कर्नाटक में बदल जाएगा सीएम! डीके शिवकुमार पर फिर जोर, कांग्रेस विधायक बोले- 200% यकीन है, वे ही बनेंगे मुख्यमंत्री
कर्नाटक में नेतृत्व परिवर्तन की चर्चा तेज है. रामनगर के विधायक इकबाल हुसैन ने दावा किया कि डीके शिवकुमार बहुत जल्द मुख्यमंत्री बनेंगे और यह बदलाव पार्टी की पूर्व सहमति के तहत तय है. सिद्धारमैया सरकार का आधा कार्यकाल पूरा होते ही विधायकों ने दिल्ली में हाईकमान से मुलाकात कर अपनी राय रखी. खरगे, सोनिया और राहुल गांधी से होने वाली संयुक्त बैठक को निर्णायक माना जा रहा है. शिवकुमार कैंप का दबाव बढ़ रहा है, जबकि सिद्धारमैया समर्थन का दावा कर रहे हैं.
कर्नाटक में सत्ता को लेकर चल रही खींचतान अब खुलकर सतह पर आ गई है. सिद्धारमैया सरकार ने जैसे ही आधा कार्यकाल पूरा किया, प्रदेश में नेतृत्व परिवर्तन की अटकलें फिर तेज हो गईं. कांग्रेस के भीतर दो शक्तिशाली धड़ों मुख्यमंत्री सिद्धारमैया और राज्य अध्यक्ष-डिप्टी सीएम डीके शिवकुमार के बीच खींचतान ने राज्य की राजनीति में एक नया तूफ़ान खड़ा कर दिया है. अब पार्टी के विधायक भी खुलकर दावा कर रहे हैं कि सत्ता परिवर्तन सिर्फ समय की बात है.
पिछले कुछ हफ्तों से कांग्रेस नेतृत्व पर दबाव लगातार बढ़ा है. विधायक दिल्ली में डेरा जमाए हैं, गुप्त और सार्वजनिक मीटिंग्स हो रही हैं, और हर बयान राजनीतिक हलकों में हलचल पैदा कर रहा है. ऐसे माहौल में रामनगर के विधायक इकबाल हुसैन का यह बयान कि “डीके शिवकुमार बहुत जल्द सीएम बनेंगे, मुझे 200% भरोसा है” कर्नाटक की राजनीति में नई आग डालने जैसा है. अब सबकी निगाहें सोनिया–राहुल और कांग्रेस हाईकमान के अंतिम फैसले पर टिक गई हैं.
सत्ता परिवर्तन की सुगबुगाहट तेज
कर्नाटक कांग्रेस में सीएम परिवर्तन को लेकर महीनों से चल रही चर्चा अब और तेज़ हो गई है. विधायक इकबाल हुसैन के ताज़ा बयान ने इस मुद्दे को एक बार फिर सुर्खियों में ला दिया है. उनकी मानें तो सत्ता का हस्तांतरण एक “सीक्रेट डील” के तहत तय हुआ था और अब उसी पर अमल का समय आ गया है. इस दावे ने राज्य सरकार के भीतर की वास्तविक स्थिति को और उजागर कर दिया है.
हाईकमान पर बढ़ा दबाव
कई कांग्रेस विधायक पिछले दिनों दिल्ली पहुंचे, जहां उन्होंने केंद्रीय नेतृत्व से अपनी बात रखी. अधिकांश विधायकों का कहना है कि वे पार्टी हाईकमान के निर्णय का सम्मान करेंगे, लेकिन स्पष्ट संकेत दे रहे हैं कि वे डीके शिवकुमार को अगला मुख्यमंत्री देखना चाहते हैं. आलाकमान भी इस बात से वाकिफ है कि पार्टी के भीतर यह मामला अब काबू से बाहर होता जा रहा है.
खरगे से अलग–अलग मुलाकातें
समस्या तब और गंभीर होती दिखी जब सिद्धारमैया और डीके शिवकुमार दोनों ने कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे से अलग-अलग मुलाकात की. शिवकुमार खरगे की कार में उनके साथ रहे, जबकि सिद्धारमैया सीधे उनके घर पहुंचे. दोनों नेताओं की अलग-अलग रणनीति यह बताती है कि कर्नाटक में नेतृत्व को लेकर असंतोष और प्रतिस्पर्धा चरम पर है.
सीक्रेट डील vs विधायकों का समर्थन
सिद्धारमैया चाहते हैं कि पहले कैबिनेट विस्तार पर निर्णय हो और सरकार अपनी स्थिरता का संदेश दे. वहीं शिवकुमार लगातार उस कथित "सीक्रेट डील" की ओर इशारा कर रहे हैं, जिसमें आधा-आधा कार्यकाल सीएम पद साझा करने पर सहमति बताई जाती है. दोनों नेता अपनी-अपनी लॉबी और ताक़त का उपयोग कर रहे हैं, जिससे राजनीतिक तापमान और बढ़ गया है.
सोनिया–राहुल तक पहुंचा मामला
डेक्कन हेराल्ड की रिपोर्ट के मुताबिक, खरगे की रिपोर्ट सोनिया गांधी और राहुल गांधी तक पहुँच चुकी है. दोनों नेता कर्नाटक संकट पर अंतिम फैसला लेंगे और इसके लिए सिद्धारमैया व शिवकुमार को एक साथ दिल्ली बुलाया जा सकता है. यह बैठक 28 या 29 नवंबर को होने की संभावना है, जो संकेत देता है कि कांग्रेस इसे अब और लटकाने के मूड में नहीं है.
दिल्ली में डेरा डालकर बना रहे दबाव
डीके शिवकुमार गुट के विधायक दिल्ली में लगातार मौजूद हैं और यह साफ कर चुके हैं कि वे परिवर्तन चाहते हैं. खुले मंच पर भी कई विधायक कह रहे हैं कि सीएम वही बनेंगे. ऐसे में यह पहली बार है जब संगठन के भीतर मतभेद इतने स्पष्ट रूप से बाहर आए हैं, जो पार्टी नेतृत्व के लिए बड़ा सिरदर्द बन चुका है.
कैबिनेट फेरबदल की मांग
मद्दूर के विधायक केएम उदय और अन्य नेताओं ने हाईकमान से कहा कि कैबिनेट विस्तार या फेरबदल जल्द किया जाए और नए चेहरों, खासकर युवाओं को अवसर दिया जाए. कई MLAs का कहना है कि मुख्यमंत्री से जुड़े भ्रम को दूर करना अब बेहद ज़रूरी है क्योंकि इससे शासन और प्रशासन दोनों प्रभावित हो रहे हैं.
आधा कार्यकाल के बाद सत्ता बदलाव जरूरी
सिद्धारमैया सरकार ने 20 नवंबर को अपना आधा कार्यकाल पूरा कर लिया है. यहीं से माना जा रहा बदलाव और भी वास्तविक होता दिख रहा है, क्योंकि कांग्रेस के भीतर यह समझौता काफी पहले तय हुआ था. अब जब समय सीमा पूरी हो चुकी है, नेतृत्व परिवर्तन की चर्चा सिर्फ राजनीति नहीं, बल्कि पार्टी के भीतर बनी एक अपेक्षा की तरह देखी जा रही है.





