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कौन था ‘ह्यूमन GPS’ बागू खान? आतंकियों का ‘समंदर चाचा’ और 100 से ज्‍यादा घुसपैठ कराने का मास्टरमाइंड ढेर

जम्मू-कश्मीर के गुरेज़ सेक्टर में भारतीय सेना ने बड़ी सफलता हासिल करते हुए कुख्यात आतंकी बागू खान उर्फ ‘ह्यूमन जीपीएस’ को मुठभेड़ में ढेर कर दिया. 1995 से पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (PoK) में सक्रिय बागू खान 100 से अधिक घुसपैठ प्रयासों का मास्टरमाइंड था और हिजबुल से लेकर लश्कर-ए-तैयबा तक हर आतंकी संगठन के लिए काम करता था. इलाके के कठिन भौगोलिक हालात और गुप्त रास्तों की गहरी जानकारी के कारण वह वर्षों तक सुरक्षा बलों से बचता रहा. उसकी मौत आतंकी नेटवर्क के लिए बड़ा झटका है.

कौन था ‘ह्यूमन GPS’ बागू खान? आतंकियों का ‘समंदर चाचा’ और 100 से ज्‍यादा घुसपैठ कराने का मास्टरमाइंड ढेर
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( Image Source:  @Vipin_Update_ X )
प्रवीण सिंह
Edited By: प्रवीण सिंह

Updated on: 30 Aug 2025 3:16 PM IST

जम्मू-कश्मीर में आतंक की काली छाया फैलाने वाला और आतंकियों की घुसपैठ का सबसे कुख्यात चेहरा कहे जाने वाला ‘ह्यूमन जीपीएस’ बागू खान आखिरकार भारतीय सुरक्षा बलों की गोली का शिकार हो गया. बागू खान, जिसे आतंकी दुनिया में ‘समंदर चाचा’ के नाम से भी जाना जाता था, 1995 से पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (PoK) में सक्रिय था और पिछले तीन दशकों से लगातार भारत-विरोधी गतिविधियों का हिस्सा बना हुआ था.

शनिवार को गुरेज़ सेक्टर के नौशेरा नार इलाके में हुए मुठभेड़ में सुरक्षाबलों ने बागू खान को ढेर कर दिया. उसके साथ एक और आतंकी भी मारा गया. सुरक्षा सूत्रों के मुताबिक, बागू खान भारत में घुसपैठ कराने का सबसे बड़ा मास्टरमाइंड था, जिसने अब तक 100 से अधिक घुसपैठ प्रयासों को अंजाम दिलाया था, जिनमें से ज़्यादातर सफल रहे. इसका कारण था उसका इलाके के दुर्गम पहाड़ी इलाकों, जंगलों और गुप्त रास्तों पर अद्भुत पकड़. यही कारण था कि आतंकी संगठनों के बीच उसे ‘ह्यूमन जीपीएस’ कहा जाता था.

घुसपैठ कराने की सबसे बड़ी कड़ी

बागू खान मूल रूप से हिजबुल मुजाहिद्दीन का कमांडर था, लेकिन समय के साथ वह हर आतंकी संगठन के लिए काम करने लगा. चाहे लश्कर-ए-तैयबा हो, जैश-ए-मोहम्मद या अन्य आतंकी समूह - सभी के लिए बागू खान सीमा पार से घुसपैठ कराने में अहम कड़ी बन गया था. गुरेज़ सेक्टर और उसके आसपास के क्षेत्रों से आतंकियों की घुसपैठ कराना उसका मुख्य काम था. इलाके की भौगोलिक स्थिति बेहद कठिन है - ऊंचे-ऊंचे पहाड़, बर्फ से ढके दर्रे, घने जंगल और सीमित रास्ते. इन परिस्थितियों में सामान्य व्यक्ति का गुजरना लगभग असंभव है, लेकिन बागू खान ने वर्षों तक इन रास्तों का अध्ययन किया था. यही वजह थी कि वह बार-बार सुरक्षा एजेंसियों की नज़रों से बचता रहा.

