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यूनिवर्सल ब्लड की उम्मीद! क्या है गोल्डन ब्लड जिसे बनाने में जुटे साइंटिस्ट, दुनिया में सिर्फ 50 लोगों के पास है ये खून

वैज्ञानिक वर्षों से एक ऐसे खून की तलाश में हैं जो किसी भी इंसान की नसों में बिना जोखिम दौड़ सके. इसी खोज के बीच सामने आया है एक रहस्यमय और बेहद दुर्लभ ब्लड ग्रुप गोल्डन ब्लड, जिसे वैज्ञानिक यूनिवर्सल ब्लड की उम्मीद के रूप में देख रहे हैं.

यूनिवर्सल ब्लड की उम्मीद! क्या है गोल्डन ब्लड जिसे बनाने में जुटे साइंटिस्ट, दुनिया में सिर्फ 50 लोगों के पास है ये खून
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( Image Source:  META AI )
हेमा पंत
Edited By: हेमा पंत

Updated on: 17 Nov 2025 1:36 PM IST

दुनिया में हर दिन लाखों लोग अस्पतालों में ब्लड ट्रांसफ्यूज़न यानी खून चढ़ाने पर निर्भर रहते हैं. किसी एक्सीडेंट, सर्जरी या गंभीर बीमारी में डोनेट किया गया खून किसी की जान बचा सकता है. लेकिन सोचिए अगर आपका ब्लड ग्रुप इतना रेयर हो कि दुनिया में केवल 50 लोगों में ही पाया जाता हो!

ऐसा ही आरएच नल ब्लड ग्रुप है, जिसे मेडिकल दुनिया में 'गोल्डन ब्लड' कहा जाता है. इसकी कीमत सिर्फ इसकी दुर्लभता में नहीं, बल्कि उसकी उस अनोखी क्षमता में है, जो फ्यूचर में यूनिवर्सल ब्लड ट्रांसफ्यूज़न का रास्ता खोल सकती है. इसलिए अब साइंटिस्ट इसे लैब में तैयार करने की कोशिश कर रहे हैं. चलिए ऐसे में जानते हैं आखिर क्या है यह गोल्डन ब्लड?

क्या है आरएच नल ब्लड ग्रुप?

बीबीसी की रिपोर्ट के मुताबिक, ब्लड ग्रुप हमारी रेड ब्लड सेल्स की सतह पर मौजूद कुछ खास प्रोटीन है, जिन्हें एंटीजन कहा जाता है. ब्लड ग्रुप उनसे ही तय होता है. आम तौर पर हम ए, बी, एबी और ओ जैसे ब्लड ग्रुप्स और इनके पॉजिटिव या नेगेटिव रूप के बारे में जानते हैं. लेकिन दुनिया इससे कहीं ज्यादा जटिल है. अब तक 47 ब्लड ग्रुप सिस्टम और 366 से अधिक एंटीजन खोजे जा चुके हैं.

क्यों कहा जाता है गोल्डन ब्लड?

इनमें रीसस यानी आरएच सिस्टम बेहद जरूरी है, जिसमें 50 से अधिक एंटीजन शामिल होते हैं. लेकिन आरएच नल ब्लड ग्रुप में इन सभी 50 आरएच एंटीजन की पूरी तरह कमी होती है. इसका मतलब यह ब्लड ग्रुप दुनिया के सभी आरएच टाइप के लिए सुरक्षित माना जाता है. इसी वजह से मेडिकल साइंस इसे गोल्डन ब्लड कहता है. यह न सिर्फ रेयर है, बल्कि किसी भी आरएच ब्लड टाइप वाले व्यक्ति को चढ़ाया जा सकता है, जो इसे बेहद कीमती बनाता है.

दुनिया में सिर्फ 50 लोग: इतनी दुर्लभता क्यों?

आरएच नल ब्लड जेनेटिक म्यूटेशन की वजह से होता है. यह म्यूटेशन उन जीनों को प्रभावित करता है जो आरएच नाम के जरूरी प्रोटीन बनाने के लिए जिम्मेदार होते हैं. जब ये प्रोटीन नहीं बनते, तो सभी आरएच एंटीजन गायब हो जाते हैं और आरएच नल ब्लड बनता है. इतनी दुर्लभता की वजह से आरएच नल ब्लड वाले लोगों को खुद अपना ब्लड फ्रीज़ करके सुरक्षित रखने के लिए कहा जाता है. किसी इमरजेंसी में उनके लिए मैचिंग ब्लड मिलना लगभग असंभव होता है.

