मुस्लिमों को सौंप देना चाहिए राम जन्मभूमि, मथुरा और ज्ञानवापी, हिंदू न करें नई मांग; पूर्व ASI अधिकारी के.के. मुहम्मद से बयान से बवाल
पूर्व एएसआई अधिकारी के.के. मुहम्मद ने मंदिर–मस्जिद विवादों पर बड़ा बयान देते हुए कहा कि मुसलमानों को राम जन्मभूमि, मथुरा और ज्ञानवापी ये तीन स्थान स्वेच्छा से हिंदुओं को सौंप देने चाहिए, जबकि हिंदू समाज को इसके बाद किसी नए स्थल की मांग नहीं करनी चाहिए. उन्होंने दावा किया कि विवादों को बढ़ाने से सिर्फ तनाव फैलेगा और समाधान असंभव हो जाएगा. अयोध्या खुदाई, ताजमहल विवाद और ASI की कार्यशैली पर भी उन्होंने तीखी टिप्पणी की है.
भारत में मंदिर-मस्जिद विवादों पर बहस जितनी तेज हो रही है, उतनी ही तेज इसके सामाजिक और राजनीतिक प्रभावों पर भी चिंतन बढ़ रहा है. ऐसे समय में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) के पूर्व शीर्ष अधिकारी KK मुहम्मद का बयान नई बहस को जन्म दे रहा है. मुहम्मद, जिन्होंने अयोध्या विवाद के दौरान 70 के दशक की खुदाई टीम में प्रत्यक्ष भूमिका निभाई थी, कहते हैं कि देश का भविष्य लगातार धार्मिक विवादों की आग में नहीं झोंका जा सकता. उनका कहना है कि “तीन स्थानों” राम जन्मभूमि, मथुरा और ज्ञानवापी के अलावा हिंदू समाज को किसी नई मांग को लेकर सड़क या अदालत में नहीं जाना चाहिए.
इसके उलट, वे मुसलमानों से भी अपील करते हैं कि उन्हें इन स्थलों को “स्वेच्छा से सौंप देना चाहिए” ताकि सौहार्द की राह खुल सके और आने वाली पीढ़ियां इस टकराव के बोझ से मुक्त हो सकें. मुहम्मद का दावा है कि इतिहास और पुरातत्व के तथ्य इन स्थानों पर पहले मंदिर होने का संकेत देते हैं लेकिन उनका यह तर्क जितना पुरातात्विक है, उतना ही राजनीतिक भी बनता जा रहा है. उनके बयान ने हिंदू–मुस्लिम समुदायों, इतिहासकारों और राजनीतिक विश्लेषकों में हलचल पैदा कर दी है.
तीन जगहें ही विवाद का केंद्र बने: KK मुहम्मद
पूर्व ASI अधिकारी KK मुहम्मद कहते हैं कि मंदिर-मस्जिद विवाद की सीमा को बढ़ाते जाने से सिर्फ “अराजकता” बढ़ेगी. उनकी राय में हिंदुओं के लिए राम जन्मभूमि, कृष्ण जन्मभूमि (मथुरा) और काशी के ज्ञानवापी का महत्व उतना ही है जितना मुसलमानों के लिए मक्का–मदीना का. इसलिए मुसलमान यदि 'स्वेच्छा से' ये तीन स्थल छोड़ दें तो भारत में शांति का नया अध्याय शुरू हो सकता है.
हिंदू समाज नई मांगें न करे
मुहम्मद ने हिंदू समुदाय को भी नसीहत दी कि इन तीन स्थानों के अलावा किसी अन्य स्थल को विवाद का मुद्दा नहीं बनाना चाहिए. उनके अनुसार, “मंदिरों की लंबी सूची निकालकर दावा करने से तनाव और बढ़ेगा, समाधान नहीं मिलेगा.” उन्होंने कहा कि इस तरह की पुरानी विवाद सूची भविष्य में देश को सांप्रदायिक खाई में धकेल देगी.
