रडार, मिसाइल और सटीक निशाना: ऐसे काम करता है एयर डिफेंस सिस्टम
8 मई की रात पाकिस्तान की ओर से एक के बाद एक ड्रोन और मिसाइलें भारतीय सीमाओं की ओर बढ़ रही थीं. ये मशीनें बिना किसी आवाज़ के आसमान चीरती हुईं आ रहीं थीं, मानो अंधेरे में तीर चलाए जा रहे हों, लेकिन हर दिशा से आने वाले इन ख़तरों को सबसे पहले भारत के एयर डिफेंस रडार ने देखा.

गुरुवार की रात सीमा पार हलचल बढ़ चुकी थी. दोनों देशों के बीच तनाव अब सिर्फ बयानबाज़ी तक सीमित नहीं रही. हवा में लपटें उठने लगी थीं. इसी घड़ी में भारतीय सशस्त्र बलों ने तेजी और सटीकता के साथ जवाब दिया. लाहौर के पास मौजूद पाकिस्तान की के एयर डिफेंस सिस्टम को राख कर दिया.
सिर्फ इतना ही नहीं पाकिस्तान की ओर से दागे गए कई ड्रोन और मिसाइलें भी भारत की एयर डिफेंस प्रणाली से टकरा कर मिट्टी में मिल गईं. इन्हें बीच आसमान में ही पहचान लिया गया, ट्रैक किया गया और सटीक निशाने के साथ खत्म कर दिया गया. अब यहीं से एक सवाल उभरता है आख़िर ये एयर डिफेंस सिस्टम काम कैसे करता है?
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एयर डिफेंस सिस्टम काम कैसे करता है?
कैसे कोई मशीन आसमान में उड़ते एक छोटे-से ड्रोन को मीलों दूर से पहचान लेती है? कैसे वो रडार किसी मिसाइल की रफ्तार को पकड़ पाता है और फिर सेकंडों में जवाब देता है?
डिटेक्शन
जैसे ही दुश्मन का विमान या मिसाइल हमारी एयर डिफेंस सिस्टम पूरी तरह से एक्टिव हो जाता है. सबसे पहले, रडार अपनी आंखें खोलता है और आसमान में छिपे खतरे को ढूंढ़ने के लिए इलेक्ट्रोमैग्नेटिक वेव भेजता है. ये तरंगें हवा में इधर-उधर फैलती हैं और जब यह किसी चीज से टकराती हैं, तो वापस लौट आती हैं.
फिर रडार का रिसीवर इन लौटती हुई तरंगों को पकड़ता है और एकदम से यह समझ जाता है कि आसमान में क्या हो रहा है. क्या वह दुश्मन का विमान है, उसकी स्पीड कितनी है, और वह कितनी दूर है.इस तरह, रडार दुश्मन के हमले को जल्दी से पहचानने में मदद करता है.
ट्रैकिंग
अब, जब दुश्मन का हमला पहचान लिया गया है, तो हमारी एयर डिफेंस सिस्टम का अगला कदम होता है उस खतरे को ट्रैक करना. यह बिल्कुल उसी तरह है जैसे एक शिकारी अपने शिकार को लगातार अपनी नजरों में रखता है. इसके लिए रडार के साथ-साथ लेजर रेंजफाइंडर जैसे खास डिवाइस काम में आते हैं. ये डिवाइस दुश्मन की मिसाइल या प्लेन की स्पीड और डायरेक्शन को सटीकता से ट्रैक करते हैं, जैसे किसी घड़ी की सुई की तरह सही वक्त पर सब कुछ कैद करना. इस ट्रैकिंग का उद्देश्य सिर्फ यह नहीं है कि हम दुश्मन का पीछा करें, बल्कि यह भी है कि हम मित्र देशों के विमानों और दुश्मन के हमलों को पूरी तरह से अलग कर सकें
इंटरसेप्शन
अब जब दुश्मन की मिसाइल की पहचान हो चुकी है और उसकी हर हरकत पर नजर रखी जा रही है, तो अब हमला रोकने की तैयारी करता है, जैसे कोई धनुर्धर अपने निशाने पर तीर छोड़ता है. वैसे ही सिस्टम तय करता है कि कब और कैसे उस मिसाइल को हवा में ही खत्म करना है. लेकिन ये फैसला यूं ही नहीं लिया जाता है. इसमें ध्यान रखा जाता है दुश्मन की मिसाइल की गति कितनी है, वो कहां से आ रही है, और उसका प्रकार क्या है. इस पूरे ऑपरेशन में कमांड, कंट्रोल और संचार (C3) की भूमिका बेहद अहम होती है. सब कुछ मिलकर, बेहद तेज़ी और सटीकता से होता है. एक छोटी सी चूक भी भारी पड़ सकती है, लेकिन एक सक्षम वायु रक्षा प्रणाली उसी समय सही निर्णय लेकर खतरे को हवा में ही धूल में मिला देती है.
