कमबैक गोल्ड के बाद मीराबाई चानू के सामने क्या है चुनौती, कहां जीतना है उनका सबसे बड़ा लक्ष्य?
मीराबाई चानू ने कॉमनवेल्थ चैंपियनशिप 2025 में 48 किलोग्राम वेट कैटेगरी में गोल्ड जीतकर शानदार कमबैक किया. उन्होंने कुल 193 किलो वजन उठाया, जिसमें 84 किलो स्नैच और 109 किलो क्लीन एंड जर्क शामिल हैं. मीराबाई अब 48 किलोग्राम वर्ग में खेल रही हैं, जहां वजन नियंत्रण चुनौतीपूर्ण है. उनका अगला बड़ा लक्ष्य एशियन गेम्स में पदक जीतना है, जो उनके करियर में अभी तक नहीं आया. इस जीत ने उनका आत्मविश्वास बढ़ाया और उन्हें आगामी विश्व चैंपियनशिप और एशियन गेम्स के लिए तैयार किया.
ओलंपिक मेडल जीत चुकीं मीराबाई चानू ने सोमवार को कॉमनवेल्थ चैंपियनशिप में 48 किलोग्राम वेट कैटेगरी में गोल्ड मेडल जीतकर एक बार फ़िर अपनी बादशाहत कायम की है. मीराबाई ने कॉमनवेल्थ चैंपियनशिप में कुल 193 किलो वजन उठाया. क्लीन ऐंड जर्क में 109 किलो का वजन उठाया. तो स्नैच में तीन प्रयासों में से एक सफल रहा और उन्होंने 84 किलो का भार उठाया. वैसे मीराबाई ने क्लीन ऐंड जर्क के शुरुआती दो प्रयासों में 105 और 113 किलोग्राम का वजन उठाया था पर अंतिम प्रयास में उन्होंने 109 किलो तो स्नैच में 84 किलो समेत कुल 193 किलो का भार उठा कर गोल्ड मेडल अपने नाम किया. मीराबाई सोमवार को क़रीब एक साल बाद खेल के मैदान पर दिखीं. पिछली बार उन्हें पेरिस ओलंपिक में देखा गया था, जहां वो चौथे पायदान पर रहते हुए पदक से महरुम रह गई थीं.
मीराबाई चानू ने भारत को वेटलिफ़्टिंग में 2020 के टोक्यो ओलंपिक में रजत पदक दिलाया था. पेरिस ओलंपिक 2024 में वो भारत की ओर से अकेली ऐसी महिला थीं जिसने वेटलिफ़्टिंग कैटेगरी में क्वालिफ़ाई किया था. उन्होंने आईडब्ल्यूएफ़ वर्ल्ड कप 2024 में तीसरे स्थान पर रहते हुए ओलंपिक में अपनी जगह बनाई थी.
2018 में मेजर ध्यानचंद खेल रत्न पुरस्कार से सम्मानित की जाने वाली मीराबाई चानू ने अपने करियर की शुरुआत में कई बाधाओं का सामना किया लेकिन हर बार वो अपने दृढ़ संकल्प और कड़ी मेहनत की बदौलत लौटीं और विभिन्न प्रतियोगिताओं में रिकॉर्ड तोड़ प्रदर्शन किए. यही कारण है कि आज मीराबाई चानू भारत की सबसे सफल भारोत्तोलकों में से एक हैं. और जब भी उनका नाम सामने आता है देशवासियों को उनसे पदक की उम्मीद बलवती हो उठती है. सिर्फ़ चार फ़ुट 11 इंच की मीराबाई के लिए पुराने रिकॉर्ड तोड़ना और नए रिकॉर्ड कायम करना एक आदत सी है.
बचपन से अब तक का सफ़र
बचपन में जलावन की लड़की चुनने और उसका गट्ठर उठाने से लेकर वेटलिफ़्टिंग के अंतरराष्ट्रीय पोडियम पर चढ़ कर मेडल पहनने वालीं साईखोम मीराबाई चानू का सफ़र बहुत शानदार रहा है. अपने लंबे संघर्ष और लगन से उन्होंने भारत के पूर्वोत्तर राज्य को ओलंपिक के पोडियम पर ला खड़ा किया है. मीराबाई चानू का जन्म 8 अगस्त 1994 को पूर्वोत्तर राज्य मणिपुर के एक छोटे से गांव में हुआ था. उनका गांव राज्य की राजधानी इम्फ़ाल से क़रीब 200 किलोमीटर दूर है. जब वो छोटी थीं तब कुंजारानी देवी मणिपुर की वेटलिफ़्टिंग स्टार थीं और एथेंस ओलंपिक में खेलने गई हुई थीं. तब मीरा केवल 10 साल की थीं, पर उनके जेहन में कुंजारानी देवी बस गईं और उन्होंने वेटलिफ़्टिंग में उतरने की ठान ली. बीबीसी को दिए एक इंटरव्यू में मीराबाई ने बताया था कि वो बचपन में पहाड़ी से घर के चूल्हे के लिए लकड़ी ढो कर लाती थीं.
