SIR Second Phase: बंगाल में SIR को लेकर क्यों मचा है घमासान, पाकिस्तान से आए शरणार्थियों का क्या होगा?
पश्चिम बंगाल सहित देश के 12 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में दूसरे चरण के एसआईआर की प्रक्रिया को लेकर अफरातफरी और भ्रम का माहौल है. बीएलओ और शरणार्थियों की द्वारा सुसाइड की घटनाओं की वजह से प्रवासी लोग खौफजदा हैं. खासकर पश्चिम बंगाल में चुनाव आयोग की ओर से जारी मतदाता सूची की विशेष गहन पुनरीक्षण को लेकर TMC और BJP आमने-सामने आ गई है. विपक्ष इसे अवैध प्रवासियों की पहचान की जरूरी प्रक्रिया का हिस्सा बता रहा है.
पश्चिम बंगाल समेत देश के 12 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में जब से वोटर लिस्ट ( SIR Voter List ) तैयार करने यानी एसआईआर की प्रक्रिया शुरू हुई है, तभी से अवैध रूप से बॉर्डर पार कर बांग्लादेश जाने वाले लोगों की तादाद बढ़ गई है. माना जा रहा है कि बांग्लादेश वापस लौटने वाले लोग घुसपैठिए हो सकते हैं. हालांकि, इसकी किसी आधिकारिक एजेंसी ने पुष्टि नहीं की है. वहीं, दूसरे चरण की एसआईआर प्रक्रिया शुरू होने के बाद से अब तक दो दर्जन से ज्यादा लोगों के मरने की भी सूचना है. इस बीच सीएम ममता बनर्जी ने चुनाव आयोग को लेटर लिखकर इसे रोकने की अपील की है. बीजेपी ने इसको लेकर टीएमसी पर भय का माहौल बनाने और एसआईआर की प्रक्रिया को रोकने का जरिया करार दिया है.
इस बीच दूसरे दौर में एसआईआर की प्रक्रिया सबसे बड़ी चुनौती बनकर उभरी है. ममता बनर्जी सरकार जहां इसके विरोध में सड़कों पर उतर आई हैं, वहीं बीजेपी भी जवाबी रणनीति के साथ मैदान में है. तृणमूल कांग्रेस की इस रैली के जवाब में विपक्ष के नेता शुभेंदु अधिकारी भी उत्तर 24-परगना जिले के आगरपाड़ा में इसके समर्थन में एक रैली निकाली है.
51 करोड़ मतदाताओं का वेरिफिकेशन
फिलहाल, केंद्रीय चुनाव आयोग (ईसीआई) द्वारा एसआईआर के दूसरे चरण की प्रक्रिया का एलान करने के बाद 28 अक्टूबर 2025 से 12 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) का काम जारी है. जिन 12 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) शुरू हुआ है, उनमें अंडमान और निकोबार द्वीप समूह, गोवा, पुडुचेरी, छत्तीसगढ़, गुजरात, केरल, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु और लक्षद्वीप शामिल हैं. दूसरे चरण में एसआईआर के तहत 51 करोड़ मतदाता शामिल हैं.
4 नवंबर को जारी होगा एसआईआर मसौदा
एसआईआर के इस चरण में घर-घर जाकर गणना 4 नवंबर से 4 दिसंबर तक यानी एक महीने तक चलेगी. 9 दिसंबर को मसौदा मतदाता सूची प्रकाशित की जाएगी. अभी बूथ लेवल अधिकारी (बीएलओ) घर-घर जाकर मतदाता वेरिफिकेशन का काम कर रहे हैं. यह प्रक्रिया 4 दिसंबर तक जारी रहेगी, जिसके बाद 9 दिसंबर को मसौदा मतदाता सूची प्रकाशित की जाएगी.
