तेंदुलकर ने सुनाया देबाशीष मोहंती की जादुई घूमती गेंदों पर सईद अनवर के लगातार आउट होने का किस्सा, पढ़ें उनकी अनकही कहानी
सईद अनवर जैसे दिग्गज बल्लेबाज़ भी देबाशीष मोहंती की गेंदबाज़ी से परेशान थे. उन्होंने सचिन तेंदुलकर से खुद कहा था, "अगर छोड़ूं तो अंदर आती है, खेलूं तो बाहर निकलती है." भारत के ख़िलाफ़ रिकॉर्डधारी अनवर ने मोहंती के आगे बेबस होने की बात कबूली. इस दिलचस्प किस्से को सचिन ने एक कार्यक्रम में साझा किया था, जो आज भी क्रिकेट प्रेमियों को हैरान करता है.

“वो भाग के आता है मगर पता ही नहीं चलता है कि क्या गेंद डालता है. मैं छोड़ता हूं तो गेंद अंदर आती है, अगर मैं खेलता हूं तो गेंद बाहर की ओर जाती है और मैं आउट हो जाता हूं.” ये शब्द सईद अनवर के हैं, जो उन्होंने तब के भारतीय कप्तान सचिन तेंदुलकर से देबाशीष मोहंती के बारे में कहा था. सईद अनवर के नाम तब वनडे क्रिकेट की सबसे बड़े व्यक्तिगत पारी 194 रनों का रिकॉर्ड था, जो उन्होंने भारत के ख़िलाफ़ ही बनाया था. भारत के ख़िलाफ़ सईद अनवर का रिकॉर्ड बहुत शानदार (4 शतक, 2002 रन) था और भारतीय पिचों पर खेले गए कई मैचों में उन्होंने भारतीय गेंदबाज़ों की जम कर धुनाई की थी.
पर सईद अनवर को देबाशीष मोहंती की गेंदों से डर लगता था. यह ख़ुद उन्होंने सचिन तेंदुलकर को बताया था. सईद अनवर ने 247 वनडे में 8824 रन बनाए और वो पाकिस्तान के लिए सबसे अधिक 20 शतक जमाने वाले बल्लेबाज़ हैं. पर उसी सईद अनवर के लिए देबाशीष मोहंती की गेंदों को खेलना बहुत मुश्किल हो गया था. सईद अनवर ने सचिन से क्या कहा था, ख़ुद इसकी कहानी एक कार्यक्रम के दौरान तेंदुलकर ने सुनाई थी.
सईद अनवर को मोहंती से ख़ौफ़ की कहानी, सचिन की जुबानी
सचिन बोले, “हम सहारा कप खेल रहे थे. तब श्रीनाथ, वेंकटेश और अनिल कुंबले चोटिल थे. भज्जी तब डेब्यू नहीं किए थे. तब हमारी बॉलिंग अटैक बिल्कुल नई थी. ऐबे कुरुविला वनडे में केवल पांच-छह मैच खेले थे देबाशीष मोहंती पहली बार खेल रहे थे. मैंने तय किया कि देबाशीष गेंदबाज़ी की शुरुआत करेंगे. उनकी गेंद थोड़ी स्विंग होती थी. देबू ने शुरुआती पहले कुछ मैचों में सईद अनवर को आउट किया था. चौथे मैच के बाद एक कार्यक्रम के दौरान सईद अनवर ने मुझसे कहा कि ‘एक बात बता यार ये मोहंती करता क्या है.’ मैंने पूछा क्यों क्या हुआ. तब अनवर ने कहा, ‘वो ऐसा भाग के आता है और पता नहीं क्या बॉल डालता है. मैं छोड़ूं तो बॉल अंदर आती है, खेलूं तो वो बॉल बाहर जाती है. मैं क्या करूं पता नहीं चल रहा है.’ पांचवें मैच में मैं स्लिप में था और सईद अनवर शुरू-शुरू में आउट नहीं हुए. तो मैंने कहा कि कल ही बात कर रहा था और आज यह तो पिच पर टिक गया. सईद अनवर जिस लेवल पर बैटिंग करते थे तो डर लगता था कि अकेले मैच ले ना जाएं हमारे हाथों से. तो मैं स्लिप से हट कर शॉर्ट स्क्वायर लेग पर खड़ा हो गया. अंपायर के बिल्कुल आगे, कैच करने के पोजिशन पर. अगली गेंद मोहंती ने उसके पैर पर डाली और वो अनवर के बैट से लगकर सीधे मेरे हाथों में आ गई. मैंने अनवर की ओर देखा और मन ही मन सोचा कि जब कोई बॉलर पीछे लगता है तो बल्लेबाज़ बच नहीं सकता.”
