बंगाल में जहां हिंदी बोलने वाले ज्यादा, वहां कटे सबसे ज्यादा वोटरों के नाम, मुस्लिम जिलों में राहत? BJP-TMC के बीच नैरेटिव की जंग
पश्चिम बंगाल एसआईआर (Special Intensive Revision) ड्राफ्ट वोटर लिस्ट सामने आने के बाद सियासी घमासान तेज हो गया है. हिंदी भाषी और मतुआ प्रभाव वाले इलाकों में ज्यादा नाम कटने और मुस्लिम बहुल जिलों में अपेक्षाकृत कम असर के दावों ने चुनाव से पहले नैरेटिव की नई जंग छेड़ दी है. टीएमसी अब भी बीजेपी पर आरोप लगा रही है कि वो जानबूझकर गलत नैरेटिव बनाना चाह रही है.
पश्चिम बंगाल में एसआईआर (SIR) सर्वे के बाद अब चुनावी माहौल गरमाने लगा है. एसआईआर ड्राफ्ट वोटर लिस्ट के आंकड़ों को लेकर सत्तारूढ़ टीएमसी और विपक्षी दलों के बीच तीखी बयानबाजी शुरू हो गई है. इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक बीजेपी सहित अन्य दलों का आरोप है कि शहरी हिंदी भाषी और मतुआ प्रभाव वाले इलाकों में वोटरों के नाम ज्यादा काटे गए. जबकि मुस्लिम बहुल जिलों में बहुत कम वोट कटे हैं. यानी अब यह मुद्दा प्रशासनिक प्रक्रिया से निकलकर पूरी तरह सियासी नैरेटिव की लड़ाई बनता दिख रहा है. इसको लेकर टीएमसी और बीजेपी के बीच बयानबाजी का दौर भी चालू हो गया है.
जिन क्षेत्रों हिंदी भाषी सीटों पर ज्यादा नाम कटे हैं वो शहरी क्षेत्र हैं. ये क्षेत्र या तो हिंदी भाषियों मतदाताओं का है या फिर मतुआ समुदाय के लोगों वाला इलाका है. हिंदी भाषा मतदाता वालो कोलकाता, आसनसोल, उत्तर 24 परगना, दक्षिण 24 परगना, हावड़ा उत्तर, मतुआ समुदाय वाले क्षेत्र शामिल हैं. जबकि मुस्लिम बहुल इलाके मुर्शिदाबाद, मालदा, बीरभूम, उत्तरी दीनाजपुर व अन्य जिलों में औसत से भी बहुत कम वोट कटे हैं. माना जा रहा है कि बीएलओ के जरिए ममता बनर्जी ने एसआईआर प्रक्रिया के दौरान भी अपना काम कर दिया है.
58 लाख कम हुए वोटरों की संख्या
पश्चिम बंगाल चुनाव आयोग ने 16 दिसंबर को एसआईआर ड्राफ्ट जारी कर दिया है. पश्चिम बंगाल की ड्राफ्ट वोटर लिस्ट से पता चला कि राज्य के वोटरों की संख्या 7.66 करोड़ से घटकर 7.08 करोड़ हो गई है, जिसमें 58 लाख नाम वोटर लिस्ट से हटा दिए गए हैं. इसके पीछे मौत, स्थायी पलायन, नाम का दोहराव और जनगणना फॉर्म जमा न होना जैसे कारण बताए गए हैं.
टॉप 10 सीटों पर हिंदी भाषियों के कटे नाम
एसआईआर ड्राफ्ट वोटर लिस्ट के मुताबिक जो अभी अस्थायी है और दावों और आपत्तियों के अगले चरण के बाद इसमें बदलाव हो सकता है. दिखाता है कि जिन विधानसभा सीटों पर हिंदी बोलने वालों की संख्या ज्यादा है, वे उन टॉप 10 सीटों में शामिल हैं जहां सबसे ज्यादा नाम हटाए गए हैं, जो वोटरों का 15 से 36 प्रतिशत है. इसके उलट, कई मुस्लिम बहुल सीटों पर बहुत कम नाम हटाए गए हैं.
