ताबूत में आखिरी कील न साबित हो जाए पहलगाम हमला, कैसे पाकिस्तानियों के लिए सस्ते इलाज की आखिरी उम्मीद है भारत?
भारत, पाकिस्तानी मरीज़ों के लिए सस्ते और बेहतरीन इलाज की अंतिम आशा रहा है. लेकिन हालिया आतंकी हमलों और बढ़ते तनाव के चलते मेडिकल वीज़ा अब दुर्लभ हो गए हैं. जिन मरीज़ों की ज़िंदगी भारतीय डॉक्टरों के भरोसे थी, अब उन्हें महंगे देशों की ओर देखना पड़ रहा है. यह केवल वीज़ा नहीं, मानवता के एक बड़े संकट का संकेत है, जहाँ सरहदें ज़िंदगी से बड़ी हो गई हैं.

भारत, पाकिस्तानियों के लिए सस्ते और गुणवत्तापूर्ण इलाज की आखिरी उम्मीद बनता रहा है. पाकिस्तान में स्वास्थ्य सेवाओं की सीमित उपलब्धता, उच्च लागत और आधुनिक सुविधाओं की कमी के कारण, कई मरीज बेहतर इलाज के लिए भारत का रुख करते हैं.
पाकिस्तान के आम लोगों के लिए भारत सिर्फ़ एक 'दुश्मन देश' नहीं रहा, यह उन हज़ारों मरीज़ों के लिए एक आखिरी उम्मीद भी रहा है, जिनके पास जीवन रक्षक इलाज के लिए अमेरिका, ब्रिटेन या खाड़ी देशों जैसी महंगी जगहों में जाने की क्षमता नहीं थी. लेकिन अब, पहलगाम आतंकी हमले के बाद जो हालात बने हैं, वो इन मरीज़ों की आखिरी उम्मीद भी छीन सकते हैं.
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तनाव बढ़ा तो कम होते गए वीजा
2016 में भारत ने 1,678 पाकिस्तानी मरीज़ों को मेडिकल वीज़ा दिया था. पर 2017 में कुलभूषण जाधव विवाद के बाद यह आंकड़ा तेजी से गिरा. 2019 के पुलवामा हमले और अब 2024 के पहलगाम आतंकी हमले के बाद यह रिश्ता और ज़्यादा बिगड़ चुका है. 2019 से 2024 तक मात्र 1,228 पाकिस्तानी नागरिकों को मेडिकल वीज़ा मिल सका.
साल-दर-साल आंकड़े देखें
- 2019 – 554 वीज़ा
- 2020 – 97 वीज़ा
- 2021 – 96 वीज़ा
- 2022 – 145 वीज़ा
- 2023 – 111 वीज़ा
- 2024 – 225 वीज़ा
और अब विदेश मंत्रालय ने 29 अप्रैल 2025 तक की सीमा तय कर दी है, उसके बाद वीज़ा की वैधता और भी अनिश्चित हो गई है.
अमेरिका-यूरोप बहुत महंगे, भारत ही एकमात्र सहारा
पाकिस्तान के अधिकतर मरीज़ लीवर ट्रांसप्लांट, कैंसर सर्जरी, हृदय रोग, और जन्मजात विकारों के इलाज के लिए भारत आते थे. भारत में यही इलाज अमेरिका या यूरोप के मुकाबले 80-90% तक सस्ता होता है.
कुछ इलाज जो भारत में हैं कहीं ज्यादा सस्ते
- लीवर ट्रांसप्लांट अमेरिका में 2 से 3 करोड़ रुपये, भारत में वही सर्जरी 20 से 30 लाख रुपये में उपलब्ध है
- हार्ट बायपास सर्जरी अमेरिका में 35-40 लाख रुपये की होती है वहीं भारत में यह 2.5 से 4 लाख रुपये में होती है
पाकिस्तान में इन सुविधाओं की भारी कमी है, और जो हैं भी, वो या तो बेहद महंगी हैं या सीमित.
अब शायद ‘कोई नहीं आएगा’: अस्पताल
टाइम्स ऑफ इंडिया से बात करते हुए मेदांता के लीवर ट्रांसप्लांट प्रमुख डॉ. अर्विंदर सोइन कहते हैं, “8-9 साल पहले हर महीने कई पाकिस्तानी मरीज़ आते थे, लेकिन अब तो बीते एक साल में केवल दो ही ट्रांसप्लांट हुए हैं, वो भी सात महीने पहले.” इंद्रप्रस्थ अपोलो अस्पताल ने भी पुष्टि की कि फिलहाल उनके यहां कोई पाकिस्तानी मरीज़ इलाज में नहीं है. फोर्टिस हेल्थकेयर ने भी बताया कि अब सिर्फ़ पाकिस्तानी दूतावास के कुछ अधिकारी ही सामान्य चेकअप के लिए आते हैं.
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क्या यह मेडिकल ह्यूमैनिटी का अंत है?
विशेषज्ञ मानते हैं कि भारत-पाक रिश्तों में चाहे जितना तनाव हो, स्वास्थ्य को राजनीति से ऊपर रखा जाना चाहिए. मगर हर बार जब कोई बड़ा आतंकी हमला होता है, वह सबसे पहले इलाज के मोर्चे पर असर डालता है. मेडिकल ट्रैवल असिस्टेंस कंपनियों का कहना है, “पहले हर हफ्ते पाकिस्तानी मरीज़ भारत आते थे, अब हम पूरे साल में 3-4 नाम ही दर्ज कर पाते हैं. पहलगाम हमले के बाद ये दरवाज़ा पूरी तरह बंद हो सकता है.
जिन्हें जिंदा रहना है, वे अब कहां जाएं?
एक गंभीर सवाल अब हमारे सामने खड़ा है, क्या बीमारियों को भी अब सरहदें रोकेंगी? भारत के अस्पताल जिनकी तकनीक और सेवाएं वर्ल्ड क्लास हैं, उन तक अब पाकिस्तान के आम मरीज़ शायद कभी न पहुंच सकें. जिनकी ज़िंदगी भारत के डाक्टरों पर टिकी थी, वे अब या तो तिल-तिल मरेंगे, या कर्ज़ लेकर किसी तीसरे देश का रुख़ करेंगे, जहां इलाज तो मिलेगा, मगर शायद तब तक बहुत देर हो चुकी होगी. ये सिर्फ़ मेडिकल वीज़ा का संकट नहीं है, यह मानवता की एक बड़ी हार है.