Begin typing your search...

बिहार की नई सत्ता के सामने सुलगते पुराने सवाल, नीतीश के राजनीतिक विरोधी 'चित' हुए हैं, चुनौतियों से कैसे निपटेंगे!

बिहार में 10वीं बार सत्ता में लौटकर नीतीश कुमार ने यह साबित कर दिया कि राजनीति में अभी भी उनकी पकड़ मजबूत है और विरोधी दल चाहे राजद, कांग्रेस या जनसुराज सब चुनावी रणक्षेत्र में मात खा चुके हैं. लेकिन असली परीक्षा अब शुरू होती है. चुनावी रैलियों और घोषणापत्र में किए गए बड़े वादों को पूरा करने के लिए अरसे से जिंदा मुद्दों पर काम करना ही होगा. नीतीश और NDA सरकार को इस भारी-भरकम बजट के लिए केंद्र का सहयोग भी चाहिए होगा और आर्थिक ढांचा भी. राजनीतिक चाणक्य की तरह विरोधियों को हराने वाले नीतीश अब जिम्मेदारियों की असली जंग में हैं—क्योंकि जनता वोट देकर उन्हें देख रही है कि इस बार सुशासन का वादा कितने अंकों में पास होता है.

बिहार की नई सत्ता के सामने सुलगते पुराने सवाल, नीतीश के राजनीतिक विरोधी चित हुए हैं, चुनौतियों से कैसे निपटेंगे!
X
संजीव चौहान
By: संजीव चौहान

Updated on: 24 Nov 2025 8:44 AM IST

साम-दाम-दंड-भेद जैसे बन पड़ा. हर तूफान से जूझते हुए भी नीतीश कुमार ने बिहार में फतेह हासिल कर ली. भले ही इस बार नीतीश कुमार की राजनीतिक पार्टी जनता दल यू क्यों न, नीतीश के साझा राजनीतिक हिस्सेदार बीजेपी से थोड़ा पिछड़ गया हो. नीतीश कुमार के फिर से मुख्यमंत्री बनने का अगर बीजेपी और जेडीयू जश्न मना रहे हैं. तो वहीं दूसरी ओर इनसे राजनीतिक अखाड़े में पिटकर चित हुए पड़े राहुल गांधी (कांग्रेस) और लालू यादव-तेजस्वी यादव एंड डोमेस्टिक पॉलिटिकल कंपनी के अभी तक होश उड़े हुए हैं.

यह तो वह कड़वा-मीठा सच है जिसे जमाने इस वक्त अपनी आंखों से देख रहा है. इस सबके बीच सवाल यह है कि अब फिर से मुख्यमंत्री बने नीतीश कुमार ने जो जो बड़े बड़े वायदे चुनाव में अपनी और बीजेपी की नैय्या पार लगाने के लिए किए थे. उन वायदों पर कब तक और कैसे नीतीश कुमार की नई सरकार खरी उतर कर खुद को “ईमानदार” जुबान का पक्का नेता साबित करेंगे. क्योंकि उन्होंने बीजेपी के इशारे पर जो बड़े बड़े वायदे जनहित के किए हैं. वे कोई रेबड़ी या गुब्बारे नहीं है. जो हवा में बात करते हुए पूरे हो जाएंगे.

वादों को पूरा करने के लिए होगा भारी-भरकम खर्च

चुनावी हवा के झोंके या कहिए तूफान में नीतीश बाबू और बीजेपी ने जो वायदे जनता से किए थे, उनकी कीमत “लाखों करोड़” या उससे भी कहीं ज्यादा है. मतलब इन वायदों को मुंहजुबानी पूरा नहीं किया जा सकता है. इनपे एक ऐसी या वह भारी-भरकम रकम खर्च होनी है जिसे उपलब्ध करने-कराने में क्या बीजेपी और क्या बिहार सरकार या फिर नीतीश बाबू. हर किसी की सांस फूल जाएगी. हां, ऐसे में एक बात जरूर संभव लगती है कि थोड़ा बहुत अपने सरकारी (बिहार राज्य सरकार) खजाने से इन योजनाओं पर खर्च करने के बाद, मास्टमाइंड मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अपना हाथ पीछे खींच लें.