जोरासांको पर 37 फीसदी नाम गायब
कोलकाता और उसके आस-पास की विधानसभा सीटों पर भी बड़ी संख्या में नाम हटाए गए हैं, जिसमें कोलकाता उत्तर और कोलकाता दक्षिण जिलों में सबसे ज़्यादा 25.92% और 23.82% नाम हटाए गए हैं. सबसे ज्यादा नाम हटाई गई 10 सीटों में जोरासांको (36.66% वोटर हटाए गए), चौरंगी (35.45%), कोलकाता पोर्ट (26.09%), जो TMC नेता और कोलकाता के मेयर फिरहाद हकीम का निर्वाचन क्षेत्र है.
मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का निर्वाचन क्षेत्र भवानीपुर (21.55%) शामिल हैं. कोलकाता की इन सीटों पर हिंदी बोलने वालों की अच्छी-खासी आबादी है. हालांकि, TMC ने 2021 के विधानसभा चुनावों में इन सभी सीटों पर जीत हासिल की थी. 2024 के लोकसभा चुनावों में भी आगे रही, लेकिन BJP वहां अपना आधार बढ़ाने की कोशिश कर रही है.
जिन सीटों पर BJP एक मजबूत राजनीतिक ताकत है, वहां भी नाम हटाने की दर ज्यादा रही है. इनमें हावड़ा उत्तर (26.89% नाम हटाए गए); पश्चिम बर्धमान जिले में आसनसोल दक्षिण (13.68%) और आसनसोल उत्तर (14.71%); और उत्तर 24 परगना जिले में बैरकपुर (19.01%) शामिल हैं. हालांकि, इन सीटों में से BJP का विधायक सिर्फ आसनसोल दक्षिण में है, लेकिन बाकी सीटों पर वह TMC से ठीक पीछे है और इन सीटों पर उसका मजबूत संगठनात्मक आधार है.
मतुआ मतदाताओं को लगा झटका
चुनावी रूप से प्रभावशाली मतुआ समुदाय जो BJP का एक प्रमुख वोटर आधार है, के प्रभुत्व वाली सीटों पर भी पहले चरण में बड़ी संख्या में नाम हटाए गए. इनमें दक्षिण 24 परगना जिले में कस्बा (17.95%) और सोनारपुर दक्षिण (11.29%) और उत्तर 24 परगना में बनगांव उत्तर (9.71%) शामिल हैं. कम नाम काटे गए मुस्लिम-बहुल विधानसभा सीटों पर बहुत कम या न के बराबर नाम काटे गए हैं.
मुस्लिम बहुल सीटों पर कम कटे नाम
मुर्शिदाबाद और मालदा जिलों में, जहां 2011 की जनगणना के अनुसार मुसलमानों की आबादी क्रमशः 66.3% और 51.6% है, वहां केवल 4.84% और 6.31% मतदाताओं के नाम वोटर लिस्ट से हटाए गए हैं. इन जिलों की किसी भी विधानसभा सीट पर नाम हटाने का आंकड़ा 10% से ज़्यादा नहीं है. मुर्शिदाबाद में, डोमकल (3.4%), रेजिनगर (5.04%), और शमशेरगंज (6.86%) जैसी सीटों पर नाम हटाने की दर ज्यादा नहीं थी. जबकि मालदा में मानिक चौक जैसी मुस्लिम-बहुल सीट पर यह संख्या 6.08% कम थी. स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (SIR) अभ्यास शुरू होने से पहले ही लोग पहचान पत्र और अन्य कागजात के लिए स्थानीय निकायों और ब्लॉक कार्यालयों के बाहर लाइनें लगाने लगे थे.
