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बंगाल SIR ने सबको चौंकाया! राजधानी में ही कटे सबसे ज्यादा वोटर, बांग्लादेश से सटे जिले कैसे बदलेंगे सियासी समीकरण?

पश्चिम बंगाल में SIR फेज-2 के बाद ड्राफ्ट मतदाता सूची ने बड़ा राजनीतिक संकेत दिया है. राज्यभर में 58 लाख वोटरों के नाम हटाए गए, लेकिन सबसे ज्यादा असर कोलकाता में दिखा, जहां करीब 25% नाम लिस्ट से बाहर हो गए. इसके साथ ही 1.9 करोड़ मतदाताओं को नोटिस जारी किए गए हैं. यह प्रक्रिया सिर्फ प्रशासनिक सफाई नहीं, बल्कि आगामी चुनावों के लिए बड़े चुनावी उलटफेर की भूमिका बनती दिख रही है.

बंगाल SIR ने सबको चौंकाया! राजधानी में ही कटे सबसे ज्यादा वोटर, बांग्लादेश से सटे जिले कैसे बदलेंगे सियासी समीकरण?
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( Image Source:  ANI )
नवनीत कुमार
Edited By: नवनीत कुमार

Updated on: 17 Dec 2025 8:03 AM IST

पश्चिम बंगाल में जैसे ही विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) की प्रक्रिया शुरू हुई, सियासी गलियारों में एक तय धारणा बन गई थी कि कैंची सबसे ज्यादा सीमावर्ती और मुस्लिम बहुल जिलों में चलेगी. घुसपैठ, फर्जी वोटर और डुप्लीकेट नामों का शोर उन्हीं इलाकों से जुड़ा माना जा रहा था.

लेकिन ड्राफ्ट मतदाता सूची सामने आते ही यह धारणा पूरी तरह उलट गई. आंकड़ों ने बता दिया कि असली झटका सीमाओं पर नहीं, बल्कि बंगाल के दिल कोलकाता में लगा है. SIR के दूसरे चरण के नतीजों ने न सिर्फ वोटर लिस्ट की सच्चाई उजागर की, बल्कि आने वाले चुनावी समीकरणों को भी हिला दिया है.

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58 लाख नाम बाहर, 1.9 करोड़ को नोटिस

SIR फेज-2 के तहत जारी ड्राफ्ट वोटर लिस्ट में पश्चिम बंगाल के कुल मतदाताओं की संख्या घटकर 7.1 करोड़ रह गई है. पहले दर्ज 7.6 करोड़ मतदाताओं में से करीब 58 लाख नाम हटाए गए हैं. ये नाम मृत, स्थानांतरित, अनुपस्थित या एक से अधिक जगह पंजीकृत पाए गए. इसके अलावा 1.65 करोड़ फॉर्म में विसंगतियां मिलने पर करीब 1.9 करोड़ मतदाताओं को नोटिस भेजे जा रहे हैं.

विसंगतियों की हैरान करने वाली तस्वीर

चुनाव अधिकारियों के मुताबिक कई मामलों में एक ही अभिभावक से छह से ज्यादा संतान दर्ज थीं, पिता के नाम गलत थे या उम्र का अंतर असामान्य था. 45 साल से अधिक उम्र के ऐसे लोग भी मिले जिनका पहले कभी नामांकन नहीं हुआ था. SIR के दूसरे चरण में दस्तावेज अनिवार्य न होने के कारण अधूरे और गलत विवरण बड़ी संख्या में सामने आए.

कोलकाता बना ‘ग्राउंड जीरो’

पूरे राज्य में औसतन 7.6% नाम कटे, लेकिन कोलकाता में हालात बिल्कुल अलग रहे. कोलकाता उत्तर में 25.9% और कोलकाता दक्षिण में 23.8% वोटरों के नाम ड्राफ्ट लिस्ट से हट गए. यानी राजधानी में हर चार में से एक वोटर अब सूची में नहीं है. यही आंकड़ा इस पूरे अभ्यास का सबसे चौंकाने वाला पहलू बन गया है.

कहां गए ये लाखों वोटर?

डेटा बताता है कि सिर्फ कोलकाता नॉर्थ में 1.34 लाख लोग अपने पते पर अनुपस्थित पाए गए. करीब 1.26 लाख लोग ऐसे थे जो स्थायी रूप से कहीं और बस चुके थे, लेकिन वोटर लिस्ट में कोलकाता के निवासी बने हुए थे. बड़ी संख्या में ऐसे नाम भी मिले, जो अब इस दुनिया में नहीं थे, लेकिन कागजों में वोटर बने हुए थे.

सीमावर्ती जिलों की अलग कहानी

दिलचस्प बात यह रही कि बांग्लादेश सीमा से सटे जिलों मालदा, मुर्शिदाबाद और उत्तर दिनाजपुर में नाम कटने की दर राज्य औसत से कम रही. हालांकि इन जिलों में ‘पिता के नाम में असंगति’ जैसे मामलों की संख्या 12 से 16 प्रतिशत के बीच दर्ज की गई. यानी यहां समस्या फर्जी नामों से ज्यादा रिकॉर्ड की गड़बड़ी से जुड़ी दिखी.

कैसे बदलेगा सियासी समीकरण?

बांग्लादेश से सटे जिलों मालदा, मुर्शिदाबाद और उत्तर दिनाजपुर में राजनीतिक रूप से इसका असर यह होगा कि पार्टियां अब “घुसपैठ” के नैरेटिव से ज्यादा मतदाता संतुष्टि, दस्तावेज सुधार और दावे-आपत्तियों की प्रक्रिया पर फोकस करेंगी, क्योंकि इन जिलों में मामूली बदलाव भी सीटों के नतीजों को निर्णायक रूप से प्रभावित कर सकता है.

राज्य बनाम बाकी भारत: तुलना भी अहम

SIR फेज-2 के तहत सिर्फ बंगाल ही नहीं, बल्कि अन्य राज्यों में भी ड्राफ्ट लिस्ट जारी हुई. राजस्थान में 7.6%, गोवा में 8.45%, पुडुचेरी में 10.1% और लक्षद्वीप में 2.47% मतदाताओं के नाम हटाए गए. इससे साफ है कि वोटर लिस्ट की सफाई एक राष्ट्रीय स्तर की प्रक्रिया बन चुकी है.

सफाई या चुनावी उलटफेर?

अब बड़ा सवाल यह है कि यह सिर्फ प्रशासनिक सफाई है या एक बड़ा चुनावी गेमचेंजर. जब कोलकाता जैसे शहर में 25% वोटर लिस्ट से बाहर हो जाएं, तो किसी भी विधानसभा सीट का गणित पलट सकता है. ड्राफ्ट लिस्ट ने संकेत दे दिया है कि आने वाले चुनाव पुराने आंकड़ों पर नहीं, बल्कि नई और बदली हुई वोटर डेमोग्राफी पर लड़े जाएंगे. यही वजह है कि SIR के बाद बंगाल की सियासत एक बिल्कुल नई पिच पर पहुंच चुकी है.

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