बिहार में कांग्रेस की हार का जिम्मेदार कौन? बवाल के बाद 43 नेताओं ने दिया नोटिस का जवाब, लटकी कार्रवाई की तलवार
बिहार चुनाव में कांग्रेस की करारी हार के बाद पार्टी में घमासान तेज है. जवाबदेही तय करने की प्रक्रिया में 43 नेताओं को नोटिस जारी किए गए हैं. बागियों ने नोटिस का जवाब दे दिया है. कई पर कार्रवाई की तलवार लटकी है. जानें हार की असली वजह क्या थी और अब पार्टी किस दिशा में बढ़ रही है.
बिहार में कांग्रेस की सबसे खराब चुनावी परफॉर्मेंस ने पार्टी नेतृत्व को भीतर से हिलाकर रख दिया है. चुनाव में पार्टी की रणनीति की विफलता, गुटबाजी, टिकट बंटवारे की खींचतान और जमीनी स्तर पर कमजोर संगठन के बीच पार्टी अब ‘जिम्मेदारी तय’ करने के मोड में है. चुनावी बवाल थमने का नाम नहीं ले रहा और इसी बीच हाईकमान ने 43 नेताओं को कारण बताओ नोटिस हाल ही में भेजकर बड़ा संदेश दिया था. पार्टी ने कहा था कि इस बार हार को यूं ही अनदेखा नहीं किया जाएगा. फिलहाल बागियों ने उसका जवाब दे दिया है.
बागी नेता अपने स्टैंड से टस से मस होने को तैयार नहीं हैं. अहम सवाल यह है कि बिहार में कांग्रेस की इतनी बड़ी हार का असली जिम्मेदार कौन है?
बागी की नेतृत्व से दो-दो हाथ करने को तैयार
दरअसल, में बिहार चुनाव में हार के बाद कांग्रेस ने 43 नेताओं को पार्टी विरोधी गतिविधियों का नोटिस थमाया है. इसको लेकर सभी बागी नेता बौखला गए हैं. अब पार्टी नेतृत्व ने भीतरघात करने वाले नेताओं से जवाब मांगा है. हालांकि, जिन नेताओं पर कार्रवाई हुई है, उन सभी का कहना है कि उन्होंने पार्टी के खिलाफ कोई काम नहीं किया.
बिहार कांग्रेस की ओर से नोटिस मिलने के बाद तथाकथित रूप से बागी बताए जा रहे इन नेताओं ने बिहार के कांग्रेस लीडरशिप पर मनमाने ढंग से काम करने और पार्टी प्रोसीजर को नजरअंदाज करने का आरोप लगाया है. नोटिस का जवाब भेजने से पहले इन नेताओं ने अपनी आगे की रणनीति को लेकर बातचीत भी की है.
जांच के बिना नोटिस कैसे?
बिहार कांग्रेस के बागियों ने कहा कि उन्हें बिना जांच और नेशनल लीडरशिप से मंजूरी के नोटिस कैसे दिए गए. उन्होंने कहा- नियमों के मुताबिक, ऐसे मामलों में सेंट्रल लीडरशिप की मंजूरी जरूरी है. बागियों नेताओं ने बिहार के कांग्रेस अध्यक्ष राजेश कुमार और प्रदेश प्रभारी कृष्णा अरवारुल पर गंभीर आरोप लगाए हैं.
कांग्रेस बीजेपी-आरएसएस की कठपुतली
बागी नेताओं का कहना है कि राजेश राम ने चुनाव के दौरान एकतरफा फैसले लेकर पार्टी को नुकसान पहुंचाया.बिहार कांग्रेस प्रमुख ने जिला और ब्लॉक लेवल पर वर्कर्स की शिकायतों पर ध्यान नहीं दिया. वर्कर्स के बीच बातचीत की कमी ने जमीनी स्तर पर पार्टी का स्ट्रक्चर कमजोर किया है, जिसका असर असेंबली चुनावों में दिखा. उन्होंने दावा किया- राज्य के नेता आरएसएस-भाजपा के हाथों की कठपुतली बन गई है.
बागी नेताओं के तेवर नरम नहीं हुए
वहीं, नाम न बताने की शर्त पर एक नेता ने कहा- सेंट्रल लीडरशिप को डिसिप्लिनरी कमिटी की सिफारिश के बारे में बताया जाएगा। उन्होंने कहा- पार्टी कुछ नियमों के तहत काम करती है और इस मामले में भी उनका पालन किया जाएगा. कार्रवाई के बाद भी बागी नेताओं के तेवर नरम नहीं हुए हैं. उन्होंने सख्त अंदाज में साफ कह दिया कि अगर उनकी आवाज को और दबाया गया तो वे अगली मीटिंग में आगे की कार्रवाई पर चर्चा करेंगे। उन्होंने कहा- हमने संगठन के हित में मुद्दे उठाए हैं.
बगियों के जवाब से दुविधा में कांग्रेस
पार्टी ने जिन 43 नेताओं को कारण बताओ नोटिस जारी किया था उन सभी ने प्रदेश नेतृत्व को औपचारिक रूप से अपने जवाब भेज दिए हैं. इन नेताओं ने जहां अपने ऊपर लगाए गए आरोपों को निराधार बताया है, वहीं प्रदेश नेतृत्व की कार्यशैली और निर्णय प्रक्रिया पर गंभीर सवाल उठाए हैं. नोटिस का जवाब मिलने के बाद से ही प्रदेश कांग्रेस नेतृत्व इन पर कार्रवाई को लेकर दुविधा में फंसा हुआ है. चर्चा है कि प्रदेश नेतृत्व इस मामले में न्याय के लिए केंद्रीय नेतृत्व की मदद लेगा.
बिहार कांग्रेस के प्रवक्ता राजेश राठौड़ ने कहा कि बागियों से सवाल-जवाब का काम पार्टी की डिसिप्लिनरी कमेटी देख रही है. कमेटी की रिपोर्ट के आधार पर आगे की कार्रवाई की जाएगी. बागियों के अड़ियल रुख पर उन्होंने कहा कि नोटिस का जवाब तो उन्हें देना होगा. नहीं देंगे तो पार्टी अनुशासनात्मक कार्रवाई करेगी. फिलहाल, अनुशासन कमेटी को उनके जवाब का इंतजार है.
प्रदेश कांग्रेस अनुशासन समिति के अध्यक्ष कपिलदेव प्रसाद यादव के अनुसार सभी व्यक्तियों से कहा गया है कि वे 21 नवंबर की दोपहर 12 बजे तक अपना लिखित स्पष्टीकरण समिति के सामने पेश कर दें.
चुनाव में कांग्रेस की क्यों हुई बड़ी हार?
बिहार में कांग्रेस में से केवल 6 सीटों पर जीत दर्ज पाई. अधिकांश सीटों पर पार्टी तीसरे और चौथे स्थान पर रही. महागठबंधन में ‘कमजोर कड़ी’ की छवि और भी मजबूत हुई. पार्टी के परंपरागत वोट बैंक में सेंध लगी. संगठन चुनावी जमीन से पूरी तरह कटा नजर आया. पार्टी नेताओं में आपस में मतभेद भी उभरकर सामने आए. पैसे लेकर टिकट बांटने का मामला भी सामने आया है.





