ओवैसी की चाल या चुनौती! RJD-कांग्रेस की नींद हराम, खिसक जाएगा भरोसेमंद मुस्लिम वोट?
एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी के नए ऑफर ने बिहार की सियासत में हलचल मचा दी है. आरजेडी और कांग्रेस के खेमे में चिंता बढ़ गई है कि मुस्लिम वोट बैंक, जो अब तक परंपरागत रूप से उनके साथ रहा है, कहीं ओवैसी की रणनीति से खिसक न जाए. आरजेडी और कांग्रेस नेताओं में चुनावी समीकरणों पर इस ऑफर का असर गहराता दिख रहा है. शायद यही वजह है कि लालू यादव ओवैसी की पार्टी को गठबंधन में लेने को तैयार नहीं है.

बिहार की सियासत में मुस्लिम वोट बैंक हमेशा निर्णायक भूमिका निभाता रहा है. आरजेडी और कांग्रेस को अब तक इसका सीधा लाभ मिलता आया है, लेकिन असदुद्दीन ओवैसी का ऑफर ‘इंडिया’ गठबंधन के लिए मुश्किलें खड़ी कर सकता है. सवाल यह है कि क्या ओवैसी के दांव से महागठबंधन का समीकरण बिगड़ेगा और बीजेपी को अप्रत्यक्ष लाभ मिलेगा?
बिहार में दशकों से गठबंधन की राजनीति को ही सफल माना जाता रहा है. विधानसभा नजदीक आते ही सियासी दल अपना कुनबा बढ़ाने की जोड़ तोड़ में जुट जाते हैं. लेकिन ये क्या इंडिया ब्लॉक के अगुवा यानी आरजेडी प्रमुख लालू यादव इस बार इससे बच रहे हैं. लगता है वह एआईएमआईएम के खुले ऑफर से भी घबरा गए हैं.
पिछले बिहार चुनाव में हैदराबाद सांसद असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी सीमांचल की पांच सीटें जीती थी। यह भी इस बात का प्रमाण है कि यह ऑफर किसी पर बोझ बनने की बात नहीं है, बल्कि उनके पास बिहार में जनाधार भी है। लेकिन, जिस तरह आरजेडी इस ऑफर से पीछा छुड़ाने में लगी है, उससे उसके अपने कोर वोट बैंक छिटकने का डर जाहिर हो रहा है।
सीमांचल में है ओवैसी का जनाधार
बिहार चुनाव में असदुद्दीन ओवैसी की एआईएमआईएम भी एक फैक्टर रहेगी, इसमें कोई दुविधा नहीं है. मौजूदा विधानसभा में सीमांचल से उसके पांच विधायक जीते थे, ये बात अलग है कि इनमें चार विधायकों ने उनका साथ छोड़ दिया. जमीनी स्तर पर पार्टी चीफ का प्रभाव मौजूद है. खासकर मुस्लिम युवाओं में। सीमांचल के चार जिलों- पूर्णिया, कटिहार, किशनगंज और अररिया में 24 असेंबली सीटें हैं और यह राज्य में 68 प्रतिशत मुस्लिम वाले वाले सीटों में शामिल हैं.
इस बार के चुनाव में एआईएमआईएम के बचे हुए एकमात्र विधायक और पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष अख्तरुल इमान पार्टी को बिहार में इंडिया ब्लॉक (महागठबंधन) का हिस्सा बनाने के लिए आरजेडी अध्यक्ष लालू यादव से मुलाकात की कोशिश भी कर चुके हैं, लेकिन वह सफल नहीं हो पाए। 2015 में पार्टी बिहार में 6 सीटें लड़ी थी, लेकिन सब हार गई थी. 2020 में इसे बहादुरगंज, जोकीहाट, अमौर, कोचाधामन और बैसी में सफलता मिली. इसकी वजह से इन पांचों सीटों पर महागठबंधन और एनडीए दोनों को ही हार का सामना करना पड़ा.
'मुसलमानों का मसीहा बन जाएंगे'
आरजेडी के एक वरिष्ठ आरजेडी नेता के मुताबिक, 'एक बार हमने एआईएमआईएम को अपने गठबंधन का हिस्सा बना लिया तो हमारे लिए बहुत दिक्कत हो जाएगी, क्योंकि वे अपनी जगह बना लेंगे. अगर उन्होंने इंडिया ब्लॉक में रहकर उन पांचों सीटों को जीत लिया तो हम कैसे दावा कर पाएंगे कि मुसलमानों के मसीहा हम ही हैं? हम उन्हें क्रेडिट नहीं देना चाहते. कांग्रेस पहले ही हमारे साथ है. एआईएमआईएम को ऐसी पार्टी के रूप में देखा जाता है, जो आरएसएस और बीजेपी की तरह वोटों का ध्रुवीकरण करती है. उसमें कोई अंतर नहीं है.'
