सुप्रीम कोर्ट की जांच के घेरे में क्यों आया Vantara, जानवरों को रखने को लेकर क्या कहते हैं नियम?
Vantara SIT Supreme Court : सुप्रीम कोर्ट ने वंतारा विवाद मामले में कड़ा रुख अपनाते हुए SIT जांच के आदेश दिए हैं. कोर्ट ने साफ किया है कि पशुओं की अनदेखी या उनके अधिकारों का हनन बर्दाश्त करना मुमकिन नहीं है. अब एसआईटी जांच से तय होगा कि वास्तव में याचिका सुनवाई योग्य है या नहीं. यह याचिका वकील जया सुकिन ने दायर किया था. वकील ने भारत और विदेश से जानवरों को गैरकानूनी तरीके से लाने, कैद में जानवरों के साथ दुर्व्यवहार समेत मनी लॉन्ड्रिंग जैसे गंभीर आरोप लगाए हैं.
Vantara Supreme Court News: वंतारा विवाद अब सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में आ गया है. कोर्ट ने SIT जांच के आदेश दिए हैं. ताकि यह पता चल सके कि क्या वहां पशुओं के साथ लापरवाही या कानून का उल्लंघन होता है या नहीं. भारत में जानवरों की रक्षा के लिए कई कानून बने हैं, लेकिन क्या उनका पालन ठीक से हो रहा है? एसआईटी जांच से इस पहलुओं से पर्दा उठने की संभावना है.
दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने विशेष जांच दल (SIT) का गठन भारत और विदेशों से जानवरों, विशेष रूप से हाथियों के लाने, वन्य जीवन (संरक्षण) अधिनियम 1972 और चिड़ियाघरों के नियमों का पालन हो रहा है या नहीं, का पता लगाना है. इस बात को ध्यान में रखते हुए शीर्ष अदालत ने एसआईटी को एक रिपोर्ट पेश करने का आदेश दिया है. सुप्रीम कोर्ट यह जानना चाहता है कि वंतारा जानवरों को कहां से और कैसे हासिल करता है.
SIT 12 सितंबर तक पेश करे रिपोर्ट
शीर्ष अदालत ने SIT को निर्देश दिया कि वह अपनी जांच तत्काल प्रभाव से शुरू करे और 12 सितंबर तक अपनी रिपोर्ट पेश करे. सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति जे. चेलमेश्वर की अध्यक्षता में एक विशेष जांच दल (SIT) द्वारा गुजरात के जामनगर में रिलायंस फाउंडेशन के वन्यजीव बचाव और पुनर्वास केंद्र वंतारा के मामलों की जांच का आदेश दिया था. बता दें कि वंतारा विवाद की सुनवाई जस्टिस पंकज मित्थल और जस्टिस पी.बी. वराले कर रहे हैं.
हथिनी महादेवी को वंतारा ले जाने पर विवाद क्यों?
सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिकाएं वकील सी.आर. जया सुकिन और देव शर्मा दायर की है. ये जनहित याचिकाएं जुलाई में कोल्हापुर के एक मंदिर से महादेवी नामक हथिनी को वंतारा ले जाने को लेकर उठे विवाद के बाद दायर की गई थी. मंदिर के प्रति क्षेत्र के लोगों की आस्था काफी है. इस लिहाज ये यह धार्मिक आस्था का भी मसला है. याची वकीलों ने इस बात का भी जिक्र अपने आरोपों में किया है. यही वजह है कि इसकी जांच के लिए शीर्ष अदालत ने एसआईटी गठित की है. इस टीम में उत्तराखंड और तेलंगाना हाईकोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति राघवेंद्र चौहान, मुंबई के पूर्व पुलिस आयुक्त हेमंत नगराले और अतिरिक्त सीमा शुल्क आयुक्त अनीश गुप्ता भी शामिल होंगे.
इन पहलुओं की जांच करेगी SIT
एसआईटी वनस्पतियों और जीवों की लुप्तप्राय प्रजातियों के व्यापार पर अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन (सीआईटीईएस) और आयात/निर्यात कानूनों के अनुपालन तथा जीवित पशुओं के आयात/निर्यात से संबंधित अन्य वैधानिक आवश्यकताओं और पशुपालन, पशु चिकित्सा देखभाल, पशु कल्याण, मृत्यु दर और कारणों के मानकों के अनुपालन की जांच करेगी. इसके अलावा, एसआईटी क्लाइमेट चेंज और औद्योगिक क्षेत्र के निकट स्थित होने से संबंधित आरोप, वैनिटी या निजी संग्रह का निर्माण, प्रजनन, संरक्षण कार्यक्रम और जैव विविधता संसाधनों का उपयोग, जल और कार्बन क्रेडिट का दुरुपयोग, कानून के विभिन्न प्रावधानों के उल्लंघन के आरोप, जानवरों या पशु उत्पादों का व्यापार, वन्यजीव तस्करी आदि की जांच करेगी. एसआईटी दो वकीलों द्वारा धन शोधन आदि से संबंधित शिकायतों की भी जांच करेगी.
सुरक्षा की जिम्मेदारी वन विभाग के सचिव की
सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने एसआईटी को वंतारा का "भौतिक सत्यापन और निरीक्षण" करने को कहा और निर्देश दिया कि गुजरात के वन विभाग के सचिव प्रदेश में एसआईटी को पूर्ण सहायता और सहयोग सुनिश्चित करने के लिए जिम्मेदार होंगे." विशेष जांच दल द्वारा की गई कार्रवाई को केवल तथ्य-खोजी जांच के रूप में न्यायालय की सहायता के लिए इजाजत दी गई है. ताकि वास्तविक तथ्यात्मक स्थिति का पता लगाया जा सके और न्यायालय को रिपोर्ट में पेश तथ्यों के आधार पर जो भी उचित समझे फैसला ले सके."
