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ज़ुबिन गर्ग: वो आवाज़ जो पीढ़ियों के बीच पुल बनकर हमेशा ज़िंदा रहेगी

ज़ुबिन गर्ग वो आवाज़ थे जिसने पीढ़ियों के बीच की दूरी मिटा दी. पुरानी पीढ़ी के लिए वो यादों का संगीत थे, जबकि Gen-Z के लिए बागी, सच्चे और अनफ़िल्टर्ड आइकॉन. उनके गीत असम की आत्मा से लेकर पूरे देश तक पहुंचे - ‘Ya Ali’ जैसी धुनों ने उन्हें टाइमलेस बना दिया. उनके संगीत ने लोगों को जोड़ा, टूटे दिलों को सहारा दिया और पीढ़ियों को एक सुर में मिला दिया. ज़ुबिन सिर्फ कलाकार नहीं, हमेशा जीवित रहने वाली भावना हैं.

ज़ुबिन गर्ग: वो आवाज़ जो पीढ़ियों के बीच पुल बनकर हमेशा ज़िंदा रहेगी
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( Image Source:  ANI )
Dhrubajyoti Das
By: Dhrubajyoti Das

Updated on: 18 Nov 2025 6:00 AM IST

समय बदलता है. ट्रेंड बदलते हैं. पीढ़ियां बदलते-बदलते अक्सर एक-दूसरे से दूर निकल जाती हैं - संगीत में, पसंद में, जीवन की समझ में. पर इस तेज़ भागती दुनिया में एक ऐसी आवाज़ थी जो दोनों किनारों को जोड़ती रही… वो आवाज़ थी ज़ुबिन गर्ग की - एक ऐसी रूह जो समय के पार खड़ी रही, जिसने दौर बदले, पर खुद नहीं बदले.

उन लोगों के लिए, जिनकी जवानी मोबाइल से पहले की थी, ज़ुबिन सिर्फ एक गायक नहीं थे - वे यादों की धरोहर थे. जब ‘Mayabini Ratir Bukut’ की धुन हवा में घुलती थी, तो उसमें पुराने दिनों की सादगी का स्वाद होता था - लैंडलाइन फोन की घंटी, किताबों के पन्नों में छिपे प्रेमपत्र, और बेसुध दोपहरों में बजता ट्रांजिस्टर… उनकी आवाज़ सुनते ही वह दौर लौट आता था जब लोग 'सुनने' के लिए संगीत बजाते थे, न कि बैकग्राउंड भरने के लिए.

उनके गीतों ने असम की आत्मा को हर सुर में बांधा था. बड़े-बुज़ुर्ग उन्हें सुनकर अपनी अधूरी प्रेम कहानियां याद करते थे, वो गलियां जहां दोस्ती की नींव पड़ी थी, और वह पुराना दौर जिसमें सपनों को शब्द नहीं, पंख दिए जाते थे. ज़ुबिन उनके लिए सिर्फ आवाज़ नहीं थे… वह उनकी पूरी की पूरी जवानी थे.

लेकिन सच यही है कि असली कमाल उन्होंने नई पीढ़ी पर करके दिखाया. Gen-Z, जिसे दुनिया अक्सर 'अलग' कहती है - वो ज़ुबिन को अपना मानती थी. क्यों? क्योंकि ज़ुबिन किसी फ्रेम में फिट होने की कोशिश नहीं करते थे. वो जैसे थे - भावुक, बाग़ी, सच्चे, थोड़े अनगढ़, पर दिल से - वैसे ही मंच पर भी दिखते थे. उनकी आवाज़ में एक 'खरापन' था जो इस परफेक्ट-फिल्टर वाली डिजिटल दुनिया में दुर्लभ हो चुकी है.

वो ट्रेंड फॉलो नहीं करते थे, ट्रेंड बनाते थे. वो ‘स्टार’ नहीं बनना चाहते थे - इंसान बने रहना चाहते थे. उनकी यही बात उन्हें वायरल होने से पहले ही करिश्माई बना चुकी थी.

