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टीम इंडिया का वो रिकॉर्ड, जो 27 सालों तक कोई तोड़ नहीं पाया, वेस्‍टइंडीज को उसके ही घर में चटाई थी धूल

50 साल पहले भारत ने वेस्ट इंडीज़ की सरज़मी पर उसके ख़ौफ़नाक गेंदबाज़ों को धूल चटा कर टेस्ट मैचों में चेज़ करने का ऐसा सबसे बड़ा रिकॉर्ड बनाया जो अगले 27 वर्षों तक कायम रहा. यह जीत वेस्ट इंडीज़ के दबदबे को चुनौती देने वाली थी.

टीम इंडिया का वो रिकॉर्ड, जो 27 सालों तक कोई तोड़ नहीं पाया, वेस्‍टइंडीज को उसके ही घर में चटाई थी धूल
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अभिजीत श्रीवास्तव
By: अभिजीत श्रीवास्तव

Updated on: 20 Jun 2025 3:18 PM IST

ये कहानी आज से क़रीब 50 साल पहले 1976 की है. तब 1975 में खेला गया पहला वनडे वर्ल्ड कप जीत चुकी वेस्ट इंडीज़ की टीम ने इंग्लैंड को उसी के देश में 3-0 से टेस्ट सिरीज़ में हराकर क्रिकेट के इस फ़ॉर्मेट में भी अपने वर्चस्व की शुरुआत की थी. ये वही साल था जब वेस्ट इंडीज़ क्रिकेट टीम का पराक्रम सर चढ़ कर बोलना शुरू किया था, जो अगले 20 सालों तक बदस्तूर क़ायम रहा. लेकिन इंग्लैंड के साथ उस सिरीज़ से पहले टीम इंडिया ने क्रिकेट के धुरंधरों से सजी वेस्ट इंडीज़ टीम की नाक में दम कर रखा था.

जो वेस्ट इंडीज़ की टीम भारत के ख़िलाफ़ लगातार 24 टेस्ट मैचों में अपराजित रही, वो 1971 में अपनी ही सरज़मीं पर टेस्ट सिरीज़ 0-1 से गंवा चुकी थी. तो भारत में खेली गई 1974-75 की टेस्ट सिरीज़ में भी उसे ड्रॉ से ही संतोष करना पड़ा, जहां भारतीय टीम ने उसे दो बार हराया था.

बेदी की कप्तानी में भारत का दमदार प्रदर्शन

चार टेस्ट मैचों की सिरीज़ के लिए 1976 के मार्च, अप्रैल महीने में कैरिबियाई तटों पर पहुंचने से पहले टीम इंडिया ने वेस्ट इंडीज़ को 34 टेस्ट मैचों में केवल तीन बार हराया था. कप्तान बिशन सिंह बेदी की अगुवाई में टीम इंडिया का सामना डेविल होलफ़ोर्ड, सर एंडी रॉबर्ट्स और माइकल होल्डिंग जैसे ख़ौफ़नाक गेंदबाज़ों से हुआ. इन गेंदबाज़ों के सामने टीम इंडिया बेबस नज़र आई और पहला टेस्ट एक पारी और 97 रनों के अंतर से हार गई.

लेकिन दूसरे टेस्ट की कहानी बिल्कुल अलग थी. पहले दिन का खेल बारिश से बर्बाद हो गया. दूसरे दिन कप्तान बेदी की अगुवाई में गेंदबाज़ों ने वेस्ट इंडीज़ को केवल 241 रन पर ही रोक दिया. जब बल्लेबाज़ों की बारी आई तो सुनील गावस्कर (156 रन) और ब्रजेश पटेल ने शतक (नाबाद 115 रन) जमा दिए. भारत ने पहली पारी केवल पांच विकेट पर 402 रन बनाकर घोषित कर दी और 161 रनों की बढ़त हासिल कर ली. वेस्ट इंडीज़ ने दूसरी पारी में भी 215 रन बनने तक आठ खिलाड़ियों को गंवा दिया. मैच ड्रॉ छूटा लेकिन टीम इंडिया ने संदेश दे दिया था कि वो अगले मैच के लिए पूरी तरह तैयार हैं.

...जब क्वींस पार्क ओवल में फिफ्टी से चूके गावस्‍कर

तीसरा टेस्ट जॉर्ज टाउन में होना था लेकिन भारी बारिश की वजह से मैच को क्वींस पार्क ओवल में शिफ़्ट कर दिया गया. इस ऐतिहासिक मैच की शुरुआत टॉस जीत कर वेस्ट इंडीज़ की बल्लेबाज़ी और लगातार तीसरे टेस्ट में विवियन रिचर्ड्स के शतक (177 रन) के साथ हुई. वेस्ट इंडीज़ की टीम दूसरे दिन लंच के पहले ही 359 रन बना ऑल आउट हो गई. माइकल होल्डिंग की गेंदबाज़ी के आगे टीम इंडिया भी केवल 228 रन बनाकर ऑल आउट हो गई.