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आपको बता दें कि वनडे में मोहंती ने सचिन तेंदुलकर की कप्तानी में ही डेब्यू किया था और उनका पहला शिकार पाकिस्तान के सईद अनवर ही थे. उन्होंने अनवर को बोल्ड किया था. इतना ही नहीं मोहंती ने चार बार शाहिद आफ़रीदी का विकेट भी चटकाया था.
क्या है मोहंती के क्रिकेट करियर की कहानी?
भारत में एक छोटे से राज्य (ओडिशा) के क्रिकेटर का राष्ट्रीय टीम में जगह बनाना कभी भी आसान नहीं होता है. पर देबाशीष मोहंती ने अपनी भरपूर योग्यता के बल पर चयनकर्ताओं को ख़ुद को टीम इंडिया में चुनने पर मजबूर किया. पहले मोहंती की गेंदबाज़ी ने भारत ‘ए’ में उनका चयन करवाया. जहां 1983 वर्ल्ड कप टीम के सदस्य कृष्णमाचारी श्रीकांत कोच थे, जो बाद में राष्ट्रीय चयनकर्ता भी बने.
श्रीकांत ने मोहंती की गेंदबाज़ी को बहुत बारीक़ी से देखा और उन्हें यह समझ आ गया कि उनकी उपयोगिता राष्ट्रीय टीम में है. जल्द ही श्रीकांत ने मोहंती को राष्ट्रीय टीम में शामिल करने की वकालत की. सीम की मूवमेंट और अपनी गेंद को दोनों तरफ़ स्विंग कराने की योग्यता वाले देबाशीष मोहंती को चयनकर्ताओं ने मौक़ा तो दे दिया पर 90 के दशक के अंत में भारतीय टीम की गेंदबाज़ी आक्रमण जवागल श्रीनाथ (1991-2002), वेंकटेश प्रसाद (1996-2001), अजित अगरकर (1998-2006) जैसे गेंदबाज़ों के हाथों में थी.
तब ऐसे गेंदबाज़ों के विकल्पों के बीच चयनकर्ताओं को यह नहीं सूझा कि देबाशीष मोहंती को टीम में कैसे जगह दें. सीम और स्विंग के कंडीशन वाली जगहों पर उन्हें मौक़ा दिया गया, जैसे अंतिम समय में वर्ल्ड कप की टीम में उनके लिए जगह बनाई गई. जो निर्णय सभी साबित भी हुआ. लेकिन टीम में उनकी नियमित जगह नहीं बन सकी.
केवल दो टेस्ट मैचों में मिला मौक़ा
टेस्ट क्रिकेट में देबाशीष मोहंती को केवल दो मैच में मौक़ा मिला. 1997 में मोहंती को अगस्त के महीने में श्रीलंका के ख़िलाफ़ डेब्यू करने का मौक़ा दिया गया. सचिन तेंदुलकर की कप्तानी में खेले गए उस मैच में मोहंती ने श्रीलंका के टॉप ऑर्डर के बल्लेबाज़ों सनथ जयसूर्या, रोशन महानामा, अरविंद डिसिल्वा समेत चार विकेट चटकाए. मोहंती ने उस पारी में वेंकटेश प्रसाद, एबे कुरुविला, अनिल कुंबले से भी अधिक बल्लेबाज़ों को आउट किया. पर वो मैच ड्रॉ रहा. उसके बाद उन्हें केवल एक बार और श्रीलंका के ख़िलाफ़ ही मोहाली टेस्ट में उसी साल आजमाया गया पर मोहंती ने अपनी गेंदबाज़ी से चयनकर्ताओं को बिल्कुल भी प्रभावित नहीं किया और वो उनके करियर का आख़िरी टेस्ट मैच साबित हुआ.
1999 वर्ल्ड कप में मोहंती का प्रदर्शन
हालांकि टेस्ट टीम से बाहर किए गए देबाशीष मोहंती वनडे में टीम इंडिया का हिस्सा बने रहे. उनका प्रदर्शन ऊपर नीचे हो रहा था लिहाजा जब 1999 के वर्ल्ड कप के संभावितों के नाम का एलान किया गया तो उससे देबाशीष मोहंती नदारद थे. पर चयनकर्ताओं ने अंतिम समय में उनका नाम टीम में शामिल किया और मोहंती ने अपने प्रदर्शन से उनके इस फ़ैसले को एकदम सही साबित भी किया.