कैसे करते हैं इंटरसेप्शन
फाइटर एयरक्राफ्ट्स का काम सिर्फ उड़ना नहीं है. ये इंटरसेप्टर मिशन के लिए तैयार रहते हैं. यानी हवा में ही दुश्मन को रोकना और खत्म कर देना. भारत के पास ऐसे कई ताकतवर जेट हैं जो अलग-अलग काम करते हैं. चाहे बात हो सुखोई Su-30MKI की तेज़ रफ्तार की, मिग-29 की आक्रामक क्षमता की, या HAL तेजस की स्वदेशी ताकत की. हर जेट तैयार रहता है एक सटीक वार के लिए. मिग-21 बाइसन, जो दशकों से दुश्मनों को चौंकाता आया है, और डसॉल्ट राफेल, जो तकनीक और ताकत का घातक मेल है. ये सभी एक ही मिशन पर होते हैं: खतरे को खत्म करना, देश को सुरक्षित रखना.
सतह से हवा में मारने वाली मिसाइल
जब दुश्मन की मिसाइलें या लड़ाकू विमान हमारी सीमाओं की ओर बढ़ते हैं, तो उन्हें रोकने के लिए भारत के पास एक ऐसा हथियार है जो न आसमान में उड़ता है, न किसी पायलट की जान जोखिम में डालता है. ये है सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइलें, यानी SAMS. इन मिसाइलों की खासियत यही है कि ये जमीन से या फिर जहाज़ों से लॉन्च की जा सकती हैं और बिना किसी पायलट को भेजे, सीधे दुश्मन को हवा में ही खत्म कर सकती हैं. चाहे वो लड़ाकू विमान हो, हेलीकॉप्टर या क्रूज मिसाइल SAMS का एक ही काम है: लक्ष्य को पहचानना और चंद सेकेंडों में उसे मिटा देना.
भारत के पास ऐसी ही एक महाशक्ति है. रूसी S-400 ट्रायम्फ सिस्टम. जब यह सिस्टम एक्टिव होता है, तो दुश्मन की मिसाइलें खुद को कहीं भी छिपा नहीं पातीं. 400 किलोमीटर तक की दूरी से ही ये सिस्टम खतरे को पहचान लेता है और फिर जो होता है, वह दुश्मन के लिए आखिरी चेतावनी साबित होता है.
एंटी-एयरक्राफ्ट आर्टिलरी
एंटी-एयरक्राफ्ट आर्टिलरी आसमान में उड़ती किसी भी दुश्मन चीज़ को गिराने का सबसे भरोसेमंद हथियार है. भारी-भरकम बैरल, गगनभेदी आवाज़ और धुएं से भरे गोलों की बौछार. यह नज़ारा युद्ध के मैदान में रौंगटे खड़े कर देता था. समय बदला और तकनीक ने छलांग लगाई. मिसाइलें तेज़, स्मार्ट और ज़्यादा दूरी तक मार करने वाली बन गईं. ऐसे में AAA का इस्तेमाल धीरे-धीरे सीमित होता चला गया. लेकिन कहानी यहीं खत्म नहीं हुई.