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प्रोपेगेंडा ने ज्यादा नुकसान किया
मुहम्मद का दावा है कि 1976 की खुदाई के दौरान मंदिर होने के सबूत मिले थे, लेकिन एक “कम्युनिस्ट इतिहासकार” ने मुसलमानों को यह यकीन दिलाया कि मंदिर के अस्तित्व का कोई तथ्यात्मक प्रमाण नहीं है. उनका कहना है कि यह विवाद "वैज्ञानिक अध्ययन" से अधिक “राजनीतिक प्रचार” के कारण भड़का.
पहले मुस्लिम समाज समाधान चाहता था
दिलचस्प रूप से मुहम्मद कहते हैं कि शुरुआत में मुस्लिम समाज के बड़े हिस्से ने अयोध्या मुद्दे पर समझौता करने की इच्छा जताई थी, लेकिन राजनीतिक प्रभाव और गलत सूचनाओं ने इस माहौल को बिगाड़ दिया. उनका दावा है कि मुसलमान वास्तव में शांति में अधिक दिलचस्पी रखते थे, न कि विवाद में.
इतिहासकारों ने साइट देखे बिना राय दी
मुहम्मद ने उस इतिहासकार पर निशाना साधते हुए कहा कि उसने खुदाई स्थल को ना कभी देखा और ना ही खुदाई की किसी वास्तविक रिपोर्ट से परिचित हुआ, फिर भी उसने पूरे विवाद को “झूठी कहानी” बनाकर प्रचारित किया. इस बात ने विवाद को दस गुना बढ़ा दिया.
ताजमहल के दावे 'झूठा'
कुछ समूहों द्वारा ताजमहल को “तेजो महालय” बताने के दावों पर मुहम्मद ने कहा कि यह “पूरी तरह मनगढ़ंत” है. वे बताते हैं कि मुगल काल में यह भूमि जय सिंह के पास थी, और शाहजहां को यह जमीन आधिकारिक रूप से ट्रांसफर की गई थी. इसके दस्तावेज आज भी जयपुर और बीकानेर के संग्रहालयों में मौजूद हैं.
ASI का यह 11 साल का दौर अंधकार युग
KK मुहम्मद ने यह भी कहा कि प्रधानमंत्री मोदी के शासनकाल में ASI से “बहुत उम्मीदें” थीं, लेकिन वे पूरी नहीं हुईं. उन्होंने इसे “ASI का डार्क एज” कहा और दावा किया कि पुरातात्विक संरक्षण का ग्राफ गिरा है. उदाहरण के तौर पर उन्होंने बताया कि चंबल के बटेश्वर मंदिर समूह में पिछले 11 साल में सिर्फ 10 मंदिर पुनर्निर्मित हुए.
रिटायरमेंट के बाद याद आई परेशानियां: ASI DG
ASI के वर्तमान महानिदेशक यदुवीर सिंह रावत ने मुहम्मद के आरोपों को खारिज कर दिया. उन्होंने कहा कि ASI “राजनीति से परे” काम करता है और इतनी बड़ी संख्या में स्मारक होने के बावजूद भारी बजट और क्षमता के साथ निरंतर संरक्षण कार्य किया जा रहा है. उन्होंने व्यंग्य में कहा, “अगर इतनी समस्या थी तो नौकरी के समय क्यों नहीं बोला?”
संयम और समझौते से बढ़ेगा देश
मुहम्मद का समग्र संदेश यही है कि हिंदू–मुस्लिम विवादों का समाधान “दावे बढ़ाने” में नहीं, बल्कि आपसी समझ और सीमित समाधान में है. वे कहते हैं कि तीन स्थलों तक विवाद सीमित हो और मुसलमान यदि इन्हें सम्मानपूर्वक सौंप दें, तो हिंदुओं को भी भविष्य में किसी नई मांग से बचना चाहिए.
मंदिर–मस्जिद विवाद पर बहस
मुहम्मद के बयान ने देश के सांप्रदायिक, राजनीतिक और ऐतिहासिक विमर्श को फिर से गर्मा दिया है. एक ओर उनके वक्तव्य को कुछ लोग रास्ता दिखाने वाला मान रहे हैं, तो दूसरी ओर इसे “इकतरफा सलाह” कहकर खारिज किया जा रहा है. पर इतना तय है कि मंदिर–मस्जिद विवाद पर यह बयान बहस को अगले चरण में ले गया है.