भारत की टीम उस साल खेले गए वर्ल्ड कप के सेमीफ़ाइनल में नहीं पहुंच सकी थी. टीम इंडिया ने कुल आठ मैच खेले पर मोहंती को केवल छह मैच खेलने का मौक़ा मिला. पर मोहंती कुल 10 विकेट चटकाते हुए जवागल श्रीनाथ (8 मैच में 12 विकेट) के ठीक बाद सर्वाधिक विकेट लेने वाले भारतीय गेंदबाज़ों की सूची में दूसरे पायदान पर रहे. विकेटों की संख्या में वेंकटेश प्रसाद (7 मैच में 9 विकेट), अनिल कुंबले (7 मैच में 8 विकेट), अजित अगरकर (3 मैच में तीन विकेट) उनसे पीछे छूट गए.
वनडे में पहली गेंद पर विकेट लेने का कारनामा
वर्ल्ड कप के अच्छे प्रदर्शन के कुछ ही महीनों बाद देबाशीष मोहंती भारत, वेस्ट इंडीज़ और ज़िम्बाब्वे के बीच खेले गए त्रिकोणीय वनडे सिरीज़ सिंगापुर चैलेंज टूर्नामेंट में सबसे अधिक विकेट लेने वाले गेंदबाज़ बने. उसी टूर्नामेंट के एक मैच में मोहंती ने वेस्ट इंडीज़ के ओपनर रिडली जैकब्स को अपनी पहली ही गेंद पर आउट करने का कारनामा किया. देबाशीष मोहंती का यह रिकॉर्ड ताउम्र उनके नाम पर ही अंकित हो गया है. दरअसल इस विकेट के साथ ही मोहंती किसी वनडे मैच की पहली ही गेंद पर विकेट लेने वाले पहले भारतीय गेंदबाज़ बन गए. हालांकि उनके बाद मैच की पहली ही गेंद पर विकेट लेने का कारनामा ज़हीर ख़ान चार बार कर चुके हैं तो मोहम्मद सिराज भी इस क्लब में शामिल हो चुके हैं.
चयनकर्ताओं का विश्वास नहीं हासिल कर सके
इस प्रदर्शन के बावजूद देबाशीष मोहंती चयनकर्ताओं का विश्वास पूरी तरह हासिल नहीं कर सके और वो लगातार टीम के अंदर-बाहर होते रहे. साल 2000 की शुरुआत में उन्हें ऑस्ट्रेलिया में त्रिकोणीय सिरीज़ कार्ल्टन ऐंड यूनाइटेड वनडे टूर्नामेंट के लिए टीम में शामिल किया गया. टीम इंडिया ने कुल आठ मैच खेले पर मोहंती को केवल तीन मैच खेलने का मौक़ा मिला और उन्होंने सईद अनवर समेत केवल चार बल्लेबाज़ों को आउट किया. इसके बाद वो क़रीब डेढ़ साल तक राष्ट्रीय टीम से बाहर रहे. इस दौरान मैच फ़िक्सिंग के आरोपों के साये में भारतीय टीम भी बहुत बड़े बदलाव के दौर से गुज़र रही थी. सचिन तेंदुलकर कप्तानी छोड़ चुके थे और सौरव गांगुली ने भारतीय टीम की बागडोर संभाली थी.
देबाशीष मोहंती की डेढ़ साल बाद फ़िर जून-जुलाई 2001 में वेस्ट इंडीज़, ज़िम्बाब्वे के साथ त्रिकोणीय सिरीज़ के लिए टीम में वापसी हुई. उस सिरीज में भारत ने फ़ाइनल समेत पांच मैच खेले, पर मोहंती को केवल तीन मैच में ही मौक़ा दिया गया और उन्होंने चार विकेट लिए. जुलाई के महीने में खेले गए इस टूर्नामेंट के फ़ाइनल में मोहंती ने अपने पांच ओवरों में आठ से अधिक की औसत से 43 खर्चते हुए कोई विकेट नहीं चटकाया. भारत फ़ाइनल हार गया. फ़िर इसी महीने श्रीलंका में भारत, न्यूज़ीलैंड और श्रीलंका के बीच कोका-कोला कप त्रिकोणीय वनडे सिरीज़ खेली गई. 22 जुलाई को मोहंती को इस टूर्नामेंट में एक मात्र मैच खेलने का मौक़ा दिया गया, उन्होंने कोई विकेट नहीं लिया और यह उनके अंतरराष्ट्रीय करियर का अंतिम मैच साबित हुआ.