बंदरों से परेशान होकर इस गांव के सरपंच ने निकाला गजब का जुगाड़, VIdeo देख आप कहेंगे वाह-वाह
तेलंगाना के निर्मल ज़िले के लिंगापुर गांव में बंदरों के आतंक से परेशान नवनिर्वाचित सरपंच कुम्मारी रंजीत ने समस्या से निपटने के लिए अनोखा तरीका अपनाया. उन्होंने भालू की पोशाक पहनकर गांव में घूमते हुए बंदरों को डराकर भगाने की कोशिश की, जिसका वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया. इससे पहले पिंजरे लगाकर बंदर पकड़ने की कोशिश नाकाम रही थी. सरपंच ने कहा कि यह अस्थायी समाधान है और सरकार को इस समस्या का स्थायी हल निकालना चाहिए.
तेलंगाना के निर्मल ज़िले से एक अनोखी और दिलचस्प खबर सामने आई है, जहां बंदरों के आतंक से परेशान एक गांव के नवनिर्वाचित सरपंच ने समस्या से निपटने का ऐसा तरीका अपनाया, जिसने सोशल मीडिया पर भी हलचल मचा दी. गांव में फसलों और लोगों पर हो रहे लगातार हमलों से त्रस्त सरपंच ने खुद मैदान में उतरकर बंदरों को भगाने की जिम्मेदारी अपने हाथों में ले ली.
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इस सरपंच का तरीका न तो प्रशासनिक फाइलों में मिलेगा और न ही किसी सरकारी गाइडलाइन में. उन्होंने बंदरों को डराने के लिए भालू की पोशाक पहन ली और पूरे गांव में कूदते-फांदते नजर आए. उनका यह अनोखा प्रयोग कैमरे में कैद हुआ और देखते ही देखते वीडियो वायरल हो गया.
भालू बनकर गांव में कूदते दिखे सरपंच
वायरल वीडियो में निर्मल ज़िले के कडम मंडल स्थित लिंगापुर गांव के सरपंच कुम्मारी रंजीत को भालू की पोशाक पहनकर गांव में उछलते-कूदते देखा जा सकता है. उनका मकसद साफ था. गांव में आतंक मचा रहे बंदरों को डराकर भगाना. रंजीत ने बताया कि यह फैसला उन्होंने तब लिया जब बंदरों को पकड़ने के लिए लगाए गए पिंजरे पूरी तरह नाकाम साबित हुए.
'50 रुपये प्रति घर जुटाकर लगाए पिंजरे, लेकिन कामयाबी नहीं मिली'
सरपंच रंजीत ने कहा कि हमने हर घर से 50 रुपये का योगदान लेकर बंदरों को पकड़ने के लिए पिंजरे लगाए थे. लेकिन यह तरीका सफल नहीं हुआ, क्योंकि हम सिर्फ कुछ ही बंदरों को पकड़ पाए." उन्होंने आगे बताया कि मैं इंटरनेट पर समाधान ढूंढ रहा था, तभी मुझे यह आइडिया मिला. इसलिए मैंने भालू की पोशाक पहनकर गांव में घूमने का फैसला किया, ताकि फिलहाल लोगों को राहत मिल सके."
दो-तीन साल से बंदरों के आतंक से जूझ रहा गांव
लिंगापुर गांव पिछले दो से तीन सालों से गंभीर बंदर समस्या का सामना कर रहा है. हालात इतने खराब थे कि हाल ही में हुए पंचायत चुनाव में यह मुद्दा एक बड़ा चुनावी सवाल बनकर उभरा. उम्मीदवारों ने बंदरों के आतंक से निजात दिलाने का वादा किया था. रंजीत, जो बीआरएस (BRS) समर्थित उम्मीदवार हैं, ने कहा कि 'मैंने यह तरीका इसलिए चुना क्योंकि मैंने चुनाव में वादा किया था कि जीतने पर बंदरों की समस्या का समाधान करूंगा." उन्होंने यह भी दावा किया कि भालू की वेशभूषा देखकर कई बंदर गांव से भाग खड़े हुए.
फसलें बर्बाद, लोग घायल, सरकार से स्थायी समाधान की मांग
युवा सरपंच ने सरकार से इस समस्या को गंभीरता से लेने की अपील की. उन्होंने कहा कि सिर्फ उनका गांव ही नहीं, बल्कि राज्य के कई गांव इसी तरह के संकट से जूझ रहे हैं. उनका कहना है कि बंदरों के हमलों से न केवल फसलों को भारी नुकसान हो रहा है, बल्कि ग्रामीणों के घायल होने की घटनाएं भी सामने आ रही हैं. रंजीत ने साफ कहा कि इसका स्थायी समाधान केवल सरकार ही निकाल सकती है.
पूरे तेलंगाना में हो रहे अलग-अलग प्रयोग
तेलंगाना के कई जिलों में ग्राम पंचायतों के सहयोग से बंदरों को भगाने के लिए तरह-तरह के प्रयोग किए जा रहे हैं. कहीं जानवर पकड़ने वालों को बुलाया जा रहा है, तो कहीं पिंजरे लगाए जा रहे हैं. कुछ गांवों में तो बंदरों को डराने के लिए लंगूर तक लाए जा चुके हैं. मुलुगु ज़िले के गोविंदरावपेट से लावुद्या जोगा नायक ने कहा कि "गांव स्तर पर हम बंदरों को बस्तियों में घुसने से रोकने के लिए अलग-अलग तरीके आजमा रहे हैं. लेकिन असली जरूरत एक स्थायी समाधान की है, जो सिर्फ सरकार ही दे सकती है."





