वेसर्वा' बना दिया. इस कहानी के पीछे की वजह आज भी लोगों को चुटकी लेने पर मजबूर कर देती है.
दरअसल, बिहार की पूर्व सीएम राबड़ी का राजनीति में उदय भारतीय राजनीति की सबसे दिलचस्प कहानियों में से एक है. राबड़ी देवी को बिहार की पहली महिला मुख्यमंत्री बनाने का फैसला आरजेडी प्रमुख ने खुशी-खुशी नहीं बल्कि सियासी मजबूरी के तहत लिया था.
अब हम बात करते हैं राबड़ी देवी की उस कहानी की, जिसके केंद्र भी लालू यादव ही हैं. दरअसल, यह घटना उस समय की है, जब बिहार विधानसभा चुनाव 1995 में कांटे की टक्कर में लालू यादव की जीत हुई थी. चुनावी जीत के सियासी मायने ज्यादा इसलिए रहे कि तब के मुख्य चुनाव आयुक्त रहे टीएन शेषन कसम खा चुके थे कि चुनाव में किसी भी तरह की धांधली बिहार में नहीं होने देंगे. कितनी बार भी चुनाव की तारीख आगे क्यों न बढ़ानी पड़ जाए, लेकिन चुनावों को पूरी तरह निष्पक्षता के साथ संपन्न कराएंगे. चार बार तो वे ऐसा कर भी चुके थे, हर बार तब के सीएम लालू यादव को फैक्स के जरिए बता देते. इलेक्शन की तारीख आगे बढ़ा दी गई है.
रस्सा से खटाल में बांध देंगे
एक दिन टीएन शेषन के चुनावी तौर तरीकों को लेकर लालू यादव अपना धैर्य खो बैठे. उन्होंने चुनाव आयोग के एक अधिकारी को फोन मिलाया और कहा दिया 'शेषन पगला सांड जैसा कर रहा है, उसे मालूम नहीं है कि हम रस्सा से बांध कर उसे खटाल में रख सकते हैं.'
आरजेडी प्रमुख चुनाव पोस्टपोन होने की वजह से इतने ज्यादा गुस्सा थे कि उन्होंने प्रदेश के तत्कालीन चीफ इलेक्टोरल ऑफिसर आरजेडी पिल्लई को भी फोन मिला दिया. उन्होंने कहा, 'ईजी पिल्लई, हम तुम्हरा चीफ मिनिस्टर हैं और तुम हमरा अफसर, ई शेषणवा कहां से बीच में टपकता रहता है. ये हमें फैक्स मैसेज भेजता है, ई अमीरों का खिलौना लेकर तुम लोग गरीब लोगों के खिलाफ कॉन्सपिरेसी कर रहे हो, सब फैक्स-फूक्स उड़ा देंगे, इलेक्शन हो जाने दो.'
लालू भी डरते थे टीएन शेषन से
उस समय लालू भी विपक्ष से ज्यादा शेषन से डरते थे. उन्हें लग रहा था कि जितनी सख्ती कर रखी है, पता चले गरीब आदमी वोट देने ही ना निकले. अब लालू का सारा वोट तो गरीब और यादव जाति के बीच में था. इसी वजह से जब चुनावों की तारीफ बार-बार पोस्टपोन हो रही थी, उनका डर भी बढ़ रहा था. लेकिन जब चुनाव के नतीजे आए और लालू ने इतिहास रच दिया, तो उनके समर्थकों में खुशी की लहर दौड़ पड़ी.
कांग्रेस के श्रीकृष्ण सिंह के बाद वह सत्ता में रहते हुए दूसरी बार बिहार का सीएम बनने वाले शख्स बन गए. आरजेडी के नेताओं और समर्थकों के लिए यह मौका जश्न जैसा था. दूसरी तरफ उनके घर में राबड़ी देवी अलग ही दुनिया में खोई हुईं थी. उनके मन में चल रहा था कि अब अपने पति यानी लालू को क्या कहकर पुकारें अब तो वह खास आदमी बन गए हैं. बिहार में फिर अपने दम पर सीएम बने हैं. उनमें जरूर कोई न कोई महानता के लक्षण हैं. इसलिए, तो ऐसा हुआ. बस, अपने पति को लेकर इसी सोच ने उनका मन बदल दिया.
किस नाम से पति को पुकारती थीं पूर्व CM?
राबड़ी देवी, अभी तक वह अपने पति को 'ईह' कहकर पुकारती थीं. बिहार में आज भी ज्यादातर ग्रामीण महिलाएं अपने पति का नाम लेने से बचती हैं. ऐसा इसलिए नहीं कि महिलाएं पति का नाम लेने डरती हैं. बस सामाजिक और पारिवारिक परंपरा में ऐसा होता आया है, इसलिए देखा—देखी महिलाएं पति का नाम नहीं लेती हैं.
यहां पर इस बात का भी जिक्र कर दूं कि लालू और राबड़ी देवी की शादी 1973 में हुई थी. उस समय राबड़ी सिर्फ 14 साल की थीं. लालू भी राजनीति में कोई बड़ा नाम नहीं कमा पाए थे. इसलिए, वो उनके लिए कोई खास नहीं, आम इंसान की तरह ही थी.
