क्या है अल अक्सा मस्जिद विवाद? इजरायल के मंत्री ने इस्लाम के तीसरे बड़े धार्मिक स्थल में प्रार्थना कर बढ़ाया तनाव
इज़रायली मंत्री इतामार बेन‑गवीर के अल-अक्सा परिसर में पूजा करने ने इस्लामिक दुनिया में धार्मिक आक्रोश भड़का दिया. इस साइट को decades‑old स्टेटस‑को के तहत संरक्षित माना जाता था. यह मस्जिद इस्लाम का तीसरा पवित्र स्थल है और यरूशलम के पुराने शहर में स्थित है. 1967 के युद्ध के बाद से यह टकराव का केंद्र रहा है.

पश्चिम एशिया में लंबे अर्से से तनाव अपने चरम पर है. इजरायल के कट्टर दक्षिणपंथी राष्ट्रीय सुरक्षा मंत्री इतामार बेन-गवीर (Itamar Ben Gvir) के अल-अक्सा मस्जिद (Al-Aqsa Mosque) परिसर में दौरे ने न सिर्फ फिलिस्तीन, बल्कि जॉर्डन, सऊदी अरब और तुर्की जैसे देशों में भी भारी आक्रोश पैदा किया है. यह दौरा ऐसे समय हुआ जब इजरायल और गाज़ा के बीच संघर्ष पहले से ही बेहद संवेदनशील मोड़ पर है.
रविवार को बेन-गवीर ने यहूदी श्रद्धालुओं के एक समूह के साथ ‘टेम्पल माउंट’ (Temple Mount) के शीर्ष पर प्रार्थना की और परिसर में मौजूद अल-अक्सा मस्जिद के नजदीक अपनी उपस्थिति दर्ज कराई. उनका यह कदम एक दशक पुराने स्टेटस-को (यथास्थिति) का उल्लंघन माना गया, जिसके तहत गैर-मुस्लिमों को परिसर में प्रार्थना की अनुमति नहीं है.
बेन-गवीर ने यहां से न सिर्फ इजरायल के गाजा पर 'कब्ज़े' की बात की, बल्कि फिलिस्तीनियों को क्षेत्र छोड़ने के लिए ‘प्रोत्साहित’ करने की भी बात कह डाली. उनका यह बयान और दौरा मुस्लिम दुनिया में एक “लाल रेखा” पार करने जैसा देखा जा रहा है, जिसने फिर से इजरायल-फिलिस्तीन विवाद को उबाल पर ला दिया है. लेकिन इस विवाद के बीच अल-अक्सा मस्जिद एक बार फिर चर्चा के केंद्र में है. इस खबर में हम आपको इस मस्जिद के बारे में बताने जा रहे हैं.
अल-अक्सा मस्जिद का धार्मिक महत्व
अल-अक्सा इस्लाम का तीसरा सबसे पवित्र स्थल है, जिसे "मस्जिद अल-क़िबली" भी कहा जाता है. मक्का और मदीना के बाद यही वह स्थल है जहां से पैगंबर मोहम्मद ने 'मिराज' (स्वर्ग की यात्रा) की थी. यह जगह मुस्लिम दुनिया में अत्यंत श्रद्धा का केंद्र है.
टेम्पल माउंट का यहूदी महत्व
यहूदियों के अनुसार, यही वह स्थल है जहां 3,000 साल पहले राजा सोलोमन ने पहला यहूदी मंदिर बनवाया था. यह जगह उनके धर्मग्रंथों में विशेष स्थान रखती है. वर्तमान में इस स्थान के नीचे वेस्टर्न वॉल (Western Wall) स्थित है, जो यहूदियों की सबसे पवित्र स्थल मानी जाती है.
1967 के बाद का भू-राजनीतिक घटनाक्रम
1967 की छह दिवसीय युद्ध के दौरान, इज़राइल ने पूर्वी यरुशलम के उस हिस्से पर कब्ज़ा कर लिया था जिसमें 14 हेक्टेयर (35 एकड़) का चौकोर मस्जिद परिसर भी शामिल है. इस क्षेत्र को बाद में इज़राइल ने एकतरफा ढंग से अपने देश में मिला लिया, लेकिन अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने इस अधिग्रहण को आज तक मान्यता नहीं दी है.
फिलिस्तीनी क्या चाहते हैं?