उत्तर दिनाजपुर में, 2011 की जनगणना के अनुसार 49.92% मुस्लिम आबादी है, चोपड़ा (7.44%), गोलपोखर (7.03%), इस्लामपुर (8.17%), और चकुलिया (8.55%) जैसी अल्पसंख्यक-बहुल सीटों पर ज्यादा नाम नहीं हटाए गए हैं. यह पैटर्न बीरभूम जिले में हसन (4.95%) और नानूर (5.24%) जैसी मुस्लिम-बहुल सीटों पर भी लागू होता है.
टीएमसी नेताओं का कहना है कि एसआईआर ड्राफ्ट को लेकर बीजेपी का नैरेटिव झूठ पर आधारित है. केंद्र ने जनगणना से पहले SIR शुरू किया. जनगणना के जरिए असली सच्चाई सामने आ जाती.
यूपी-बिहार के लोग ज्यादा, घुसपैठिए नहीं
TMC प्रवक्ता अरूप चक्रवर्ती ने कहा कि ड्राफ्ट लिस्ट से पता चलता है कि उत्तर प्रदेश और बिहार के लोग बंगाल में हैं, बांग्लादेश से घुसपैठिए नहीं. वरिष्ठ बीजेपी नेता और पूर्व प्रदेश अध्यक्ष राहुल सिन्हा ने आरोप लगाया कि TMC के दबाव के कारण बूथ लेवल अधिकारी निष्पक्ष और स्वतंत्र रूप से काम नहीं कर पाए. उन्होंने बताया कि हमने पहले ही इस बात की जानकारी चुनाव आयोग को दे दी है.
गरीब हिंदू परेशान ज्यादा
पूर्व सांसद और CPI(M) नेता सुजान चक्रवर्ती ने कहा कि जिन निर्वाचन क्षेत्रों में हिंदी बोलने वालों की अच्छी-खासी संख्या है, वहां ज्यादा नाम हटाने की दर इसलिए हो सकती है क्योंकि बिहार और उत्तर प्रदेश के प्रवासी मजदूर वहां रहते हैं और उन्होंने अपने गृह राज्यों की वोटर लिस्ट में अपना नाम रखने का फैसला किया होगा. उन्होंने आगे कहा, "मैं कहता रहा हूं कि SIR गरीब मुसलमानों के मुकाबले गरीब हिंदुओं को ज्यादा परेशानी में डालेगा."
घुसपैठ की कहानी 'फेक'
कोलकाता के रिसर्चर साबिर अहमद, जो प्रतीची ट्रस्ट से जुड़े हैं, ने कहा कि शुरुआती डेटा ने घुसपैठ की राजनीतिक कहानी की हवा निकाल दी है. पश्चिम बंगाल सालों से बिहार और यूपी जैसे पड़ोसी राज्यों से आने वाले कई प्रवासियों का ठिकाना रहा है?. वे यहां पीढ़ियों से रह रहे हैं और उन्होंने अपनी मूल जगह को चुना होगा क्योंकि यह उनकी प्राथमिक पहचान और ज़मीन से जुड़ा है. इसलिए, हमें हिंदी भाषी इलाकों में ज्यादा नाम हटाए जाने के मामले दिख रहे हैं.
बंगाल चुनाव परसेप्शन की लड़ाई ज्यादा
वोटर मैपिंग की समस्याओं से मुसलमानों के प्रभावित होने की संभावना कम है क्योंकि ज्यादातर लोगों के पास जरूरी दस्तावेज हैं. एसआईआर ड्राफ्ट वोटर लिस्ट ने यह साफ कर दिया है कि पश्चिम बंगाल में चुनाव सिर्फ मुद्दों पर नहीं, बल्कि डेटा और धारणा (Perception) पर भी लड़ा जाएगा. अब असली सवाल यह नहीं कि कितने नाम कटे, बल्कि यह है कि कौन इस कटौती को किस नैरेटिव में बदलने में सफल होता है.





