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क्‍या BJP की B Team की छवि को तोड़ना चाह रहे Owaisi, जिस पार्टी ने छीने विधायक, उसी से गठबंधन की बार-बार क्‍यों कर रहे बात?

Asaduddin Owaisi: एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी पर अक्सर बीजेपी की ‘B टीम’ होने का आरोप लगता रहा है, लेकिन अब वे बार-बार आरजेडी के साथ गठबंधन की चर्चा कर इस छवि को तोड़ने की कोशिश करते दिखाई दे रहे है. इसके लिए उन्होंने प्रदेश अध्यक्ष अख्तरुल ईमान को लालू यादव से मिलने के लिए भेजा था. अख्तरुल ईमान लालू यादव के आवास पर पहुंचे भी, लेकिन उनसे मुलाकात नहीं हुई. बिहार में चर्चा यह है कि जिस पार्टी ने उनके पांच में से चार विधायक तोड़ लिए, उसी से हाथ मिलाने की बात क्यों?

क्‍या BJP की B Team की छवि को तोड़ना चाह रहे Owaisi, जिस पार्टी ने छीने विधायक, उसी से गठबंधन की बार-बार क्‍यों कर रहे बात?
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Asaduddin Owaisi News: बिहार की सियासत में एआईएमआईएम और उसके नेता असदुद्दीन ओवैसी हमेशा चर्चा में रहते हैं. इस बार वह बिहार विधानसभा चुनाव को लेकर सभी के निशाने पर आ गए हैं. दरअसल, ओवैसी को बीजेपी की ‘B टीम’ कहकर विपक्ष घेरता रहा है. इसके उलट, अब वे आरजेडी के साथ मिलकर चुनाव लड़ने की संभावना काफी समय से तलाश रहे हैं, लेकिन महागठबंधन को एक भी दल उन्हें अपने साथ लेकर चलने के लिए तैयार नहीं है. पांच साल पहले तो उन्होंने आरएलएसपी व अन्य से गठबंधन बना लिया था, लेकिन इस बार वो ऐसा नहीं कर पा रहे हैं. उनकी इस बेचैनी को लेक कई सवाल उठ रहे हैं - क्या ओवैसी सच में बीजेपी की ‘B टीम’ वाली छवि को तोड़ना चाहते हैं? आखिर जिस आरजेडी ने उनके विधायक तोड़े, उसी से गठबंधन की बात क्यों कर रहे हैं?

ओवैसी BJP की ‘B टीम’ कैसे?

बिहार और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में एआईएमआईएम चुनाव लड़कर, भले कुछ सीटें न जीत पाए, लेकिन 'वोटकटवा' की भूमिका निभाती रही है. विपक्ष का आरोप रहा कि ओवैसी के चुनाव लड़ने से बीजेपी को सीधा फायदा मिलता है. मुस्लिम वोटों के बंटवारे से बीजेपी को अप्रत्यक्ष लाभ मिलने पर ही उन्हें ‘B टीम’ कहा जाता है. पांच साल पहले बिहार विधानसभा चुनाव में उन्हें सीमांचल की 24 सीटों में पांच पर अपने प्रत्याशियों को जिताने में सफलता मिली. करीब एक दर्ज सीटों पर कांग्रेस और आरजेडी के प्रत्याशी इसलिए हार गए कि ओवैसी के प्रत्याशी ने कुछ वोट काट लिए.

अब क्यों हटाना चाहते हैं बी टीम का टैग?

एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी खुद को मुसलमानों की सच्ची आवाज बताना चाहते हैं. ‘B टीम’ की छवि उनकी राजनीति को नुकसान पहुंचा रही है. विपक्ष की यह नैरेटिव मुस्लिम मतदाताओं के बीच उनकी पकड़ कमजोर कर देता है. ऑपरेशन सिंदूर के बाद विदेश भेजे गए भारतीय दल में बढ़ चढ़कर हिस्सा लेना और सुर्खियों में रहने की वजह से मुसलमान उनसे नाराज हैं. आरजेडी संग संभावित गठबंधन से वे यह संदेश देना चाहते हैं कि वे भाजपा विरोधी हैं, लेकिन पहले लालू यादव और उसके बार तेजस्वी यादव ने उनके साथ गठबंधन से साफ इनकार कर दिया है. बशर्ते इस बार आरजेडी की सीमांचल की सीटों पर पूरी तरह से बेनकाब करने की रणनीति है. आरजेडी नेताओं का कहना है कि वो महागठबंधन में आकर बीजेपी को लाभ पहुंचाना चाहते है. यही वजह है कि ओवैसी के लिए बीजेपी का बी टीम होने का टैग हटाना मुश्किल है.

आरजेडी से गठबंधन की चर्चा क्यों?