फिलिस्तीन इस पूर्वी यरुशलम क्षेत्र को, जिसमें पुराना शहर (Old City) और इसके पवित्र स्थल आते हैं, अपने भावी राष्ट्र की राजधानी बनाना चाहता है. वहीं, इज़राइल पूरे यरुशलम को अपनी अविभाज्य राजधानी मानता है.
इस परिसर का धार्मिक महत्व
इस परिसर को मुसलमान अल-हरम अल-शरीफ (पवित्र तीर्थ) के नाम से जानते हैं. इसमें अल-अक़्सा मस्जिद और प्रसिद्ध स्वर्ण-गुंबद वाला डोम ऑफ़ द रॉक शामिल है. यह इस्लाम का तीसरा सबसे पवित्र स्थल है, मक्का की मस्जिद अल-हराम और मदीना की मस्जिद-ए-नबवी के बाद. ऐसा माना जाता है कि यहीं से पैगंबर मोहम्मद साहब एक पंखों वाले घोड़े पर स्वर्ग की यात्रा पर गए थे.
इतिहास और यहूदी संबंध
इस्लाम के दूसरे खलीफा उमर ने 7वीं सदी में इस स्थल पर वर्तमान रूप में मस्जिद की नींव रखी थी. यह वही स्थान है जहां यहूदियों का दूसरा मंदिर (Second Jewish Temple) था जिसे 70 ईस्वी में रोमनों ने नष्ट कर दिया था. यहूदी श्रद्धालु वेस्टर्न वॉल (दीवार-ए-बुर्राक) पर प्रार्थना करने आते हैं, जो उसी दूसरे मंदिर की बची हुई दीवार मानी जाती है. हिब्रू में इस पूरे परिसर को हर हा-बायित या टेम्पल माउंट कहा जाता है.
प्रवेश और नियंत्रण व्यवस्था
एक दशकों पुराने स्टेटस-क्वो (यथास्थिति समझौते) के तहत जॉर्डन इस मस्जिद परिसर का प्रशासन फिलिस्तीनियों के साथ मिलकर करता है, लेकिन इसकी सुरक्षा और नियंत्रण इज़राइली सुरक्षा बलों के हाथ में है. मुसलमानों को किसी भी समय मस्जिद परिसर में प्रवेश की अनुमति होती है, लेकिन गैर-मुस्लिमों को केवल कुछ तय समयों में ही आने की इजाजत मिलती है, और वे वहां प्रार्थना नहीं कर सकते. हाल के वर्षों में तनाव के दौरान इज़राइली पुलिस ने अक्सर मुस्लिमों की एंट्री पर पाबंदी लगाई है, जबकि यहूदी आगंतुकों की संख्या बढ़ी है. कुछ अतिराष्ट्रवादी यहूदियों को इस परिसर में छुपकर प्रार्थना करते हुए भी पकड़ा गया है, जिससे मुस्लिम उपासकों के साथ टकराव की स्थिति बन जाती है.
क्यों है यह मस्जिद विवाद का केंद्र?
हर बार जब कोई यहूदी अधिकारी या कट्टरपंथी समूह इस स्थल पर प्रवेश करता है, तो इसे फिलिस्तीनी अधिकारों का हनन माना जाता है. यही कारण है कि यह स्थल बार-बार हिंसा और टकराव का केंद्र बनता है. 2021 और 2023 में हुए संघर्ष भी अल-अक्सा से ही शुरू हुए थे. यह पहली बार नहीं है जब कोई इजरायली नेता टेम्पल माउंट या अल-अक्सा में गया हो. 2000 में एरियल शेरोन के दौरे ने दूसरा इंतिफादा भड़का दिया था जिसमें हजारों लोग मारे गए. बेन-गवीर का यह दौरा उसी तरह की संवेदनशीलता और हिंसा की आशंका को जन्म दे चुका है. अमेरिका ने इस दौरे पर चिंता जताई है और कहा है कि यथास्थिति को बनाए रखना जरूरी है. यूरोपीय संघ और संयुक्त राष्ट्र ने भी संयम बरतने की अपील की है. लेकिन इजरायल की अंदरूनी राजनीति में बेन-गवीर जैसे नेताओं का प्रभाव लगातार बढ़ रहा है, जो तनाव को और बढ़ावा देता है.