तब लालू यादव पटना वेटनरी कॉलेज में काम किया करते थे. वहां पर वो क्लर्क थे. टेबलों पर चाय रखने से लेकर एक फाइल को दूसरी जगह पहुंचाने तक का काम उनके पास रहता था. अब इस काम में ना तो कोई ऐसा सम्मान था और ना ही रुतबा, ऐसे में राबड़ी के पास भी कोई कारण नहीं था कि वे उन्हें किसी दूसरे नाम से संबोधित करतीं. जिंदगी आगे बढ़ती गई और लालू के साथ राबड़ी के पूरे 22 साल ऐसे ही गुजर गए. इस बीच परिवार बढ़ता गया. लालू धीरे-धीरे राजनीति में चमकते गए. फिर, 1995 में दूसरी बार बिहार का चुनाव जीते और राज्य के मुख्यमंत्री बन गए.
लालू के प्रति राबड़ी का ऐसे बदला मन
पहली बार जब सीएम बने तो राबड़ी देवी को नहीं लगा कि उनका नाम बदलने की जरूरत है. लेकिन, पहली बार सीएम बनने के बाद से पटना के सरकारी आवास में रहते हुए वह इतना समझ रखती थीं कि कई कारणों से 1995 का चुनाव ज्यादा मुश्किल था. 1995 के चुनाव में चुनौती ज्यादा बड़ी थी. इसी वजह से जब लालू ने फिर सीएम कुर्सी संभाल ली, फिर उन्होंने अप्रत्याशित जीत दर्ज की, राबड़ी बेचैन हो गईं, वे सोचती रहीं कि अब अपने पति को सम्मान से क्या पुकारें?
बस उसी सोच का नतीजा रहा कि लालू यादव को पत्नी की ओर से पति के बदले 'साहेब' का तमगा मिल गया. उसके बाद से राबड़ी देवी के लिए लालू यादव हमेशा के लिए 'साहेब' बन गए. दोनों के हाथ से सीएम की कुर्सी चली गई, चुनाव में पार्टी हारी भी, 20 साल से सत्ता से बाहर भी है. दोनों बुजुर्ग हो चले हैं, लेकिन पति-पत्नी के प्रेम में कोई कमी नहीं आई है. राबड़ी देवी ने आरजेडी प्रमुख से 'साहेब' का तमगा आज भी नहीं छिना. वह तीन दशक से अपने पति को साहेब कहकर ही बुलाती हैं. वह कहती हैं, लालू दुनिया के लिए कुछ भी हों, मेरे साहेब और उनका हर हुक्म सिर आंखों पर.
लालू के प्रति राबड़ी का ऐसे बदला मन
पहली बार जब सीएम बने तो राबड़ी देवी को नहीं लगा कि उनका नाम बदलने की जरूरत है. लेकिन उनके साथ रहते हुए इतनी समझ तो राबड़ी भी रखती थीं कि कई कारणों से 1995 का चुनाव ज्यादा मुश्किल था. चुनौती ज्यादा बड़ी थी. इसी वजह से जब लालू ने फिर सीएम कुर्सी संभाल ली, फिर उन्होंने अप्रत्याशित जीत दर्ज की, राबड़ी बेचैन हो गईं, वे सोचती रहीं कि अब अपने पति को सम्मान से क्या पुकारें. बस उसी सोच का नतीजा रहा कि लालू यादव को पत्नी की ओर से पति के बदले 'साहेब' का तमगा मिल गया. उसके बाद से राबड़ी देवी के लिए लालू यादव हमेशा के लिए 'साहेब' बन गए. दोनों के हाथ से सीएम की कुर्सी चली गई, चुनाव में पार्टी हारी भी, लेकिन राबड़ी देवी ने आरजेडी प्रमुख से 'साहेब' का तमगा नहीं छिना.
गृहिणी से सीधे सीएम की कुर्सी पर बैठी राबड़ी
पूर्व सीएम राबड़ी देवी का जन्म 1956 में गया जिले के सलारपुर गांव में हुआ था. उनकी शादी 1973 में लालू यादव से हुई. शादी के बाद वे पारंपरिक गृहिणी की तरह पटना के 1, अन्ने मार्ग स्थित सरकारी आवास में परिवार संभालती रहीं. 1997 में चारा घोटाले में नाम आने के बाद लालू यादव को सीएम पद से इस्तीफा देना पड़ा. लालू यादव ने परिवार और पार्टी के भविष्य को देखते हुए अपनी पत्नी राबड़ी देवी को मुख्यमंत्री बनाने का ऐलान कर दिया. यह फैसला न सिर्फ बिहार, बल्कि पूरे देश के लिए चौंकाने वाला साबित हुआ. उसके बाद राबड़ी देवी ने 1997 से 2005 तक तीन बार बिहार के मुख्यमंत्री पद की जिम्मेदारी निभाई. उनके कार्यकाल में विपक्ष और मीडिया ने अक्सर उन पर कठोर सवाल उठाए, लेकिन उन्होंने हर चुनौती का सामना किया. राजनीति के साथ कदमताल करना सीख लिया. अब तो वह एक पकी राजनेता की तरह बहुत कम बोलती हैं. जब बोलती हैं तो सीधे नीतीश और पीएम मोदी का ही सिर ठनकता है. तो ऐसी हैं हमारी राबड़ी देवी, जिन्हें शादी के 22 साल बाद पता चला तक लालू यादव आम इंसान नहीं, खास हैं.