बचपन में ही उन्होंने अपने माता-पिता से वेटलिफ़्टर बनने की अपनी इच्छा जताई. शुरुआती आनाकानी के बाद वो मान गए और 2007 में उन्होंने अपनी प्रैक्टिस शुरू कर दी. आर्थिक तंगी की वजह से लोहे की बार की जगह वो पहले बांस की मदद से ही वेटलिफ़्टि किया करती थीं. जब ट्रेनिंग सेंटर जाने की शुरुआत हुई तब वो गांव से 50 किलोमीटर दूर था. लेकिन वो रोज़ जाया करती थीं, पैसों की तंगी की वजह से अपनी डाइट में वो दूध और चिकन जैसे खाद्य पदार्थों को जोड़ नहीं सकीं पर आत्मबल इतना अधिक था कि प्रैक्टिस के पहले ही साल मीराबाई अंडर-15 चैंपियन बन गईं और 17 साल में जूनियर चैंपियन.
इसके बाद तो मीराबाई ने एक से बढ़कर एक कारनामे किए जिनमें आज कॉमनवेल्थ गेम्स 2014 में रजत, वर्ल्ड चैंपियनशिप 2017 में स्वर्ण पदक, कॉमनवेल्थ गेम्स 2018 में स्वर्ण पदक, एशियन चैंपियनशिप 2020 में कांस्य पदक, टोक्यो ओलंपिक 2021 में रजत पदक, कॉमनवेल्थ गेम्स 2022 में स्वर्ण पदक, वर्ल्ड चैंपियनशिप 2022 में रजत और अब कॉमनवेल्थ चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक शामिल हो गए हैं.
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मीराबाई के सामने सबसे बड़ी चुनौती
आपको बता दें कि अंतरराष्ट्रीय वेटलिफ़्टिंग फ़ेडरेशन ने भारोत्तोलन से 49 किलोग्राम भार वर्ग को ही हटा दिया. मीराबाई पहले 49 किलोग्राम भार वर्ग में भी भाग लिया करती थीं. वह इसी भार वर्ग में वर्ल्ड चैंपियन भी रह चुकी हैं. हालांकि पिछले साल पेरिस ओलंपिक के दौरान मीराबाई 49 किलोग्राम वर्ग में ही चौथे पायदान पर रहते हुए मेडल जीतने का मौक़ा गंवाया था. तब उन्होंने इसी भार वर्ग में 199 किलोग्राम (88 किलोग्राम स्नैच में और 111 किलोग्राम क्लीन ऐंड जर्क में) वजन उठाए थे, इसके बावजूद वो पदक जीतने से चूक गई थीं.
पेरिस ओलंपिक के बाद मीराबाई चानू इंजरी की वजह से कई बड़े अंतरराष्ट्रीय आयोजनों में भाग नहीं ले सकी. साथ ही वेटलिफ़्टिंग फ़ेडरेशन के नियमों बदलाव के बाद उनके सामने अपने वजन को कम करने की चुनौती भी थी. कॉमनवेल्थ चैंपियनशिप में जीतने के बाद मीराबाई ने कहा भी, "48 किलोग्राम भार वर्ग में मुझे अपना वजन नियंत्रित करना था और देखिए मैंने कितना बेहतर किया है. यह एक चुनौती थी. मैंने अपने प्रदर्शन को वाकई एन्जॉय किया."
वजन के सख़्त नियम के कारण जब विनेश को ओलंपिक से बाहर किया गया
आपको तो याद ही होगा कि पिछले साल पेरिस ओलंपिक के दौरान विनेश फोगाट ज़्यादा वजन होने के कारण अयोग्य घोषित कर दी गई थीं. विनेश फोगाट महिलाओं के 50 किलो भार वर्ग के फ़्री स्टाइल स्पर्धा में चुनौती पेश कर रही थीं. लेकिन जब उनका वजन किया गया तो यह मान्य वजन से कुछ ग्राम ज़्यादा पाया गया. रेसलिंग या बॉक्सिंग जैसे खेलों में खिलाड़ियों के वजन को लेकर बहुत सख़्त नियम हैं. पेरिस ओलंपिक में भाग लेने वाले सभी खिलाड़ियों को इस महाकुंभ के शुरू होने से तीन महीने पहले डोपिंग टेस्ट से गुज़रना पड़ा था. साथ ही उन्हें अपने भार वर्ग के दुनिया भर के टॉप-10 खिलाड़ियों में रहना ज़रूरी था. अगर इन दोनों में से किसी एक में भी खिलाड़ी फेल हुआ तो उसे बाहर का रास्ता दिखा दिया जाता. बढ़े हुए वज़न के मामले में कोई समझौता नहीं हो सकता है.
