सुरों में सुकून है, शोर नहीं...मोहब्बत है, मजबूरी नहीं...चेतावनी है, चापलूसी नहीं
ज़ुबिन गर्ग, असम के स्वर-सम्राट, सिर्फ़ एक गायक नहीं बल्कि एक भाव थे - सुकून, मोहब्बत और उम्मीद का नाम. 90 के दशक के ‘अनामिका’ से शुरू हुई उनकी संगीत यात्रा ने पूरे देश को जोड़ दिया. हर भाषा, हर मंच और हर दिल पर उन्होंने समान रूप से राज किया. उनकी सादगी, इंसानियत और सुरों की आत्मीयता ने उन्हें पीढ़ियों का ‘इमोशनल आइकॉन’ बना दिया. आज भी जुबिन दा की आवाज़ लोगों के दिलों में उसी ताज़गी और ताक़त के साथ धड़कती है.
कबीरा जब हम पैदा हुए
जग हंसे हम रोए.
ऐसी करनी कर चलो
हम हंसे जग रोए.
भक्त कबीर का सदियों पुरानी यह दोहा एहसास कराता है कि जीवन एक ही है. ज़िंदगी सिर्फ़ सांसें लेने का नाम नहीं, बल्कि हर सांस में कुछ अच्छा कर जाने का नाम है. अब आपको यह तय करना है कि हम सिर्फ़ अपने लिए जिएं या किसी और की मुस्कान की वजह बनें. जैसे असीम और अनंत जुबिन दा...जो अपनी धुनों से, अपने कर्मों से, हर दिल में उम्मीद और प्यार जगाते रहे.
पीढ़ियां कई थीं, पर पौ बारह सबकी करा दी. गैप था पर कनेक्शन सबसे फ़ेविकोल के जोड़ जैसा मजबूत था. भाषा चाहे जो भी हो भौकाल उनका हर जगह मचा. जाति चाहे किसी की कोई भी हो पर उनका जुनून सबके सर पर चढ़कर बोला. मेघालय में जन्मे थे पर मौज उन्होंने पूरे देश की करा दी. वाक़ई...जुबिन दा ताव हैं. भाव हैं और असम का स्वभाव हैं.
जब 90 के दशक की शुरुआत में जुबिन गर्ग का पहला एल्बम ‘अनामिका’ आया, तब बहुतों को अंदाज़ा नहीं था कि एक संगीत यात्रा की यह प्रस्तावना आगे चलकर इतिहास बन जाएगी. उस एल्बम ने साफ़ कर दिया था कि असम के इस कलाकार के अरमान अब आसमान की ऊंचाइयों को छूने वाले हैं. समृद्ध संस्कृति और चाय के बागानों के बीच पले-बढ़े इस गायक ने साबित कर दिया कि प्रतिभा को सीमाएं बांध नहीं सकतीं.
संगीत ही वह ताक़त है जो दिलों को जोड़ती है, ज़ुबानें नहीं देखती. कश्मीर से कन्याकुमारी तक सुरों का यह रिश्ता जुबिन के गीतों में बखूबी झलकता है. उनके सुरों में सुकून है, शोर नहीं. मोहब्बत है, मजबूरी नहीं. चेतावनी है, चापलूसी नहीं. उनके गीत सुनने वाला व्यक्ति बस सुनता नहीं, महसूस भी करता है और उन्हें जीता है. शायद यही वजह है कि जुबिन गर्ग केवल असमिया संगीत तक सीमित नहीं रहे. मायानगरी के परदे पर भी अपनी आवाज़ की पहचान दर्ज करा देश के दिलों पर वो राज करने लगे.
स्टेज पर जब जुबिन दा आते हैं, तो जैसे तूफ़ान उतरता है. पर इसी तूफ़ान के पीछे एक शांत, सहज और बेहद सरल इंसान छिपा है. जीवन से उम्मीद खो चुके लोगों के लिए वे अक्सर एक मसीहा की तरह सामने आए. उनकी सादगी, फक्कड़मिजाजी और बहुत कुछ होने के बावजूद कुछ न होने का भाव, यही उन्हें औरों से अलग बनाता है. उनकी नेकनियती के किस्से भी कुछ कम नहीं. शायद जुबिन की थ्योरी इसी पर टिकी थी कि यदि तुम्हारा संगीत लोगों के आंसू नहीं पोंछ सकता, तो फिर उसका शोर किस काम का?
हर फन में माहिर जुबिन दा, हर भाषा से ऐसे लिपट जाते थे, जैसे एक बच्चा अपनी मां से. दिलों पर राज करने वाली उनकी प्रतिभा उन्हें हर मंच पर इक्कीस बनाती है. जुबिन गर्ग सिर्फ़ एक गायक नहीं, एक भाव हैं. उनका संगीत हमें यह याद दिलाता है कि सच्ची कला न भाषा जानती है और ना ही बंधन. ऊपरवाले ने उन्हें वो रहमत दी थी कि उनको सुनने वाले उनके इशारों को बखूबी समझते थे. जिसे बाकायदा कई संगीत कार्यक्रमों में देखा और समझा गया.
सैकड़ों साल पहले महान दार्शनिक बेंजामिन फ्रैंकलिन सच ही कह गए थे कि- अगर चाहते हो कि तुम्हें तुम्हारे मरते और नष्ट होते ही भुला न दिया जाए तो या तो पढ़ने लायक़ कुछ लिख डालो या कुछ ऐसा कर डालो जिस पर कुछ लिखा जाए. जैसे आज सुरों के बेताज बादशाह जुबिन दा पर लिखा जा रहा है.
Courtesy : A-Mrit Sangeetsurya