बंगाल में 5.2 करोड़ लोगों को दिखाने होंगे नागरिकता के सबूत
पश्चिम बंगाल के अतिरिक्त मुख्य चुनाव अधिकारी अरिंदम नियोगी के मुताबिक राज्य के 294 विधानसभा क्षेत्रों में कुल 7.6 करोड़ वोटर हैं. इनमें से 2.4 करोड़ वोटरों के नाम का मिलान वर्ष 2002 की सूची से कर लिया गया है. यानी इन करीब 32 फीसदी वोटरों को फार्म के साथ कोई दस्तावेज देने की जरूरत नहीं है. यहां SIRके लिए 80 हजार बूथ लेवल ऑफिसर (बीएलओ) नियुक्त किए गए हैं.
अहम सवाल : बंगाल में ही अफरातफरी का माहौल क्यों?
दरअसल, बंगाल में SIR पर विवाद सिर्फ संवैधानिक या प्रशासनिक मुद्दा नहीं है — यह एक गहरी राजनीतिक और सामाजिक लड़ाई भी है, जिसमें नागरिकता, पहचान और वोटिंग अधिकार जैसे अहम विषय जुड़े हुए हैं. खासकर मतुआ समुदाय इस लड़ाई के केंद्र में है. ऐसा इसलिए कि अधिकांश मतुआ पूर्व में बांग्लादेश (या उससे पहले पूर्वी पाकिस्तान) से आए शरणार्थी हैं. उनकी पहचान और वोटिंग अधिकार SIR+CAA दोनों से सीधे प्रभावित हो सकते हैं. यह विवाद भविष्य की राजनीति, चुनावों और नागरिकता नीति पर भी असर डालेगा.
सीएम ममता बनर्जी और टीएमसी नेताओं का दावा है कि इससे बंगाल में लोगों के पलायन का दौर शुरू होगा. लाखों की संख्या में मतदाता सूची से नाम कटेंगे और इससे दशकों से बंगाल रह रहे लोग अचानक सड़क पर आ जाएंगे, जिसे किसी भी लिहाज से अच्छा नहीं माना जा सकता है.
पहले सीमापार करने पर, अब वापसी पर पकड़े जा रहे बांग्लादेशी
यही वजह है कि बंगाल में एसआईआर के एलान के बाद से सीमावर्ती इलाके में अवैध रूप से रहने वाले बांग्लादेशी नागरिकों में स्वदेश पलायन की होड़ मच गई है. उत्तर 24-परगना से लगी बांग्लादेश सीमा पर तैनात बीएसएफ के एक अधिकारी के मुताबिक बीते करीब एक सप्ताह से पहिया उल्टा घूमने लगा है. पहले सीमा पार कर भारत में घुसने के प्रयास के दौरान बांग्लादेशी नागरिक गिरफ्तार होते थे, लेकिन अब यहां से वापसी के दौरान पकड़े जा रहे हैं. बीते पांच दिनों के दौरान पूरे राज्य में गिरफ्तार लोगों की तादाद सैकड़ों में पहुंच गई है.
पश्चिम बंगाल में कहां-कहां के रहते हैं शरणार्थी, उनकी संख्या क्या है?
- पश्चिम बंगाल में मुख्य रूप से बांग्लादेश से आए शरणार्थी रहते हैं. खासकर उत्तर 24 परगना, नादिया, मुर्शिदाबाद और कूच बिहार जैसे जिलों में. इसके अतिरिक्त, रोहिंग्या शरणार्थी भी राज्य के कुछ हिस्सों में अस्थायी रूप से रह रहे हैं. ऐतिहासिक रूप से 1947 में भारत-पाकिस्तान विभाजन के बाद से बांग्लादेश (पूर्व में पूर्वी पाकिस्तान) से हिंदू शरणार्थी बड़ी संख्या में भारत में आए थे.
- हाल के वर्षों में म्यांमार से रोहिंग्या शरणार्थियों का आगमन भी हुआ है. इनकी कुल संख्या निश्चित रूप से बताना मुश्किल है, लेकिन यह अनुमान है कि 2001 की जनगणना में भारत में बांग्लादेशी प्रवासियों की सबसे बड़ी संख्या पश्चिम बंगाल में थी, जो 40 हजार से ज्यादा है.
- भारतीय सरकार के अनुमान बताते हैं कि लगभग 2.6 मिलियन प्रवासी पूर्वी बंगाल छोड़कर भारत आए और 0.7 मिलियन प्रवासी भारत से पूर्वी पाकिस्तान आए.