अपनी किताब सनी डेज़ में सुनील गावस्कर लिखते हैं, “पोर्ट ऑफ़ स्पेन का क्वींस पार्क ओवल मैदान पूरी दुनिया में मेरा सबसे पसंदीदा ग्राउंड है. माइकल होल्डिंग हमेशा लंच के बाद अपनी गेंदबाज़ी का आनंद लेते दिखते हैं और उस दिन तो वो आग उगलती गेंदें डाल रहे थे, मैं केवल 26 रन बनाकर आउट हो गया. ये एकमात्र ऐसा मौक़ा था जब मैं इस मैदान पर फ़िफ़्टी बनाने से चूक गया था."

जब मिला 403 रनों का विशाल लक्ष्य

पहली पारी में 131 रनों की बढ़त के साथ वेस्ट इंडीज़ ने चौथे दिन छह विकेट पर 271 रन बनाकर अपनी दूसरी पारी घोषित कर दी और भारत के सामने 403 रनों का लक्ष्य रखा. गावस्कर अपनी किताब सनी डेज़ में लिखते हैं, "चौथे दिन लंच के बाद जब वेस्ट इंडीज़ ने अपनी पारी घोषित की तब कालीचरण ने शतक बना लिया था और अभी अभी होल्डिंग ने लगातार दो गेंदों पर छक्के जड़े थे. हमें मैच की चौथी पारी में 403 रन बनाने थे, वो भी पांचवें दिन."

इसके ठीक बाद गावस्कर ने ये भी लिखा, "मुझे यकीन था कि हम मैच बचा सकते हैं क्योंकि विकेट अब भी अच्छी थी लेकिन हम वो मैच जीत जाएंगे, ऐसा मेरे दिमाग़ बिल्कुल नहीं आया था. पहले विकेट के लिए अंशुमन गायकवाड़ और मैंने 69 रन जोड़े. मैं शुरू से ही बल्ले के बीचों बीच से शॉट लगा रहा था. मोहिंदर अमरनाथ भी पूरे आत्मविश्वास के साथ डटे हुए थे. मेरा आत्मविश्वास इस हद तक था कि चौथे दिन का खेल ख़त्म होने तक मैंने अपनी 86 रनों की नाबाद पारी में 12 चौके जमाए थे. उस दिन हमने केवल एक विकेट के नुकसान पर 134 रन बना लिए थे." "जब हम दिन के खेल के बाद मैदान से बाहर जा रहे थे तब मैच को देखने आए त्रिनिदाद के लोग मुझसे कह रहे थे कि अगले दिन वो मेरा दोहरा शतक देखने आएंगे." लेकिन अगले दिन गावस्कर गेंद को हिट करने में जूझते नज़र आए. शतक तक पहुंचने में उन्हें एक घंटे का वक़्त लगा. शतक बनाने के तुरंत बाद वो आउट हो गए.

जब मिली ऐतिहासिक जीत

गावस्कर के आउट होने के बाद 226 रन जीतने के लिए और चाहिए थे. यहां से गुंडप्पा विश्वनाथ (112 रन) एक छोर से तो दूसरी ओर मोहिंदर अमरनाथ (85 रन) जम गए. वेस्ट इंडीज़ के गेंदबाज़ उन्हें अपनी गेंदों से आउट करने में नाकाम रहे. आख़िर दोनों रन आउट हुए लेकिन उससे पहले टीम को जीत के मुहाने तक ले गए. जब अमरनाथ आउट हुए तब जीत के लिए केवल 11 रन चाहिए थे. विश्वनाथ के आउट होने के बाद पिच पर आए ब्रजेश पटेल ने कीमती 49 रन बनाए और जीत का चौका उनके ही बल्ले से आया. भारत ने छह विकेट से जीत हासिल की और एक ऐसा रिकॉर्ड बना डाला जो अगले 27 वर्षों तक कायम रहा. भारत ने इस जीत में 406 रन बनाए थे. ये स्कोर तब टेस्ट क्रिकेट में सबसे बड़े लक्ष्य को सफलतापूर्वक चेज़ करने का रिकॉर्ड था, जो अगले 27 वर्षों तक कायम रहा. तब पूरे देश में लगी हुई इमरजेंसी के बीच मैच की कमेंट्री रेडियो पर सुन कर लाखों भारतवासी खुशी और आनंद से भर गए थे.

क्यों न ‘क्वींस पार्क ओवल’ का नाम 'गावस्कर ओवल' किया जाए!

गावस्कर ने अपनी किताब सनी डेज़ में लिखा, "पोर्ट ऑफ़ स्पेन का क्वींस पार्क ओवल मेरे लिए भरपूर सफलता वाला ग्राउंड साबित हुआ है." वेस्ट इंडीज़ में गावस्कर ने सात शतकों समेत कुल 1404 रन बनाए हैं. इनमें आधे से अधिक 793 रन उन्होंने इसी क्वींस पार्क ओवल पर जोड़े हैं, जहां उनके चार शतक भी दर्ज हैं. सनी डेज़ में गावस्कर ने लिखा, “क्वींस पार्क पर इस आख़िरी पारी के बाद अख़बारों ने आम लोगों के कई पत्र छापे, जिसमें इस ग्राउंड पर मेरे प्रदर्शन को देखते हुए यह सुझाव दिया गया था कि क्यों न ‘क्वींस पार्क ओवल’ का नाम बदल कर 'गावस्कर ओवल' कर दिया जाए."

क्रिकेट न्‍यूजस्टेट मिरर स्पेशल
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