ओवैसी IN तेजस्वी-राहुल OUT! फिर से बिहार में क्या करने उतरे Asaduddin Owaisi, कैसे बदल रहे सीमांचल की सियासत? Video
बिहार में नई सरकार बन चुकी है, लेकिन विपक्ष के बड़े चेहरे तेजस्वी यादव और राहुल गांधी लगातार गायब हैं. चुनावी हार के बाद न कोई बड़ा बयान, न कोई जमीनी सक्रियता. दूसरी ओर AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी सीमांचल की जनता के बीच सक्रिय होकर राजनीतिक जमीन मजबूत कर रहे हैं. पांच सीटों की जीत के बाद ओवैसी ने बायसी, अमौर, कोचाधामन समेत कई क्षेत्रों में दौरा कर यह स्पष्ट संदेश दिया है कि अब AIMIM बिहार की राजनीति में अहम भूमिका निभाएगी. महागठबंधन की चुप्पी और कमजोर पकड़ का फायदा ओवैसी उठा रहे हैं, जिससे बिहार के राजनीतिक समीकरण में बड़ा बदलाव देखने को मिल सकता है.
बिहार की राजनीति में इन दिनों एक नया दृश्य उभर रहा है. चुनाव बीत चुका, नई सरकार बन चुकी है, लेकिन विपक्ष के सबसे खास चेहरे तेजस्वी यादव और राहुल गांधी कहीं दिख ही नहीं रहे. एक तरफ जनता सवालों का पहाड़ लेकर खड़ी है, दूसरी तरफ विपक्ष की चुप्पी ने राजनीतिक गलियारों को बेचैन कर दिया है. ऐसे में उन नेताओं में जान डालने की कोशिश कौन कर रहा है? हैदराबाद से आया वही ‘भाईजान’ असदुद्दीन ओवैसी.
वो ओवैसी, जिन पर अक्सर तंज कसा जाता था कि “हैदराबाद से बाहर राजनीति करो”, अब वही नेता बिहार के सीमांचल में सबसे ज्यादा सक्रिय हैं. चुनाव परिणाम आने के साथ ही AIMIM चीफ ने अपने 5 विधायकों के साथ जो संदेश दिया कि वह साफ करता है कि अब वह सिर्फ मेहमान नहीं, बिहार की सियासत का स्थायी किरदार बनने आए हैं.
चुनावी हार और ‘खतरनाक चुप्पी’
हार के बाद न प्रेस कॉन्फ्रेंस, न जनता के बीच कोई संदेश- तेजस्वी की चुप्पी हज़ार सवाल खड़े करती है. विपक्ष से जनता की उम्मीद होती है कि वह आवाज़ उठाए, लेकिन RJD कैंप में मायूसी और खामोशी हावी है. विश्लेषकों का कहना है कि तेजस्वी फिलहाल परिवार व संगठन में मंथन में लगे हैं, लेकिन इतनी लंबी दूरी विपक्ष की राजनीति को कमज़ोर कर रही है.
राहुल गांधी जमीनी राजनीति में गैर-हाज़िर
राहुल गांधी राष्ट्रीय मुद्दों पर फायरब्रांड दिखते हैं, लेकिन बिहार के मैदान में उनके पदचिह्न गायब हैं. कांग्रेस कार्यकर्ता नेतृत्व की दिशा का इंतज़ार कर रहे हैं, पर अब तक न समीक्षा बैठक हुई न मिशन रिबिल्ड. डिजिटल एक्टिवनेस और ग्राउंड कनेक्शन का यह विरोधाभास कांग्रेस के भविष्य पर सवाल छोड़ रहा है.
ओवैसी का सीमांचल कनेक्शन मजबूत
बिहार में 5 सीटों की जीत के बाद ओवैसी ने तुरंत जनता के बीच पहुंचकर अपने इरादों की घोषणा कर दी. बायसी से लेकर बहादुरगंज तक लगातार सभाएं… लोगों से सीधा संवाद… उन्होंने कह दिया कि सीमांचल अब जाग गया है, और हम उसकी लड़ाई लड़ेंगे. यह दौरा सिर्फ धन्यवाद नहीं-पावर मैपिंग भी है.
AIMIM का तीन-स्तरीय सियासी संदेश
ओवैसी का यह एक्टिव मिशन तीन बड़े संकेत देता है कि सीमांचल में स्थायी पकड़ बनाना, तेजस्वी-राहुल की चुप्पी में खाली विपक्षी स्पेस को भरना और 2029 लोकसभा और 2030 विधानसभा की तैयारी शुरू करना. राजनीति में मौका वही लेता है जो मौके पर मौजूद रहता है और ओवैसी वही कर रहे हैं.
महागठबंधन की कमज़ोरी = ओवैसी की ताकत
सीमांचल में RJD का मुस्लिम-यादव समीकरण इस बार कमजोर पड़ा. कांग्रेस पहले ही हाशिए पर थी. ऐसे में AIMIM का उभरना सीधा संकेत है, जहां विपक्ष कमजोर होगा, ओवैसी वहां मजबूत हो जाएंगे. उनके भाषणों में साफ एजेंडा है कि सीमांचल को पिछड़ेपन से निकालने का संकल्प, भ्रष्टाचार और लापरवाही पर सीधा वार, गरीबों और युवाओं के मुद्दों को प्राथमिकता और ओवैसी यहां केवल वोट नहीं, विश्वास और विकास दोनों का आधार बना रहे हैं.
क्या बदल रहा है बिहार का राजनीतिक संतुलन?
राजनीति में एक नियम होता है, जहां नेता गायब, वहां जनता नया सहारा ढूंढ लेती है. तेजस्वी और राहुल की खामोशी में ओवैसी वैकल्पिक नेतृत्व के रूप में उभरते दिख रहे हैं. आज सिर्फ सीमांचल हिला है… कल पूरा बिहार हिल सकता है. अगर यही स्थिति रही तो ओवैसी न सिर्फ विपक्ष की राजनीति में घुसपैठ करेंगे, बल्कि महागठबंधन के समीकरण भी उलट सकते हैं. ओवैसी ‘मौजूद’ हैं… विपक्ष के बड़े चेहरे ‘गायब’. यही मौजदूगी आने वाले दिनों में बिहार की सियासत का सबसे बड़ा फैक्टर बन सकती है.