- पश्चिम बंगाल सरकार के शरणार्थी राहत और पुनर्वास विभाग के अनुसार जनगणना के आंकड़े बताते हैं कि 1971 में पूर्वी पाकिस्तान से आए शरणार्थियों की संख्या लगभग 6 मिलियन थी, जो 1981 में 8 मिलियन आंकी गई.
- देश विभाजन के बाद पूर्वी पाकिस्तान यानी वर्तमान बांग्लादेश छोडकर 10 मिलियन लोग भारत में शरण लेने आए थे. ये शरणार्थी पश्चिम बंगाल और भारतीय उत्तर पूर्व क्षेत्र, विशेष रूप से त्रिपुरा और असम में बस गए.
- लगभग 5 लाख लोग भारत के अन्य हिस्सों में भी बस गए, जिनमें दिल्ली में चित्तरंजन पार्क, ओडिशा, मध्य प्रदेश, बिहार और छत्तीसगढ़ शामिल हैं. दिल्ली में अनुमानित 5 लाख और मुंबई में 3 लाख बंगाली भी बड़े पैमाने पर पूर्वी बंगाली शरणार्थी और उनके वंशज हैं. मतुआ समुदाय के लोग बड़ी संख्या में गुजरात में भी रहते हैं.
- पश्चिम बंगाल सरकार के शरणार्थी राहत और पुनर्वास विभाग के अनुसार 1971 में जिलेवार शरणार्थियों की आमद का मुख्य जोर 24-परगना (कुल शरणार्थियों का 22.3%), नादिया (20.3%), बांकुरा (19.1%) और कोलकाता (12.9%) पर था.
मतुआ समुदाय सुर्खियों में क्यों?
मतुआ, बंगाली हिंदुओं का एक वंचित या दलित वर्ग है. यह वर्ग बंगाल के अनुसूचित जाति समूह का हिस्सा है. वर्ष 1971 के युद्ध (जिसके परिणामस्वरूप बांग्लादेश अस्तित्त्व में आया) से पूर्व तथा उसके पश्चात् मतुआ समुदाय के लाखों लोगों ने धार्मिक उत्पीड़न से परेशान होकर भारत में प्रवास किया. पश्चिम बंगाल में अनुसूचित जाति की कुल आबादी में नामशूद्र (मतुआ) समुदाय की हिस्सेदारी 17.4% है और उत्तर बंगाल में राजवंशियों के बाद यह दूसरा सबसे बड़ा समूह है.
हरिचंद ठाकुर नाम के एक समाज सुधारक को मतुआ महासंघ (Matua Mahasangha) का संस्थापक माना जाता है, जो मतुआ समुदाय का प्रतिनिधित्व करता है. इन्होंने जाति आधारित उत्पीड़न का विरोध किया तथा दलितों के शिक्षा और सामाजिक उत्थान की दिशा में कार्य किया.
बंगाल के शरणार्थियों में पाकिस्तान से आए हिंदू-सिख शरणार्थी भी शामिल हैं, जो दशकों से नागरिकता और स्थायी अधिकारों की उम्मीद में जीवन बिता रहे हैं. SIR की सख्ती के बाद सवाल यह खड़ा हो गया है कि अगर कागजात अधूरे पाए गए तो इन शरणार्थियों का भविष्य किस दिशा में जाएगा और क्या एसआईआर की प्रक्रिया उन्हें राहत दे पाएगी या नई मुश्किलें पैदा होंगी. इसको लेकर अभी स्थिति स्पष्ट नहीं है. लेकिन मतुआ समुदाय के लोग लंबे समय से नागरिकता की मांग करते आए हैं. ऐसे में उनके लिए यहां पलायन करना मुश्किल भरा हो सकता है. फिर,सवाल यह उठता है कि ऐसे लोग जो दशकों से यहां रहते हैं, उनका क्या होगा? फिलहाल, यह विवाद भविष्य की राजनीति, चुनावों और नागरिकता नीति पर भी असर डालेगा.