बिहार में मुस्लिम-यादव समीकरण आरजेडी की ताकत है. एआईएमआईएम प्रमुख ओवैसी मुस्लिम वोटों में हिस्सेदारी चाहते हैं और इसके लिए उन्हें बड़े विपक्षी दल से हाथ मिलाना जरूरी है. भले ही आरजेडी ने पहले उनके 5 विधायकों को तोड़ लिया हो, लेकिन राजनीतिक अस्तित्व बचाने के लिए ओवैसी गठबंधन का विकल्प खुला रखना चाहते हैं. यह रणनीति उनकी ‘बीजेपी समर्थक’ वाली छवि को कमजोर कर सकती है.

ओवैसी के लिए RJD से गठबंधन मजबूरी क्यों?

  • मुस्लिम-यादव समीकरण (MY Factor): बिहार में आरजेडी का आधार मुस्लिम-यादव समीकरण है. ऐसे में ओवैसी अगर गठबंधन में आते हैं तो मुस्लिम वोटों का बड़ा हिस्सा एकजुट हो सकता है.
  • सीमांचल की अहमियत: बिहार के सीमांचल इलाके में मुस्लिम वोट 40 से 68 प्रतिशत तक है. यहां ओवैसी का प्रभाव दिखता है, लेकिन सत्ता की राजनीति में आरजेडी के बिना उनका असर अधूरा है.
  • विधायक टूटने का दर्द : भले ही आरजेडी ने एआईएमआईएम के 5 में से 4 विधायक तोड़े हों, लेकिन राजनीतिक अस्तित्व बचाने के लिए ओवैसी गठबंधन की संभावना बनाए रखना चाहते हैं.
  • बीजेपी-विरोधी छवि: गठबंधन की चर्चा से ओवैसी यह संदेश देना चाहते हैं कि वे विपक्षी खेमे का हिस्सा हैं, न कि बीजेपी की ‘B टीम’.

ओवैसी नहीं चाहते बिहार में मजबूत हो AIMIM - अनवर हुसैन

आरजेडी के पूर्व प्रवक्ता और पार्टी से नाराज चल रहे अनवर हुसैन का कहना है कि ओवैसी बिहार में अकेले दम पर कुछ नहीं कर पाएंगे. साल 2015 के चुनाव में एक भी सीट नहीं जीत पाए थे. साल 2020 में उनकी पार्टी पांच सीटें जीत गई. उसमें से भी चार विधायकों को आरजेडी ने तोड़ लिया. उसके बाद से उन्होंने बिहार में पलटकर नहीं देखा. न ही बिहार गए. इससे सीमांचल के मुसलमानों को निराशा हाथ लगी. वहां के मुस्लिम मतदाता सोच रहे हैं कि जिस पार्टी के चार विधायक आरजेडी ने तोड़ लिए, उसके बाद प्रतिरोध करने के बजाय वो हैदराबाद में छिपकर बैठे रहे. अब चुनाव नजदीक आकर वे फिर से आरजेडी और कांग्रेस का खौफ दिखाकर सहानुभूति के जरिए पार्टी प्रत्याशी को जिताना चाहते हैं. उनकी इस राजनीति की वजह से मुस्लिम मतदाता नाराज हैं. हालांकि, अब भी उन्हें कुछ मुस्लिम मतदाताओं को वोट मिलेगा, वो इसलिए कि वह बीजेपी की तरह मुस्लिम दक्षिणपंथी है.

अनवर हुसैन का कहना है कि वह हिंदू को डर दिखाकर वोट हासिल करना चाहती है. यही काम बीजेपी हिंदुओं को मुसलमानों के खिलाफ भड़का करती आई है. इस लिहाज से देखें तो बीजेपी और ओवैसी में ज्यादा अंतर नहीं है. यही वजह है कि उनसे कोई गठबंधन नहीं करना चाहता. फिर ओवैसी की रणनीति से साफ जाहिर होता है कि वो बिहार में अपनी पार्टी को मजबूत ही नहीं करना चाहते. वह बिहार में हिंदू-मुस्लिम की बात कर हैदराबाद में अपनी पकड़ बनाए रखना चाहते हैं.

ओवैसी की चुनौतियां

  • क्या आरजेडी सच में ओवैसी को साथ लेना चाहेगी, जब उसने पहले ही उनके विधायकों को तोड़ा?
  • बिहार में मुस्लिम वोटों का बड़ा हिस्सा आरजेडी के पास पहले से है. ऐसे में ओवैसी को हिस्सेदारी कितनी मिलेगी, यह बड़ा सवाल है.
  • अगर ओवैसी आरजेडी से हाथ भी मिला लें, तो बीजेपी और अन्य विपक्षी दल उन्हें फिर भी ‘वोटकटवा’ कहकर घेर सकते हैं.
  • ओवैसी का आरजेडी के साथ गठबंधन का संकेत देना सिर्फ रणनीतिक कदम नहीं, बल्कि उनकी राजनीतिक छवि बदलने की मजबूरी है. वे यह साबित करना चाहते हैं कि वे भाजपा की ‘बी टीम’ नहीं, बल्कि एक स्वतंत्र मुस्लिम नेतृत्व हैं.
  • आरजेडी के साथ गठबंधन करने में भरोसे की कमी और वोटों की हिस्सेदारी का सवाल सबसे बड़ी बाधा है.
बिहार विधानसभा चुनाव 2025
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