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मां की सूनी गोद, बाप की टूटी उम्मीदें: पुंछ में गोलाबारी ने उजाड़ दिए कई घर

पूंछ में जो कुछ भी हुआ वह सिर्फ़ आंकड़ों की कहानी नहीं, बल्कि उन टूटे हुए परिवारों की दास्तान है, जिनकी खुशियां हमेशा के लिए बिखर गईं. यह घटना एक बार फिर याद दिलाती है कि जंग और हिंसा का सबसे बड़ा शिकार हमेशा मासूम इंसान ही होता है. उनकी तकलीफें, उनकी चीखें, और उनके आंसू शायद कभी दुनिया नहीं समझ पाएगी.

मां की सूनी गोद, बाप की टूटी उम्मीदें: पुंछ में गोलाबारी ने उजाड़ दिए कई घर
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हेमा पंत
Edited By: हेमा पंत

Updated on: 9 May 2025 4:40 PM IST

जम्मू-कश्मीर के पुंछ जिले में लोग वह रात कभी नहीं भूल पाएंगे, जब पाकिस्तानी सेना की गोलाबारी और मोर्टार के धमाकों ने पूरी बस्ती को चीखों और आंसुओं में डुबो दिया. मासूम बच्चों की हंसी, जो कल तक गलियों में गूंजती थी, अब हमेशा के लिए खामोश हो गई. चार बच्चों समेत 13 निर्दोष लोगों की मौत ने हर घर को शोक में डुबो दिया-उनकी माओं की गोद सूनी हो गई, बापों की आंखों में आंसू कभी सूख नहीं पाएंगे.

हर तरफ मातम पसरा है. जिन बच्चों की मुस्कान कभी पूरे गांव को रौशन करती थी, अब उनकी तस्वीरें दीवारों पर टंगी हैं और घरों में सन्नाटा है. गोलाबारी की आवाजें अब भी लोगों के कानों में गूंजती हैं, और उनके दिलों में दर्द की गहरी चोट रह गई है. पुंछ के लोग आज भी उस रात को याद करके सिहर उठते हैं, जब एक पल में उनके अपने उनसे छिन गए.

पिता ने देखी बेटे की मौत

विहान भार्गव-सिर्फ़ 13 साल का, मासूमियत से भरा चेहरा, जिसकी मुस्कान हर किसी का दिल जीत लेती थी. उसके पिता, संजीव कुमार भार्गव, हर सुबह उसे स्कूल जाते हुए देखकर गर्व से भर जाते थे. लेकिन किसे पता था कि एक दिन वही मुस्कान हमेशा के लिए छिन जाएगी. उस दिन, जब विहान स्कूल से घर लौट रहा था. अचानक पाकिस्तानी मोर्टार का गोला उसकी कार पर गिरा. एक पल में सब कुछ बदल गया-विहान के सिर से खून बहने लगा और उसके पिता की आंखों के सामने उनकी दुनिया उजड़ गई. पिता की चीख, बेटे को अपनी बाहों में थामे, उस दर्द को बयान नहीं कर सकती जो उन्होंने महसूस किया-कैसे कोई बाप अपने बच्चे को तड़पते हुए देख सकता है?

उस एक पल ने पूरे परिवार को तोड़ दिया. विहान की 13 साल की नन्ही जिंदगी, दो मुल्कों की जंग की आग में बुझ गई, जबकि उसका कोई कसूर नहीं था. उसकी मासूम हंसी, उसकी भोली बातें, अब बस यादों में रह गईं. विहान की मौत ने उसके माता-पिता की सारी उम्मीदें छीन लीं-अब हर सुबह, हर शाम, घर की दीवारें उसकी कमी को चीख-चीखकर याद दिलाती हैं. कितना निर्दोष था वो बच्चा, जिसकी जान चली गई, और दुनिया बस तमाशा देखती रह गई. परिवार के जख्म कभी नहीं भरेंगे-उसकी मुस्कान, उसकी मासूमियत, हमेशा उनकी आंखों में तड़पती रहेगी.

साथ आए और साथ में मरे

ज़ैन और ज़ोया, दोनों सिर्फ़ 12 साल के मासूम थे. हंसमुख, और सपनों से भरी आंखें. हर शाम उनके घर में खिलखिलाहट गूंजती थी, लेकिन किसे पता था कि एक रात उनकी मासूमियत पर हमेशा के लिए साया छा जाएगा. उस डरावनी रात, जैसे ही आसमान में धमाके की गूंज उठी, पूरा परिवार कांप उठा. मां ने दोनों को सीने से लगा लिया, पिता ने जल्दी-जल्दी सामान समेटा. ज़ैन-ज़ोया का हाथ थामे भाग रहे थे-उम्मीद थी कि सब ठीक हो जाएगा, लेकिन जैसे ही वे सड़क पर पहुंचे एक और धमाका हुआ. पल भर में सब कुछ राख हो गया और नफरत की आग ने उनकी दुनिया छीन ली.

उनके चाचा आदिल पठान उस मंजर को याद करते हुए टूट जाते हैं. उनकी आवाज़ कांपती हैं 'वे दोनों एक साथ इस दुनिया में आए थे और एक साथ चले गए. एक ने मेरी गोद में आखिरी सांस ली.उनकी आंखों से बहते आंसू, उस दर्द की गवाही देते हैं, जिसे शब्दों में बयां करना नामुमकिन है.'

आज भी जब आदिल बच्चों के खिलौने देखते हैं, दीवारों पर उनकी तस्वीरें टंगी पाते हैं, तो दिल चीख उठता है-कितनी जल्दी उनकी हंसी छिन गई, कितनी बेरहमी से मासूम सपनों को कुचल दिया गया.

जिस आंगन में खेली वहीं मौत

मरियम खातून-सिर्फ़ 7 साल की नन्ही परी, जो अपने घर के आंगन में खेल रही थी. उसी आंगन में जहां हमेशा उसकी हंसी गूंजती थी, एक दिन अचानक आसमान से मौत बरस पड़ी. एलओसी पार से आए बर्बर गोले के छर्रों ने उसकी मासूम ज़िंदगी को हमेशा के लिए छीन लिया. उसकी बड़ी बहन इरम नाज, जो सिर्फ़ 10 साल की थी, खून से लथपथ अपनी छोटी बहन को पुकारती रही, लेकिन मरियम की आंखें हमेशा के लिए बंद हो चुकी थीं.

एक पल में ही खुशियों से भरा घर मातम में बदल गया. मां की चीखें, पिता की टूटी उम्मीदें, और इरम की सिसकियां-इन सबने उस घर को वीरान कर दिया. मरियम की मासूमियत और उसकी खिलखिलाहट अब बस यादों में रह गई. उसकी बहन इरम के दिल में हमेशा यह दर्द रहेगा कि वह अपनी छोटी बहन को बचा नहीं सकी.

क्यों इन मासूम बच्चों को अपनी जान गंवानी पड़ी? क्यों इन परिवारों को तोड़ दिया गया? इन सवालों का जवाब शायद कभी नहीं मिलेगा, लेकिन इन घटनाओं की दर्दनाक यादें हमेशा बनी रहेंगी. इन गोलियों और धमाकों ने न जाने कितने घरों की रौशनी छीन ली-मरियम भी उन्हीं मासूमों में से एक थी, जिसकी कोई गलती नहीं थी, फिर भी वह इस नफरत की आग में जल गई. उसके परिवार का दर्द अब कभी कम नहीं होगा, और उसकी मासूम मुस्कान हमेशा उनकी आंखों में तड़पती रहेगी

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