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छुट्टियों से लौटते ही प्रेग्नेंसी टेस्ट? आदिवासी छात्राओं के आरोप को विभाग ने बताया गलत, सच क्या है?

पुणे में आदिवासी छात्राओं के हॉस्टलों में छुट्टियों से लौटने पर प्रेग्नेंसी टेस्ट करने के आरोपों पर आदिवासी विकास विभाग ने साफ इनकार किया है. विभाग का कहना है कि ऐसी कोई नीति या निर्देश नहीं है और सोशल मीडिया पर चल रही बातें भ्रामक हैं. दूसरी तरफ छात्राओं का कहना है कि ऐसा होता है. यह अपमानजनक स्थिति है. जानें सच क्या है?

छुट्टियों से लौटते ही प्रेग्नेंसी टेस्ट? आदिवासी छात्राओं के आरोप को विभाग ने बताया गलत, सच क्या है?
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महाराष्ट्र के पुणे जिले में आदिवासी कल्याण के मकसद से छात्राओं के कई हॉस्टल हैं. इन्हीं हॉस्टल में से एक को लेकर सनसनीखेज और अपमानजनक खबर सामने आई है. खबर यह है कि आदिवासी छात्राओं के अधिकार और गरिमा से जुड़े गंभीर आरोप ने हाल के दिनों में बहस तेज कर दी है. बीबीसी मराठी की एक रिपोर्ट के मुताबिक आदिवासी विभाग के एक हॉस्टल की छात्राओं का दावा है कि छुट्टियों के बाद हॉस्टलों में लौटने पर उनका प्रेग्नेंसी टेस्ट (UPT) कराया जाता है. हालांकि, इस पर आदिवासी विकास विभाग ने कड़ा रुख अपनाते हुए इन आरोपों को पूरी तरह गलत और आधारहीन बताया है.

आरोप सही, विभागीय दावे गलत

पुणे के आदिवासी हॉस्टल की कई छात्राओं का हवाला देते हुए बताया है कि छुट्टियों से लौटने पर, हॉस्टल में प्रवेश से पहले यूरिन प्रेग्नेंसी टेस्ट (यूपीटी) कराया जाता है. जबकि सरकारी नियमों में ऐसी कोई शर्त नहीं है. इस मसले पर महाराष्ट्र की आदिवासी विकास आयुक्त लीना बंसोड़ ने कहना है कि ऐसा कोई टेस्ट नहीं करवाया जाना चाहिए, लेकिन प्रशासनिक दावों के बावजूद छात्राएं कहती हैं कि परीक्षण रोकने के निर्देश के बाद भी प्रक्रिया जारी है.

टेस्ट न कराने पर मिलती है ये धमकी

महाराष्ट्र के आदिवासी विकास विभाग की ओर से चल रहे सरकारी हॉस्टल में रहने वाली कॉलेज की एक छात्रा ने बीबीसी न्यूज मराठी को बताया, "हमें टेस्ट क्यों करवाना पड़ता है? जब से मैं फर्स्ट ईयर में आई हूं. मैडम कहती हैं कि अगर हम टेस्ट नहीं कराएंगे, तो हमें यहां हॉस्टल में रहने नहीं दिया जाएगा." इस हॉस्टल की कई अन्य छात्राओं ने भी यही आरोप दोहराया.

बिना टेस्ट नहीं देते फिटनेस सर्टिफिकेट

एक अन्य ने कहा, "हमारी शिकायत ये है कि सात-आठ दिन की छुट्टी से आने के बाद हमें यूपीटी टेस्ट देना पड़ता है. इसे बंद किया जाना चाहिए." उनके साथ मौजूद एक अन्य छात्रा ने कहा, "यूपीटी टेस्ट तब होता है जब लड़कियां घर में छुट्टियां बिताकर लौटती हैं. मुझे हॉस्टल में ही इसके बारे में बताया गया था." वह आगे कहती हैं, "वे यूपीटी टेस्ट किए बिना फिटनेस सर्टिफिकेट नहीं देते. इसकी एक प्रक्रिया है. वे प्रक्रिया का पालन करके ही सर्टिफिकेट देते हैं."