किसी गली में अचानक हुआ उनका छोटा-सा लाइव, या किसी बच्चे को गले लगाते हुए उनकी तस्वीरें - ये सब उन्हें बाकी कलाकारों से अलग एक ‘लिविंग लेजेंड’ बनाता था. 2006 में जब ‘Ya Ali’ देशभर में गूंजा, वह सिर्फ एक सुपरहिट गाना नहीं था - वह एक सांस्कृतिक लहर थी. महज़ एक गीत ने यह साबित कर दिया कि उनकी कला सीमाओं में बंधी नहीं है - ना भाषा में, ना भूगोल में, ना समय में.

और उस लहर के साथ एक जादुई दृश्य दिखा, मां-बाप और बच्चे एक ही गाना गुनगुना रहे थे. उनके गानों में ऑडियो कैसेट्स से लेकर यूट्यूब और Spotify तक का सफर तय कर लिया है. वह सिर्फ एक दशक के नहीं थे, बल्कि कई पीढ़ियों के कलाकार थे. उनकी आवाज़ सिर्फ सुनी नहीं जाती थी -

महसूस की जाती थी. उनके गीतों ने - टूटे दिलों को सहारा दिया, सपने देखने वालों को हिम्मत दी, और उन लोगों को भी जोड़ दिया, जिनके बीच कुछ भी एक जैसा नहीं था… सिवाय संगीत के.

ज़ुबिन गर्ग वो पुल थे, जिस पर चलते हुए दादा-पोता, पिता-पुत्र और मां-बेटी एक ही धुन में खो जाते थे. आज के समय में इससे बड़ी उपलब्धि किसी कलाकार की नहीं हो सकती.

भले ही उनका काम देशभर में फैला, पर दिल हमेशा असम में ही रहा. वे कभी अपनी मिट्टी से कटा हुआ महसूस नहीं करते थे. वो मंच पर खड़े होकर सिर्फ गायक नहीं लगते थे - वे असम की आत्मा का धड़कता हुआ टुकड़ा लगते थे. और यही ‘जुड़ाव’ उन्हें हमेशा ज़िंदा रखेगा - हर रात, हर उत्सव, हर याद में.

लोग कहते हैं कि एक कलाकार तब मरता है जब उसकी आवाज़ खो जाती है. पर ज़ुबिन जैसे लोग कभी नहीं मरते. वह हमेशा रहते हैं - कभी किसी कड़कती बारिश के मौसम में याद आ जाते हैं, कभी किसी पुराने दोस्त की शादी में, कभी यूं ही किसी अकेली शाम में. उनकी धुनें अब भी हमारे साथ चलती हैं. उनका रॉक, उनका सूफी, उनका दर्द, उनका पागलपन - सब कुछ.

ज़ुबिन गर्ग ने सिर्फ गाने नहीं दिए - उन्होंने पीढ़ियों को एक-दूसरे के करीब ला दिया. उन्होंने दिखाया कि अच्छा संगीत ‘टाइमलेस’ होता है. और टाइमलेस लोग कभी खोते नहीं, बस रूप बदलते हैं.

ज़ुबिन वो आवाज़ थे जो पीढ़ियों को जोड़ देती है, वो कहानी थे जो हर दिल में अलग ढंग से लिखी गई, वो भावना थे जिसे पिता ने बेटे को, और बेटे ने अपने बच्चों को आगे दिया. वो चले नहीं गए - वो बस ‘याद’ बनकर हमारे आस-पास तैरते रहते हैं. और जब भी कभी हम किसी पुराने सुर में खो जाते हैं,

एक हल्की-सी फुसफुसाहट हमें याद दिलाती है - “मैं यहां हूं… संगीत में, यादों में, तुम्हारी धड़कनों में.”

Courtesy: A-Mrit Sangeetsurya

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