सुरक्षा बलों के लिए चुनौती

करीब तीन दशक तक बागू खान भारतीय सुरक्षा एजेंसियों के लिए सिरदर्द बना रहा. कई बार उसके खिलाफ ऑपरेशन चलाए गए लेकिन हर बार वह बच निकलता. उसके बारे में कहा जाता है कि उसे इलाके की हर पगडंडी, हर पहाड़ी मोड़ और हर वैकल्पिक रास्ते की जानकारी थी. यही कारण था कि वह घुसपैठ कराने में हमेशा सफल साबित होता रहा. सुरक्षा अधिकारियों का मानना है कि उसके कारण पिछले 25–30 वर्षों में कश्मीर में आतंकवाद को लगातार ऑक्सीजन मिलती रही. उसके नेटवर्क ने न सिर्फ आतंकियों को भारत में दाखिल कराया, बल्कि हथियारों और गोलाबारूद की तस्करी भी कराई.

ऑपरेशन नौशेरा नार IV

शनिवार की सुबह, भारतीय सेना को जानकारी मिली कि भारी हथियारों से लैस आतंकियों का एक समूह नौशेरा नार इलाके से भारतीय सीमा में घुसने की कोशिश कर रहा है. इसके बाद ऑपरेशन नौशेरा नार IV शुरू किया गया. सुरक्षा बलों ने तुरंत इलाके को घेर लिया और घुसपैठियों को चुनौती दी. जवाब में आतंकियों ने गोलीबारी शुरू कर दी. कुछ ही देर चली मुठभेड़ में दो आतंकवादी मारे गए, जिनमें से एक की पहचान बागू खान के रूप में हुई. यह वही इलाका है जहां दो दिन पहले भी भारतीय सेना ने दो आतंकियों को मार गिराया था. लगातार तीसरे दिन हुई इस कार्रवाई से साफ है कि आतंकियों की तरफ से घुसपैठ की कोशिशें तेज़ हैं, लेकिन भारतीय सेना हर मोर्चे पर मुंहतोड़ जवाब दे रही है.

आतंकी नेटवर्क को तगड़ा झटका

बागू खान की मौत को सुरक्षा एजेंसियां आतंकी नेटवर्क के लिए बड़ा झटका मान रही हैं. उसकी मौत के साथ सीमा पार से घुसपैठ कराने वाला सबसे बड़ा गाइड खत्म हो गया है. सुरक्षा विशेषज्ञों के मुताबिक, अब PoK में बैठे आतंकी संगठनों के लिए भारतीय सीमा में आतंकियों को भेजना आसान नहीं होगा.

बागू खान न सिर्फ एक गाइड था, बल्कि घुसपैठ कराने के लिए जरूरी रणनीति, सुरक्षित ठिकाने और सपोर्ट सिस्टम तैयार करता था. उसकी मौत से आतंकी नेटवर्क का वह भरोसेमंद स्तंभ गिर गया है, जिस पर वे दशकों से निर्भर थे.

लंबे समय से वांछित आतंकी

बागू खान का नाम भारतीय सुरक्षा एजेंसियों की ‘वांछित आतंकियों’ की लिस्ट में लंबे समय से शामिल था. उसकी गतिविधियों पर लगातार नज़र रखी जाती थी. माना जाता है कि 1995 से वह PoK में रह रहा था और वहीं से भारत में आतंक फैलाने की साज़िशों को अंजाम देता रहा. स्थानीय सूत्रों के अनुसार, आतंकियों के बीच उसकी छवि एक बुज़ुर्ग लेकिन बेहद अनुभवी ‘गाइड’ की थी, जो हर मुश्किल रास्ते से निकलने का हुनर जानता था. इसी वजह से उसे ‘समंदर चाचा’ भी कहा जाता था.

बागू खान की मौत सिर्फ एक आतंकी का खात्मा नहीं है, बल्कि आतंकियों के लिए यह साफ संदेश है कि चाहे कितना भी चालाक या अनुभवी क्यों न हो, भारतीय सुरक्षा बलों से बचना असंभव है. तीन दशकों तक दुर्गम रास्तों से आतंकियों को भारत में दाखिल कराने वाला ‘ह्यूमन जीपीएस’ आखिरकार भारतीय सेना की सटीक रणनीति और बहादुरी के आगे ढेर हो गया.

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