क्या है प्रक्रिया?

एक छात्रा ने बताया, "हमें एक प्रेग्नेंसी किट लेनी होती है. उससे टेस्ट करवाना होता है. अगर टेस्ट नेगेटिव आता है, तभी हॉस्टल में रहने की अनुमति मिलती है."

यूपीटी शर्मनाक

प्रेग्नेंसी किट मिलने के बाद सरकारी अस्पताल जाना होता है. अस्पताल में उस पर लिख देते हैं कि मुझे यूपीटी करवाना है. वहां से आपको दूसरे डॉक्टर के पास जाना होता है. आपको शौचालय से पेशाब लेकर उनके सामने किट में डालना होता है. अगर रिपोर्ट नेगेटिव आती है, तो वे उसे लिख लेते हैं. फिर हमें मैडम के हस्ताक्षर और मुहर के साथ फॉर्म कॉलेज में जमा करवाना होता है." छात्राओं ने इस सारी प्रक्रिया को बेहद 'शर्मनाक' बताया है.

टेस्ट मैंडेटरी

अगर छात्राएं यूपीटी टेस्ट न करें और बाकी टेस्ट करके मेडिकल पूरा कर लें, तो क्या होगा? इसके जवाब में एक अन्य छात्रा ने कहा, "वे कहते हैं कि यूपीटी टेस्ट अनिवार्य है. अगर आप ऐसा नहीं करेंगी, तो वे आपको छात्रावास में प्रवेश नहीं करने देते." छात्राओं का कहना है कि,"हमने यह मुद्दा उठाया है. लेकिन अभी तक इसका समाधान नहीं हुआ है."

इसका असर न केवल लड़कियों की पढ़ाई पर पड़ रहा है, बल्कि वे मानसिक तनाव से भी गुजर रही हैं. वह आगे कहती हैं, "यूपीटी टेस्ट बंद होना चाहिए. लोग हमें शक की निगाहों से देखते हैं. लोगों को लगता है कि 'जब हम शादीशुदा नहीं हैं, तो यह टेस्ट क्यों करवा रहे हैं?'

महाराष्ट्र महिला आयोग ने कहा है कि उसने नोटिस जारी कर दिया है कि संबंधित विभाग के खिलाफ कार्रवाई की जाए. पुणे जिले के एक आश्रम स्कूल से भी यही शिकायत मिली है.

आदिवासी विभाग चलाता है 552 स्कूल

बता दें कि महाराष्ट्र के पहाड़ी और दूरदराज इलाकों में रहने वाले लोगों की सामाजिक और शैक्षिक प्रगति के लिए आश्रम स्कूल चलाए जाते हैं. महाराष्ट्र का आदिवासी विकास विभाग 552 सरकारी आश्रम स्कूल चलाता है. इनमें से 412 सरकारी आश्रम स्कूल आदिवासी उप-योजना क्षेत्र में और 140 आदिवासी उप-योजना क्षेत्र से बाहर हैं.

सिर्फ मासिक धर्म वालों के लिए टेस्ट जरूरी

आदिवासी विभाग के आश्रम स्कूल में पढ़ने वाली एक छात्रा की मां ने बताया, "सिर्फ मासिक धर्म वाली लड़कियों को ही मेडिकल करवाना पड़ता है. मेडिकल में किट का इस्तेमाल होता है. किट के जरिए पेशाब की जांच होती है. फिर अगर वह पॉजिटिव है या नेगेटिव, तो फॉर्म पर वे उसी हिसाब से लिख देते हैं."

माँ ने बताया, "कुछ सरकारी जिम्मेदारी भी होनी चाहिए. हर लड़की को ये टेस्ट करवाने के लिए 150-200 रुपये का खर्च करने पड़ते हैं. हर बार माता-पिता को इसका खर्च उठाना पड़ता है."

इस बारे में एक डॉक्टर ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, "आश्रम स्कूल के निर्देशानुसार, वे यूपीटी परीक्षण किट लाती हैं. हमारे पास भी यूरिन प्रेग्नेंसी टेस्ट के लिए किट उपलब्ध हैं. यह हमारे रजिस्टर में भी दर्ज हैं और आश्रम स्कूल के फॉर्म पर भी इसका उल्लेख है. इस आश्रम स्कूल में 12वीं कक्षा तक की लड़कियां हैं."