टूर्नामेंट के दौरान भी सख़्त नियमों का पहरा
अगर आप यह समझ रहे हैं कि एक बार क्वालिफ़ाई कर गए तो इन सब से छुटकारा मिल जाता है तो आप ग़लत हैं. दरअसल, किसी भी भार वर्ग के मुक़ाबले में पहले दिन सुबह ही खिलाड़ी का मेडिकल जांच और उसका वजन किया जाता है. इस दौरान खिलाड़ी कई मेडिकल परीक्षण से गुज़रते हैं. इसमें अगर किसी खिलाड़ी को संक्रामक रोग हो गया है जिसके फ़ैलने का जोखिम है तो उसे क्वॉलिफ़ाइड फ़िजिशियन जांच के बाद बाहर का रास्ता दिखा देते हैं. इन खिलाड़ियों को अपने नाखून तक काटने पड़ते हैं. इसे बिल्कुल छोटा रखना पड़ता है. इस प्रक्रिया के बाद जो खिलाड़ी क्वालिफ़ाई कर गए उन्हें दूसरे दिन भी सुबह इन्हीं प्रक्रियाओं से फ़िर ग़ुजरना होता है. खिलाड़ी चाहें तो कितनी भी बार मशीन पर अपना वजन कर सकते हैं पर वजन अगर भार वर्ग से अधिक निकला या यूं कहें कि खिलाड़ी इसमें फेल हो गया तो उसे तत्काल प्रतियोगिता से बाहर कर दिया जाता है और सबसे आख़िरी पायदान पर रखा जाता है, जैसा कि पेरिस ओलंपिक में विनेश फोगाट के साथ हुआ.
कितना मुश्किल है वजन कम करना?
जैसा कि मैंने ऊपर बताया कि मीराबाई चानू पहले 49 किलोग्राम भार वर्ग में खेलती रही हैं और अब वो एक किलो कम यानी 48 किलोग्राम भार वर्ग में खेल रही हैं. तो मैं बता दूं कि यह बहुत चुनौती पूर्ण होता है. चूंकि मीराबाई एक खिलाड़ी भी हैं तो उन्हें अपने शरीर की ताक़त को भी बरकरार रखना होगा लिहाजा कार्बोहाइड्रेट और प्रोटीन से भरपूर आहार लेने ही होंगे. ऐसे में वजन कम करने के लिए उन्हें या तो अपनी डाइट की मात्रा को घटानी होगी या आहार लेने की पूरी प्रक्रिया में बदलाव लाना होगा, जिससे उन्हें कमज़ोरी न हो और ताक़त भी पूरी तरह बरकरार रहे. कुल मिलाकर कहें तो यह बिल्कुल भी आसान नहीं होता और जैसा कि बीते कल हमने देखा मीराबाई ने इसे काबू में किया है, जो कि एक अच्छे संकेत हैं. वैसे तो मीराबाई 31 साल की हो गई हैं पर अभी वो कुछ और वक़्त खेल सकती हैं. आपको यह भी बता दें कि मीराबाई जब 49 किलोग्राम वर्ग भार के लिए खेलते थीं जहां खिलाड़ी के शरीर का वजन 51 किलो तक हो सकता है. पर 48 किलोग्राम भार वर्ग के लिए उन्हें तीन किलो वजन घटाना पड़ा है. कुल मिलाकर मीराबाई की प्रतिभा पर किसी को कोई संदेह नहीं है पर उनकी बढ़ती उम्र और वजन पर नियंत्रण ही आगे उनके करियर के लिए सबसे अहम होगा.
अब कहां जीतना है मीराबाई का सबसे बड़ा लक्ष्य?
कॉमनवेल्थ चैंपियनशिप में जीतने के बाद मीराबाई ने कहा, "मैंने अपने वजन और डायट को नियंत्रित किया है. मुझे छोटे मसल्स के एक्सरसाइज़ पर फ़ोकस करना होगा. वजन कम करने की वजह से मेरा मसल्स भी कम हो सकता है. इसे बनाए रखना बहुत मुश्किल है. निश्चित रूप से मेरी उम्र भी एक कारण हो सकता है." पर वजह को कम बनाए रखना जटिल होने के बावजूद मीराबाई जिस मिट्टी की बनी हैं उसे देखकर यह कहना मुश्किल नहीं है कि वो अपना वजन बखूबी नियंत्रित रखने में पूरी तरह समर्थ हैं, तो फ़िर एक नए कारनामे का इंतज़ार कीजिए और मीराबाई को शुभकामनाएं दीजिए ताकि वो अपने अगले सबसे बड़े लक्ष्य एशियन गेम्स में मेडल हासिल कर सकें, जो उनके पास अब तक नहीं है और इसी कमी को पूरी करने की कोशिश में हैं इस बार मीराबाई चानू. 31 वर्षीय मीराबाई चानू कॉमनवेल्थ चैंपियनशिप को अपने कमबैक के एक अहम 'ड्रेस रिहर्सल' के रूप में देखा है. अब उनका पूरा ध्यान अगले साल नॉर्वे में होने वाली वर्ल्ड चैंपियनशिप और जापान में होने वाले एशियन गेम्स में पदक जीतने पर है. पेरिस ओलंपिक के बाद किसी बड़े मंच पर उतरीं मीराबाई चानू ने इस जीत के बाद कहा भी कि यह जीत आत्मविश्वास बढ़ाने वाली रही है. उन्होंने कहा कि उनका सबसे बड़ा लक्ष्य एशियन गेम्स है, जहां वो वर्ल्ड रिकॉर्ड तोड़ते हुए मेडल जीतना चाहती हैं.





