पहले कागज़ दिखाइए... NHAI की जमीन पर मस्जिद-मदरसा बनाकर किया कब्जा, हाईकोर्ट ने क्या सुनाया फैसला?
सहारनपुर में एनएचएआई की जमीन पर मदरसा और मस्जिद बनाकर वक्फ के नाम पर कब्जा किया गया. कोर्ट ने वक्फ बोर्ड से कोई पंजीकरण नहीं मिलने पर याचिका खारिज कर फर्जीवाड़ा बताया. जमीन केंद्र की है और अवैध कब्जे को हटाने का आदेश दिया गया है. यह मामला प्रशासन के लिए चेतावनी साबित हुआ है.

यूपी के सहारनपुर में हाईवे परियोजना के लिए आरक्षित एनएचएआई की सरकारी भूमि पर कुछ लोगों ने वक्फ का नाम लेकर मदरसा, मस्जिद और दुकानों का ढांचा खड़ा कर दिया. जमीन आधिकारिक नक्शों में केंद्र के खाते में थी, मगर मौके पर बोर्ड लगा दिया गया कि यह ‘क़ासिम उल उलूम वक्फ’ की संपत्ति है. दुकानों का किराया वसूला जाने लगा और महीने-दर-महीने मोटी कमाई जेब में जाती रही.
कब्ज़ाधारकों ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में अर्ज़ी डाली कि प्रशासन बुलडोज़र चलाने जा रहा है, उसे रोका जाए. दलील दी गई कि जगह पर पहले से मदरसा, मस्जिद और एक पुलिस चौकी है, इसलिए ढांचों को गिराना धार्मिक भावनाओं को आहत करेगा. याचिका में दावा किया गया कि पूरी जमीन वक्फ कार्यों के लिए वक्फ बोर्ड के तहत पंजीकृत है.
दस्तावेज़ कहां हैं?
न्यायमूर्ति रोहित रंजन अग्रवाल ने सबसे पहले पंजीकरण प्रमाणपत्र मांग लिया. याचिकाकर्ता कोई कागज़ नहीं दिखा सका. न वक्फ अधिनियम-1995 के तहत रजिस्ट्रेशन, न ही दाखिल-खारिज का रिकॉर्ड. कोर्ट ने कहा कि खाली ज़ुबानी दावा जमीन के मालिकाना हक़ का सबूत नहीं बन सकता. बिना दस्तावेज के किसी भी धार्मिक चिह्न से सरकारी ज़मीन निजी नहीं हो जाती.
निचली अदालत से लेकर हाईकोर्ट तक हार की हैट-ट्रिक
इस प्रकरण में पहले सिविल कोर्ट ने कब्ज़ाधारकों की दलीलों को खारिज किया. उन्होंने पुनरीक्षण याचिका दायर की, वह भी रद्द हुई. आख़िरी आस हाईकोर्ट थी, लेकिन वहां भी नतीजा वही रहा. 12 मई के आदेश में कोर्ट ने साफ लिखा कि भूमि एनएचएआई की है, कब्ज़ा अवैध है और याचिका ‘कानूनी दमखम शून्य’ है. फैसला 30 मई को सार्वजनिक हुआ.
धार्मिक बोर्ड से सरकारी जमीन निजी नहीं होती
कोर्ट ने टिप्पणी की कि यह मामला बताता है कैसे कुछ लोग ‘वक्फ’ शब्द की आड़ में सरकारी संपत्ति हथियाने की कोशिश करते हैं. प्रशासन अब कब्ज़ा हटाकर हाईवे कार्य तेज करेगा और अवैध आय का हिसाब भी निकालेगा. संदेश साफ है कि दस्तावेजों के बिना कोई दावा टिकेगा नहीं, चाहे वह धार्मिक आवरण में क्यों न पेश किया जाए.