तीसरा मोर्चा बनाने की कवायद
2023 के बिहार जाति जनगणना के हिसाब से राज्य की 243 विधानसभा सीटों में से 47 पर मुस्लिम वोटर निर्णायक रोल में हैं. 11 सीटों पर तो 40 प्रतिशत से ज्यादा मतदाता मुसलमान हैं. सीमांचल के कुछ हिस्सों में मुस्लिम वोट बैंक तो 70 प्रतिशत से भी ज्यादा है. महागठबंधन में जगह नहीं मिलने पर एआईएमआईएम तीसरा मोर्चा बनाकर करीब 100 सीटों पर लड़ने का विचार कर रहा है. पार्टी का आरोप है कि आरजेडी को मुस्लिम वोट तो चाहिए, लेकिन इसे मुस्लिम नेतृत्व से परहेज है.
क्या है सियासी समीकरण
- बिहार की करीब 17% मुस्लिम आबादी अब तक आरजेडी-कांग्रेस की कोर वोट बैंक मानी जाती रही है.
- ओवैसी के ऑफर ने मुस्लिम समुदाय के मुद्दों को लेकर ‘इंडिया’ गठबंधन को समर्थन का संकेत दिया, लेकिन सीटों पर हिस्सेदारी की बात ने हलचल बढ़ा दी है.
- आरजेडी की चिंता यह है कि लालू यादव का परंपरागत मुस्लिम-यादव (MY) समीकरण ओवैसी की सक्रियता से दरक सकता है.
- कांग्रेस की मुस्लिम क्षेत्रों में पकड़ कमजोर हुई है. ऐसे में ओवैसी की मौजूदगी वोट कटवा से ज्यादा असरकारी साबित हो सकती है.
- विपक्षी वोटों में बंटवारे से बीजेपी को अप्रत्यक्ष फायदा हो सकता है.
- 2020 विधानसभा चुनाव में ओवैसी की पार्टी ने सीमांचल की 24 में 5 सीटें जीतकर साबित किया था कि मुस्लिम वोटों में सेंध लगाने की ताकत एआईएमआईएम में है.
- ओवैसी को साथ लेने या दूरी बनाने, दोनों ही स्थितियों में गठबंधन को बड़ा राजनीतिक जोखिम उठाना पड़ सकता है.
- बिहार की 13 करोड़ आबादी में मुसलमान 17.7 फीसदी हैं. एआईएमआईएम इसी को अपनी चुनावी राजनीति का पूरा आधार बनाकर चल रही है.
सीमांचल के 4 जिलों में 2020 में कौन कहां से जीता
- सीमांचल में बिहार का पूर्वोत्तर इलाका आता है. इनमें अररिया, कटिहार, किशनगंज और पूर्णिया जिले में हमेशा से मुस्लिम वोट बैंक और पिछड़े वर्गों की राजनीति का केंद्र रहा है. यहां मुस्लिम आबादी 35% से लेकर कई जगहों पर 65 प्रतिशत तक है. इसलिए, चुनावी समीकरणों में यह इलाका निर्णायक साबित होता रहा है.
- बिहार में सीमांचल को लालू यादव और कांग्रेस का गढ़ माना जाता था. मगर 2020 के विधानसभा चुनाव में ही बीजेपी ने इस किले को दरका दिया. सीमांचल में कुल चार जिले —कटिहार, पूर्णिया, अररिया और किशनगंज शामिल हैं. मुस्लिम बाहुल्य इन चार जिलों में 24 विधानसभा सीटें हैं. जाति जनगणना के आंकड़ों के मुताबिक सूबे की कुल आबादी में करीब 17.70 फीसदी मुस्लिम हैं.
- सीमांचल के इन चार जिलों की आबादी की बात करें तो किशनगंज में 68, अररिया में 43, कटिहार में 45 और पूर्णिया में 39 फीसदी हिस्सेदारी मुस्लिम समाज की है.
- पिछले चुनाव में बीजेपी का प्रदर्शन चौंकाने वाला था. बीजेपी 24 में से 8 सीटें जीत सीमांचल की सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी थी. एआईएमआईएम को 5, कांग्रेस को 5, जनता दल (यूनाइटेड) को 4, सीपीआई (एमएल) और आरजेडी को एक-एक सीटें मिली थीं.
2020 में सीमांचल की 24 सीटों का नतीजा
साल 2011 की जनगणना के आंकड़ों के मुताबिक बिहार में करीब 17 फीसदी (16.87%) मुस्लिम हैं. बिहार की कुल मुस्लिम आबादी का 40 से 68 फीसदी हिस्सा (कहीं कम, कहीं ज्यादा) सिर्फ सीमांचल के चार जिलों में बसा है.