नेपाल हिंसा ने हिला दी बिहार की राजनीति! रक्सौल से किशनगंज तक सीमा से लगे 21 सीटों पर सिरदर्द, जानें कैसे बदल सकता है खेल
नेपाल में हालिया हिंसा का असर बिहार के सीमावर्ती 7 जिलों पर साफ दिखाई दे रहा है. पश्चिम चंपारण से किशनगंज तक की 21 विधानसभा सीटों पर व्यापार, रिश्ते और सुरक्षा की चिंता बढ़ गई है. बाजार सूने हैं, शादियों पर संकट है और रोजगार ठप. ऐसे में सवाल उठ रहा है कि क्या ये हालात चुनावी समीकरण बदल देंगे? पढ़ें पूरी रिपोर्ट कि कैसे नेपाल की अराजकता बिहार की राजनीति को प्रभावित कर सकती है.

नेपाल में हालिया हिंसा ने न सिर्फ वहां की राजनीति को हिला दिया है बल्कि बिहार के सीमावर्ती इलाकों पर भी इसका असर साफ दिख रहा है. सात जिलों की 21 विधानसभा सीटें नेपाल की सीमा से सटी हैं, जहां लोग रोज़मर्रा की जरूरतों और रिश्तों के लिए नेपाल पर निर्भर रहते हैं. ऐसे में नेपाल की अस्थिरता का असर सीधे-सीधे बिहार की सीमावर्ती जनता पर पड़ रहा है. सवाल यह है कि क्या यह असंतोष बिहार चुनाव में कोई बड़ा मुद्दा बनेगा?
बिहार के सात जिले- पश्चिमी चंपारण, पूर्वी चंपारण, सीतामढ़ी, मधुबनी, सुपौल, अररिया और किशनगंज सीधे नेपाल से जुड़े हैं. इन जिलों की कुल 21 विधानसभा सीटें हैं जिनमें वाल्मिकीनगर, रक्सौल, रीगा, हरलाखी, निर्मली, नरपतगंज और बहादुरगंज जैसी प्रमुख सीटें शामिल हैं. नेपाल के हालात बिगड़ने के बाद इन इलाकों में कारोबार, रोजगार और सामाजिक रिश्ते बुरी तरह प्रभावित हुए हैं.
व्यापार पर संकट की छाया
सीमा के पार से आने-जाने वाले नेपाली ग्राहकों की वजह से रक्सौल जैसे बाजार गुलज़ार रहते थे. लेकिन अब दुकानदार बिक्री न होने से परेशान हैं. व्यापारी अशोक श्रीवास्तव बताते हैं कि पांच दिन में एक रुपए की भी बोहनी नहीं हुई. दुर्गा पूजा से पहले जिस समय करोड़ों की खरीदारी होती थी, वहां अब सन्नाटा है. इससे साफ है कि सीमावर्ती व्यापार इस संकट का सबसे बड़ा शिकार है.
नेपाल से सटे जिलों की विधानसभा सीटें
1. पश्चिमी चंपारण
- वाल्मिकीनगर
- रामनगर
- सिकटा
2. पूर्वी चंपारण
- रक्सौल
- नरकटिया
- ढाका
3. सीतामढ़ी
- रीगा
- बथनाहा
- परिहार
- सुरसंड
4. मधुबनी
- हरलाखी
- खजौली
- बाबू बरही
- लौकहा
5. सुपौल
- निर्मली
- छातापुर
6. अररिया
- नरपतगंज
- फारबिसगंज
- सिकटी
7. किशनगंज
- बहादुरगंज
- ठाकुरगंज
रिश्तों पर पड़ी चोट
सीमा से लगे कई परिवारों के रिश्ते नेपाल में हैं. शादियां, त्योहार और रोज़मर्रा का आना-जाना इस क्षेत्र की खास पहचान रही है. लेकिन हिंसा और तनाव ने इन रिश्तों को भी प्रभावित किया है. एनडीटीवी की रिपोर्ट के अनुसार, मोतिहारी के अनिल सिंह जैसे लोग अपने रिश्तेदारों को भारत बुला रहे हैं. उनका कहना है कि सुरक्षा तो जरूरी है लेकिन सरकार को स्थानीय स्तर पर रोजगार की व्यवस्था करनी चाहिए.
सुरक्षा और आवागमन पर रोक
नेपाल हिंसा के बाद सीमा पर सुरक्षा बढ़ा दी गई है. आवागमन पर रोक और अतिरिक्त चौकसी की वजह से लोगों की आवाजाही लगभग बंद हो गई है. हजारों लोग जो रोज़ नेपाल से भारत आते थे, अब नहीं आ रहे. इससे न सिर्फ बाजार बल्कि रोज़गार और छोटे-मोटे कारोबार भी ठप हो गए हैं.
राजनीतिक असर और वोटरों का रुख
प्रभावित लोग मानते हैं कि यह समस्या गंभीर है लेकिन इसे बिहार सरकार की नाकामी से नहीं जोड़ते. लोगों का कहना है कि नेपाल की हिंसा में बिहार सरकार की सीधी भूमिका नहीं है, इसलिए वे इस मुद्दे पर वोट नहीं देंगे. हालांकि चुनावी समीकरणों पर असर को लेकर राजनीतिक दल पूरी तरह सक्रिय हैं और प्रभावित लोगों को अपने पक्ष में करने की कोशिश कर रहे हैं.
पिछले चुनाव का गणित
पिछले विधानसभा चुनाव में इन 21 सीटों में से सबसे ज्यादा 11 पर बीजेपी ने जीत दर्ज की थी. 5 सीटें जेडीयू, 3 राजद, 1 माले और 1 एआईएमआईएम के खाते में गई थी. खास बात यह रही कि बीजेपी ने इस इलाके की एक भी सीट नहीं हारी. यही वजह है कि इस बार भी उसकी रणनीति सीमावर्ती इलाकों पर खास ध्यान देने की है.
पार्टियों की रणनीति और भविष्य का समीकरण
बीजेपी कहती है कि उसकी प्राथमिकता सीमावर्ती इलाकों में सुरक्षा और व्यापार को संभालना है. वहीं राजद प्रभावित लोगों को राहत और रोजगार देने की बात कर रहा है. राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि भले ही अभी माहौल तनावपूर्ण है लेकिन चुनाव तक हालात बदल सकते हैं. तब तक नए मुद्दे उभरेंगे और नेपाल हिंसा का असर सीमित ही रह जाएगा.