पीठ ने आगे कहा, "वह याचिकाओं में लगाए गए आरोपों पर न तो कोई राय व्यक्त करती है और न ही इस आदेश को किसी भी वैधानिक प्राधिकरण या निजी प्रतिवादी (वंतारा) की कार्यप्रणाली पर कोई संदेह उत्पन्न करने वाला माना जाना चाहिए."
जांच का आदेश क्यों?
सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने बताया कि दोनों याचिकाएं "केवल समाचार पत्रों, सोशल मीडिया में छपी खबरों और कहानियों तथा गैर-सरकारी संगठनों और वन्यजीव संगठनों द्वारा की गई विविध शिकायतों पर आधारित हैं." "भारत और विदेशों से जानवरों के अवैध अधिग्रहण, कैद में जानवरों के साथ दुर्व्यवहार, वित्तीय अनियमितताएं, धन शोधन आदि जैसे व्यापक आरोप लगाती हैं."
याचिका "निजी प्रतिवादी 'वंतारा' के खिलाफ आरोप लगाने तक ही सीमित नहीं हैं बल्कि केंद्रीय चिड़ियाघर प्राधिकरण, वन्य जीव-जंतुओं और वनस्पतियों की लुप्तप्राय प्रजातियों के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर कन्वेंशन (CITES) जैसे संवैधानिक प्राधिकरणों और अदालतों पर आरोप लगाए हैं."
अदालत ने कहा कि "याचिकाओं को पढ़ने पर, हम पाते हैं कि इन याचिकाओं के माध्यम से जो प्रस्तुत किया गया है, वह केवल आरोप हैं, जिनमें कोई साक्ष्य-योग्य सामग्री नहीं है. इसके बावजूद याचिकाओं में लगाए गए आरोपों की व्यापकता को देखते हुए निजी प्रतिवादी या किसी अन्य पक्ष से प्रतिवाद आमंत्रित करने से कोई खास फायदा नहीं होगा."
अदालत ने कहा, “आमतौर पर इस तरह के आरोपों पर आधारित याचिकाएं कानूनी रूप से विचार के लायक नहीं होतीं बल्कि खारिज करने लायक होती हैं. इन आरोपों के मद्देनजर कि संवैधानिक प्राधिकारी या अदालतें अपने आदेश का पालन करने के लिए या तो अनिच्छुक हैं या असमर्थ हैं. विशेष रूप से तथ्यात्मक स्थिति की सत्यता के सत्यापन के अभाव में, हम न्याय के लिए एक स्वतंत्र तथ्यात्मक मूल्यांकन की मांग करना उचित समझते हैं, जो आरोपों की गहराई और सबूतों पर आधारित है.”
बिना किसी रुकावट हो जांच - वंतारा
वंतारा ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा विशेष जांच दल (SIT) के गठन पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा, 'वह अदालत के आदेश का पूर्ण सम्मान करता है और पारदर्शिता, सहानुभूति तथा कानून के पालन के लिए प्रतिबद्ध है. संस्था ने साफ किया कि उसका मकसद पशुओं का बचाव, पुनर्वास और देखभाल ही रहेगा. SIT जांच में पूरा सहयोग देने का आश्वासन दिया. साथ ही अपील की कि यह प्रक्रिया बिना किसी बाधा के आगे बढ़े. ताकि पशुओं के हित सर्वोपरि बने रहें. संस्था ने दोहराया कि उसके सभी प्रयासों का केंद्र हमेशा से पशु कल्याण ही रहा है.'
वन्य जीवों के संरक्षण को लेकर ये हैं अहम कानून
1. पशु क्रूरता निवारण अधिनियम 1960 (PCA Act) - यह कानून जानवरों पर अत्याचार और अमानवीय व्यवहार को अपराध मानता है.
2. भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 428 और 429 में किसी जानवर को मारने, जहर देने या घायल करने पर सख्त सजा और जुर्माने का प्रावधान है.
3. वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 में जंगली जानवरों का शिकार, व्यापार या कैद करना गैरकानूनी माना गया है.
4. पशु वध नियंत्रण नियम - जानवरों के वध से पहले मानवीय तरीके अपनाना अनिवार्य.
5. सर्कस और मनोरंजन में पाबंदी - हाथी समेत कई जंगली जानवरों को सर्कस या प्रदर्शन में इस्तेमाल करने पर रोक.
6. पशुपालन और डेयरी नियमावली - पशुओं को साफ-सुथरा वातावरण, खाना-पानी और इलाज मिलना जरूरी.
7. ट्रांसपोर्ट नियम (Transport of Animals Rules, 1978) - जानवरों को ले जाते समय भीड़भाड़, भूख-प्यास और चोट से बचाना जरूरी.
8. पशु चिकित्सा सेवा का अधिकार - बीमार या घायल जानवर को तुरंत इलाज कराना जरूरी.
9. पिन्जरा मुक्ति नियम - इस अधिनियम के तहत कई राज्यों में पालतू और कैद में रखे जंगली जानवरों के लिए विशेष दिशा-निर्देश हैं.
10. सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के आदेश - न्यायपालिका ने कई बार कहा है कि पशुओं के भी ‘मौलिक अधिकार’ हैं और उनके साथ इंसानों जैसा संवेदनशील व्यवहार होना चाहिए.