टेस्ट के समय कौन होता है?

जब उनसे पूछा गया कि गर्भावस्था परीक्षण के दौरान छात्राओं के साथ कौन होता है, तो उन्होंने कहा, "कभी-कभी माता-पिता होते हैं. कभी-कभी दादा-दादी होते हैं. कई बार लड़कियां अकेली आती हैं."

यूपीटी टेस्ट रोकने की मांग

छात्र संगठन 'स्टूडेंट फेडरेशन ऑफ इंडिया' ने इस टेस्ट को रोकने की मांग की है और प्रशासन को एक बयान भी सौंपा है. एसएफआई की पुणे जिला अध्यक्ष संस्कृति गोडे ने कहा, "जब हम यूपीटी टेस्ट के लिए जाते हैं, तो हमें वहां लोगों का सामना करना पड़ता है. वहां के डॉक्टर भी इसे जिस तरह से देखते हैं, वह मानसिक यातना है."

वो कहती हैं, "हमने बार-बार इस बात का विरोध किया है. लड़कियों का यूपीटी टेस्ट करवाना उन्हें मानसिक यातना देने जैसा है. हमारी मांग है कि यूपीटी टेस्ट फौरन बंद किया जाए."

यह मसला चौंकाने वाला

इसी साल सितंबर में पुणे के एक हॉस्टल में गर्भावस्था परीक्षण किए जाने की बात सामने आई थी. राज्य महिला आयोग ने इस पर संज्ञान लिया और उसे रोकने का निर्देश दिया. महिला आयोग की अध्यक्ष रूपाली चाकनकर ने कहा, "मुझे एक ट्वीट के जरिए शिकायत मिली थी. आदिवासी लड़कियों के लिए एक सरकारी छात्रावास है, जहां यूपीटी टेस्ट कराया जाता है."

रुपाली कहती हैं, "यह मेरे लिए बहुत चौंकाने वाला था. मैंने बिना कोई जानकारी दिए वाकड स्थित हॉस्टल का अचानक दौरा किया. लड़कियों को एक तरफ़ ले जाकर उनसे बात करने पर पता चला कि कुछ लड़कियों को यूपीटी टेस्ट देना पड़ा था."

किसी सर्कुलर में कानून में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है. ऐसा कोई नियम नहीं है कि एडमिशन के समय यह टेस्ट लिया जाए. हमने नोटिस जारी कर दिया है कि संबंधित विभाग के खिलाफ कार्रवाई की जाए."

आदिवासी विभाग का बयान

आदिवासी विकास आयुक्त ने कहा है कि विभाग ने स्पष्ट कर दिया है कि ऐसा कोई परीक्षण नहीं किया जाना चाहिए. आदिवासी विकास आयुक्तालय ने 30 सितंबर को इस संबंध में एक पत्र जारी किया. निर्देश दिया गया कि सरकारी छात्रावासों में स्वास्थ्य जांच के दौरान लड़कियों पर गर्भावस्था परीक्षण के लिए दबाव नहीं डाला जाना चाहिए.

इस बारे में आदिवासी विकास आयुक्त लीना बंसोड़ ने कहा, "आदिवासी विकास विभाग ने स्पष्ट कर दिया है कि ऐसा कोई परीक्षण नहीं किया जाना चाहिए. कहीं भी ऐसी कोई बाध्यता नहीं है. "

पुणे ज़िला सिविल सर्जन डॉक्टर नागनाथ येमपल्ले ने कहा, "यूपीटी टेस्ट चार महीने पहले से बंद कर दिया गया है. पहले, जब लड़कियां घर से हॉस्टल लौटती थीं तो उनसे यह टेस्ट कराने को कहा जाता था."

क्या हैं नियम?

सरकारी नियमों के अनुसार हॉस्टल में रहने वाली लड़कियों के लिए प्रेग्नेंसी टेस्ट कराना जरूरी नहीं है. संबंधित अधिकारियों ने भी यह साफ कर दिया है.

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