क्यों मुश्किल है ब्लड ट्रांसफ्यूज़न में मैचिंग?

यदि किसी व्यक्ति को गलत एंटीजन वाला खून दे दिया जाए, तो शरीर उसकी पहचान कर एंटीबॉडी बनाता है. यही एंटीबॉडी दोबारा वही ब्लड चढ़ाए जाने पर खतरनाक रिएक्शन पैदा कर सकती हैं. आरएच नल ब्लड इस समस्या को हल करने में मदद कर सकता है क्योंकि इसमें कोई भी आरएच एंटीजन नहीं होता, यानी इम्यून रिस्पॉन्स का जोखिम कम हो जाता है. इमरजेंसी में जहां ब्लड ग्रुप तुरंत पता नहीं चलता, वहां ऐसा ब्लड लाइफ सेवर साबित हो सकता है.

क्या ‘गोल्डन ब्लड’ बन सकता है यूनिवर्सल ब्लड?

वैज्ञानिकों का मानना है कि भविष्य में यूनिवर्सल ब्लड तैयार करना संभव हो सकता है. इसी दिशा में कई रिसर्च टीमें आरएच नल ब्लड को क्लोन करने का प्रयास कर रही हैं. 2018 में यूनिवर्सिटी ऑफ ब्रिस्टल की एक टीम ने पहली बार लैब में आरएच नल जैसी कोशिकाएं विकसित कीं. उन्होंने CRISPR-Cas9 जीन एडिटिंग तकनीक की मदद से उन पांच प्रमुख ब्लड ग्रुप सिस्टम के जीन हटा दिए जिनसे सबसे ज्यादा प्रतिरक्षा प्रतिक्रियाएं होती हैं. अगर यह तकनीक सफल रही, तो भविष्य में ऐसे ब्लड सेल तैयार किए जा सकेंगे जिन्हें दुनिया का लगभग हर व्यक्ति सुरक्षित रूप से इस्तेमाल कर सकेगा.

क्या भविष्य में मिलेगा लैब में बना गोल्डन ब्लड?

अभी यह सपना थोड़ा दूर है. वैज्ञानिकों को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है. स्टेम सेल्स को पूरी तरह विकसित रेड ब्लड सेल में बदलना कठिन है. जीन एडिटिंग से कभी-कभी कोशिका झिल्ली कमजोर हो जाती है. बड़े पैमाने पर आर्टिफिशियल ब्लड तैयार करने की तकनीक अभी परिपक्व नहीं है. फिर भी दुनिया भर में कई टीम्स इस दिशा में काम कर रही हैं. ब्रिटेन, स्पेन, कनाडा और अमेरिका में शोधकर्ता आरएच नल ब्लड को क्लोन करने या उससे मिलती-जुलती कोशिकाएं तैयार करने की कोशिश में जुटे हैं.

क्यों जरूरी है गोल्डन ब्लड पर रिसर्च?

क्योंकि दुनिया में दुर्लभ ब्लड ग्रुप वाले मरीज बढ़ रहे हैं. ऐसे लोगों के लिए जीवन रक्षक ब्लड मिलना आज भी बेहद मुश्किल है. अगर गोल्डन ब्लड का लैब वर्जन तैयार हो गया, तो:

  • दुर्लभ ब्लड ग्रुप वाले लाखों मरीजों को नई उम्मीद मिलेगी.
  • इमरजेंसी में यूनिवर्सल ब्लड मिल सकेगा.
  • ब्लड ट्रांसफ्यूज़न में गलत मैचिंग से होने वाली मौतों को रोका जा सकेगा.

आरएच नल या ‘गोल्डन ब्लड’ आज बेहद दुर्लभ है, लेकिन इसकी क्षमता अनमोल है. वैज्ञानिकों का मानना है कि आने वाले समय में यह ब्लड ट्रांसफ्यूज़न की दुनिया को पूरी तरह बदल सकता है. यह सिर्फ एक ब्लड ग्रुप नहीं, बल्कि यूनिवर्सल ब्लड के सपने का पहला कदम है. और शायद भविष्य में यह दुनिया के हर मरीज की जिंदगी बचाने में सक्षम हो सके.

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