केंद्र सरकार दे सकती है फंड

इसके बाद वे (नीतीश कुमार) अपनी झोली मोदी जी की ओर फैला दें. क्योंकि मोदी जी केंद्र में सत्ता संभाल रहे हैं. उनके पास बजट की कमी नहीं है. जितना चाहें उतना मुंह खोलकर बांट या दान दे सकते हैं. लेकिन इसमें भी एक बड़ा झंझट या रोड़ा सामने आ सकता है. अगर यह बजट औकात से ज्यादा हुआ. तो केंद्र सरकार तय सीमा से बाहर जाकर जो बजट बिहार को भेंट करेगी, उस बजट पर कहीं रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया “निर्धारित लिमिट” का रोना रोकर, बिहार को बजट दान देने के मामले में केंद्र और बिहार के बीच अपनी टांग अड़ा दे.

विरोधियों को किया चारो खाने चित

जहां तक सवाल मोदी की मदद से (बीजेपी) बिहार में नीतीश कुमार द्वारा राजनीतिक विरोधियों को चारो खाने चित करने की बात है. तो यह उन्होंने सफलतापूर्वक कर दिखाया है. इसमें किसी को अब कोई शिकायत नहीं है. जनसुराज पार्टी के मालिक प्रशांत किशोर हों या फिर कांग्रेस पार्टी के सर्वे-सर्वा राहुल गांधी और राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव या उनके होम-मेड नेता-पुत्र तेजस्वी यादव. सब कितने पानी में थे और उनकी पार्टियां हवा में कितनी ऊंचाई पर उतर-तैर रही थीं? यह भी बिहार विधानसभा 2025 चुनाव में बीजेपी ने नीतीश कुमार के साथ मिलकर जमाने में सिद्ध कर ही दिया है. सब के सब पंचर हुए बैठे हैं.

पलायन सबसे बड़ा मुद्दा

इन तमाम बातों के बीच नीतीश कुमार और बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व को ध्यान रखना होगा कि, हाल ही में हुए चुनाव में ‘बिहार से बाहर रोजगार के लिए जाने की मजबूरी’ सबसे बड़ा मुद्दा बनकर उभरा है. नीतीश कुमार और बीजेपी यानी एनडीए ने चुनावी घोषणा पत्र में वायदा किया था कि युवाओं को वे 1 करोड़ रोजगार पैदा करेंगे. राज्य के हर जिले में उद्योग धंधे (फैक्टरियां) लगाए जाएंगे. भविष्य में महिलाओं के खातों में भेजी जाने वाली धनराशि का इंतजाम करना भी नीतीश कुमार की नई सरकार के सामने चुनौती है. किसान सम्मान निधि और फोकट की बिजली की सीमा बढ़ाए जाने का वायदा भी एनडीए ने किया था.

बिहार की राजनीति के मर्मज्ञों की मानें तो 10वीं बार बिहार के मुख्यमंत्री बनने वाले नीतीश कुमार के सामने नई सरकार में तमाम पुराने सवाल अभी भी जिंदा हैं. इनमें सबसे महंगा सवाल या वायदा है डेढ़ करोड़ महिलाओं को 10 हजार रुपए देना. 50 लाख नए मकान बनाकर देना. चार शहरों में मेट्रो ट्रेन का संचालन. ईबीसी वर्ग की जातियों को 10 लाख तक की आर्थिक मदद मुहैया कराना.

(पटना में मौजूद वरिष्ठ पत्रकार मुकेश बालयोगी और कौशलेंद्र मिश्र से नई दिल्ली में मौजूद स्टेट मिरर हिंदी के एडिटर इनवेस्टीगेशन संजीव चौहान से हुई विशेष बातचीत पर आधारित)

नीतीश कुमारसम्राट चौधरीस्टेट मिरर स्पेशल
अगला लेख